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आगरा में 400 साल पुराना मुगल बादशाह जहांगीर का हमाम, अचानक क्यों आया चर्चा में? जानिए- पूरा मामला - HISTORY OF JAHANGIR HAMMAM

सन् 1620 में बादशाह के भरोसेमंद अली वरदी खान ने बनवाया था हमाम(स्नानागार), अब अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

आगरा में जहांगीर का हमाम चर्चा में.
आगरा में जहांगीर का हमाम चर्चा में. (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 26, 2024, 3:37 PM IST

Updated : 3 hours ago

आगरा: करीब 400 साल पुराना आगरा में बना मुगलिया दौरा का हमाम इन दिनों चर्चा में है. दरअसल, यह हमाम जमींदोज किया जा रहा है. इसके साथ ही इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए आवाज भी उठने लगी है. कभी मु​गलिया सल्तनत की राजधानी रहे आगरा से ही हिंदुस्तान की सत्ता चलती थी. आगरा में आज भी मुगलिया दौर के स्मारक ताजमहल, किला, फतेहपुर सीकरी, बेबी ताज, सिकंदरा जैसी ऐतिहासिक धरोहरें देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. इसी में से एक शाही हमाम भी है. कहते हैं कि मुगल बादशाह जहांगीर ने एक बार यहां आकर स्नान भी किया था. ईटीवी भारत ने सुर्खियां बने हमाम का इतिहास खंगाला. साथ ही स्थानीय लोगों और इतिहासकारों से बात की. कभी आगरा आने वाले हर खास मेहमान और यात्रियों की पहली पसंद ये हमाम हुआ करता था. इसके पास सराय होती थी. आइए, जानते हैं इस मुगलिया हमाम की क्या है कहानी.

आगरा में जहांगीर का हमाम चर्चा में. (Video Credit; ETV Bharat)

आगरा किले के करीब ही है हमाम:आगरा किले से करीब एक किलोमीटर दूर छीपीटोला में मुगलिया दौर का यह हमाम है. लोग इसे शाही हमाम भी कहते हैं. यह हमाम मुगल बादशाह जहांगीर के दौर में बनाया गया था. हालांकि अब इसकी हालत जर्जर है और इसे जमींदोज किया जा रहा है. हमाम के अहाते में करीब 25-30 कमरे हैं. जहां पर फल-सब्जी विक्रेता अपना सामान रखे हैं. इसके साथ ही पहली मंजिल पर 12 से अधिक परिवार रहते हैं. हमाम के आसपास घनी आबादी और घना बाजार है.

जहांगीर ने कभी किया था स्नान :वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि मुगल बादशाह जहांगीर का अली वरदी खान उर्फ अल्लाह वरदी खान एक कृपापात्र था. वह मुगल दरबार में पांच हजारी मनसबदार यानी सरदार था. उसने आगरा किले के पास ही सन 1620 में लाखौरी ईंटों और लाल बलुआ पत्थरों से एक आलीशान हमाम बनवाया था. आज वो स्थान छीपीटोला बाजार है. हमाम में ठंडे और गर्म पानी से नहाने की सुविधा थी. अली वरदी खान के बनवाए आलीशान हमाम की खूबसूरती और सुविधाओं की चर्चा होने पर मुगल बादशाह जहांगीर खुद उसे देखने के लिए एक दिन पहुंचा. जहांगीर हमाम की सुविधाएं देखकर हैरान रह गया. उस दिन जहांगीर ने हमाम में स्नान किया. जिसकी वजह से इस हमाम की तुलना शाही हमाम से की जाने लगी. बाद में ये हमाम दूसरे राज्यों और देशों से आने वाले मेहमानों की पहली पसंद बन गया. लोग यहां पर स्नान करते. इसके पास की सराय में ठहरते. इसके बाद मुगल दरबार में जाते थे.

अंग्रेजों ने कराई थी हमाम की खोदाई:वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि लेखक खाकसार सईद अहमद मारहरवी ने अपनी पुस्तक 'आगरा का इतिहास' में लिखा है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान इस हमाम में ठंडे और गर्म पानी व्यवस्था जानने के लिए खोदाई कराई गई थी. तब इसमें एक बडा दीपक मिला था. जब हवा चली तो ये दीपक बुझ गया. जो जलाया नहीं जा सका. पास में ही अली वरदी खान की बनवाई मस्जिद थी. आगरा के लेखक और इतिहासकार सुरेंद्र भारद्वाज ने अपनी पुस्तक 'आगरा का प्राचीन इतिहास' में लिखा है कि सन 1857 की विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने देश की ऐतिहासिक महत्व की तमाम इमारतें, सराय और हमाम नीलाम कर दिए. ऐसे ही हमाम फतेहपुर सीकरी में भी हैं. जो मुगल बादशाह अकबर के समय के हैं.

इन पुस्तकों में भी हमाम का जिक्र :वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि छीपीटोला स्थित हमाम के बारे में कई इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में लिखा हैं. इसमें सन 1892 में लिखाी सत्या चंद्र मुखर्जी की पुस्तक 'द ट्रैवलर गाइड टू' आगरा पुस्तक के साथ ही सन 1896 में सैययद मोहम्मद लतीफ की पुस्तक 'हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव' शामिल हैं. इन पुस्तक में लिखा है कि ये हमाम, उस समय केवल एक स्नानग्रह ही नहीं, समाजिक और सांस्कृतिक केंद्र था. हमाम के गुम्मद का व्यास 33 फीट और हमाम की पूर्व से पश्चिम तक की लंबाई 122 फीट, चौड़ाई उत्तर से दक्षिण तक 72 फीट थी. हमाम के आंगन में पानी के झरने थे.

हमाम समेत अन्य स्मारक के संरक्षण की जरूरत:सिविल सोसाइटी के सदस्य अनिल शर्मा बताते हैं कि छीपीटोला का शाही हमाम का इतिहास और वास्तुकला एक अनमोल धरोहर है. ये मुगलिया दौर की इमारत है. जिसके संरक्षण की जरूरत है. ये संपत्ति अब निजी हाथों में चली गई है. जिससे इसे जमींदोज किया जा रहा है. ये बेहद दुखद है. इसका संरक्षण किया जाए. ऐसे ही अन्य स्मारक हैं, जिनका संरक्षण किया जाना चाहिए. जर्नी टू रूटस की इरम कहती हैं कि मध्यकालीन धरोहरों को बचाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है. इसके साथ ही एएसआई के साथ ही जिला प्रशासन से भी इस बारे में पत्राचार किया जा रहा है. जिससे ऐतिहासिक महत्व के हमाम को बचाया जा सके.

अब यूं सुर्खियों में आया हमाम :हमाम का पूरा अहाता करीब 8000 वर्ग गज में फैला है. जिसमें दो मजार, एक कुएं के साथ ही कमरों को एक दूसरे से जोड़ने वाले रास्ते हैं. यहां की मजारों को हमाम बाबा की मजार कहते हैं. हमाम के अहाते में अभी फल और सब्जी वालों के गोदाम हैं. अब हमाम को ढहाया जा रहा है. जेसीबी से दीवारे और कमरे ढहाए जा रहे हैं. जिससे सुर्खियों में हमाम आया गया है. हमाम को बचाने के लिए कई संस्थाएं आगे आईं हैं. जिन्होंने बुधवार को हमाम की विदाई को विरासत विदाई वॉक किया. नारेबाजी की थी.

अहम सवाल, एएसआई की लिस्ट से क्यों हटाया ?

वरिष्ठ टूरिस्ट गाइड मुकुल पंड्या कहते हैं कि सन 1871-72 में ये हमाम एएसआई की लिस्ट में था. इसके बाद इसे हटाया गया. एएसआई ने इसे अपनी लिस्ट से क्यों हटाया, ये एक बड़ा सवाल है. एएसआई को इस बारे में आगे आने चाहिए. उप्र पुरातत्व विभाग को भी इस ओर ध्ययान देना चाहिए. स्थानीय निवासी जितेंद्र कहते हैं कि आगरा में हमाम जैसी अन्य जगहें हैं, जिन्हें संरक्षित किया जाए. इसे एएसआई संरक्षण का काम करे. इसके साथ ही फतेहपुर सीकरी के पास पहाडियों पर बनी रॉक पेटिंग का संरक्षण किया. सब लोग मिलकर काम करें.

हम बेघर किए जा रहे :किराएदार गीता देवी ने बताया कि यहां पर रहते हमारी पांचवीं पीढी है. हमने कमरे खाली कर दिए. मुकदमा लिखाकर कई लोगों को जेल भिजवा दिया गया. जबकि, हमारे पूर्वज यहां रहने का किराया देते आ रहे हैं. करीब छह से सात रुपये तक का किराया दिया है. किराएदार मयंक सक्सेना ने बताया कि पहले यहां पर कोई रहने वाला नहीं था. यहां पर हमारे पुरखे आए. जो यहां पर रहने लगे. जिसका किराया देते थे. इसके बाद यहां पर फल और सब्जी मंडी आई. हमें बिल्कुल उम्मीद नहीं थी. यूपी में योगी और पीएम मोदी के समय पर ऐसा हो जाएगा.

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