जयपुर. छोटी काशी जयपुर की गणगौर की सवारी जितनी प्रसिद्ध है, उतने ही प्रसिद्ध है गणगौर पर बनने वाले घेवर. ऐसी मिठाई, जिसके बिना गणगौर पर्व अधूरा है. मधुमक्खी के छत्ते सा दिखने वाला घेवर जयपुर की परंपरा और विरासत से भी जुड़ा हुआ है. आज बाजार में दूध, पनीर और रबड़ी के बने घेवरों की भारी डिमांड है. आपको जानकर हैरानी होगी कि इन घेवरों का इतिहास जयपुर से भी पुराना है.
सांभर के घेवर के हलवाइयों को लाया गया जयपुर :जयपुर में गणगौर का त्योहार हो और घेवर की बात ना हो तो बेमानी लगेगा. इस घेवर का स्वाद जितना पुराना है, उतनी पुरानी ही इसकी विरासत है. जयपुर फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष सिया शरण लश्करी ने बताया कि घेवर की शुरुआत मूल रूप से सांभर में हुई है. जयपुर की बसावट से पहले आमेर के राजा तीज त्योहार पर सांभर से घेवर मंगवाया करते थे. 1727 में जब जयपुर की स्थापना हुई तब सवाई जयसिंह द्वितीय ने अपने-अपने क्षेत्र के हुनरबाजों को सभी सुख सुविधाएं देते हुए जयपुर में बसाया. सांभर से भी घेवर बनाने वाले कारीगरों को जयपुर में लाकर बसाया गया, जिन्होंने यहां घेवर बनाते हुए नाम भी कमाया.
सिंजारे में भेजा जाता है घेवर इसे भी पढ़ें :11 अप्रैल को निकलेगी गणगौर की सवारी, कलेक्टर ने अधिकारियों को सौंपी जिम्मेदारी
सिंजारे में भेजा जाता है घेवर : उन्होंने बताया कि गणगौर पूजने वाली बहन बेटियों के सिंजारे में आज भी घेवर जाते हैं. परिवार अपनी हैसियत के हिसाब से घेवर खरीदता है और उन्हें बांटता है. जयपुर में 100 साल पहले तक प्रभु हलवाई दूध का घेवर बनाते थे. इन घेवरों को राज परिवार खासा पसंद करता था. वहीं अब गणगौर पर्व से पहले ही जयपुर के बाजार घेवर की खुशबू से महकने लगे हैं.
दूध, पनीर और रबड़ी के फीके और मीठे घेवर उपलब्ध 12 महीने उपलब्ध रहते हैं घेवर :घेवर विक्रेता राकेश अग्रवाल ने बताया कि जयपुर के ट्रेडीशनल स्वीट्स में सबसे पहला नाम घेवर का आता है. यहां राजा-महाराजाओं के समय से ही घेवर का महत्व रहा है. नवविवाहिता की पहली तीज या गणगौर पर उनके पीहर से सिंजारा जाता है, जिसमें मिठाई के तौर पर घेवर ही भेजा जाता है. ये घेवर मैदा, दूध, घी और पनीर के मिश्रण से तैयार किया जाता है. जयपुर में प्रमुख रूप से दो साइज में दूध, पनीर और रबड़ी के फीके और मीठे घेवर उपलब्ध है. उन्होंने बताया कि वनस्पति घी में 320 से लेकर 400 रुपए और देसी घी में 650 से 900 तक के घेवर उपलब्ध हैं. ये घेवर प्रमुख रूप से तीज और गणगौर के फेस्टिवल पर ही उपलब्ध होते हैं, लेकिन पर्यटकों की मांग पर अब ये 12 महीने उपलब्ध रहने लगा है. यही नहीं, अब पैकिंग के साथ दूसरे प्रदेश तो क्या दूसरे देशों में भी भिजवाया जाने लगा है. फीका घेवर करीब 1 महीने तक खराब नहीं होता.
जयपुर में गणगौर ही नहीं बल्कि घेवर भी मशहूर है इसे भी पढ़ें :कारीगरी ऐसी कि विदेश में भी डिमांड, जानिए क्यों खास है बीकानेर की 'गणगौर' - Gangaur 2024
दूध, पनीर, रबड़ी के घेवर :वहीं गणगौर त्योहार की तैयारी में जुटे शहरवासी भी अब बाजारों में घेवर लेने पहुंचने लगे हैं. जयपुर के पुराने बाशिंदे ओमप्रकाश ने बताया कि बहन-बेटियों के घर ये घेवर भेजे जाते हैं. ये जयपुर की ट्रेडिशनल मिठाई है. खास बात यह है कि इसमें मिलावट का भी डर नहीं है. उन्होंने कहा कि पहले तो बाजारों में सिर्फ मीठे घेवर उपलब्ध होते थे, लेकिन अब अलग-अलग साइज और दूध, पनीर, रबड़ी के घेवर मिलने लगे हैं. वहीं, बरसों से परंपरा का निर्वहन कर रहे जयपुर वासी खगेन्द्र नाथ तिवाड़ी ने बताया कि मारवाड़ी में तो कहावत है 'आरा म्हारा देवरा तने खिलाऊं मैं घेवर...' !