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रामायण से जुड़ा है उत्तराखंड का रम्माण मेला, ऐतिहासिक है मुखौटा नृत्य, यूनेस्को ने विश्व धरोहर में किया शामिल - Mukhota Dance of Uttarakhand

Uttarakhand Mukhota Dance,Ram Mandir Pran Pratishtha रम्माण में सम्पूर्ण रामायण को संक्षिप्त रुप में दिखाया जाता है. इसमें नृत्य के माध्यम से किरदार प्रस्तुति देते हैं. इसमें मुखौटों का इस्तेमाल किया जाता है. राम-लक्ष्मण-सीता-हनुमान पारम्परिक श्रृगांर एवं वेशभूषा में पूरे दिन 18 अलग अलग धुनों पर नृत्य करते हैं.

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रामायण से जुड़ा है उत्तराखंड का रम्माण मेला

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 22, 2024, 8:10 PM IST

Updated : Jan 23, 2024, 2:47 PM IST

देहरादून:500 साल, लंबे संघर्ष के बाद आज अयोध्या में राम मंदिर स्थापित हो गया है. आज अयोध्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन किया गया. राम मंदिर में रामलला के विराजमान होने के बाद देशभर में भक्तिमय माहौल है. हर कोई राम रंग में डूबा है. इस खास मौके पर ईटीवी भारत आपको भगवान राम की लीलाओं से जुड़े खास मुखौटा नृत्य के बारे में बताने जा रहे हैं. ये मुखौटा नृत्य उत्तराखंड के चमोली जिले में किया जाता है. उत्तराखंड का ये मुखौटा नृत्य इतना ऐतिहासिक है कि इसे यूनेस्कों ने भी विश्व धरोहर में शामिल किया है.

राम की लीलाओं से जुड़े मुखौटा नृत्य को रम्माण कहा जाता है. इसके लिए चमोली जिले में रम्माण मेले का आयोजन किया जाता है. उत्तराखंड का सीमांत चमोली रम्माण पंरपरा का केंद्र है. चमोली के जोशीमठ ब्लॉक को देवताओं की भूमि माना जाता है. ये शहर यहां की जीवन शैली, संस्कृति और मठ मन्दिरों के लिए जाना जाता है. ये वही तप भूमि है जहां 8वीं शदी के आखिरी कुछ सालों में आदि गुरू शंकराचार्य का आगमन हुआ. शंकराचार्य ने इस क्षेत्र में तीन मठ- ज्योतिर्मठ, अणिमठ और थौलिंगमठ की स्थापना की. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इनमें से एक मठ थौलिंगमठ मौजूदा वक्त में तिब्बत में हैं.

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इसी क्षेत्र में शंकराचार्य ने सनातनियों के चारो धामों में से एक विश्व प्रसिद्ध बदरीनाथ धाम की स्थापना की. बदरीनाथ धाम से 44 किलोमीटर पहले आदि गुरू शंकराचार्य ने ज्योतिर्मठ में अथर्ववेद की प्रतिष्ठा सम्पन्न कर 4 वर्षों तक बद्रीकाश्रम क्षेत्र में निवास किया. यहां उन्होंने ब्रह्मसूत्र भाष्य, गीता भाष्य एवं विष्णु सहस्रनाम भाष्य ग्रन्थों की रचना की.

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रम्माण का मुख्य आयोजन चमोली के सलूड़ गांव में किया जाता है. इसका आयोजन आसपास के गांवों में भी किया जाता है, मगर सलूड़ गांव में मुख्य आयोजन होता है. रम्माण का आयोजन यहां की संयुक्त पंचायत करती है. रम्माण मेला 11 या 13 दिनों तक मनाया जाता है. रम्माण, पूजा, अनुष्ठानों की एक शृंखला है, इसमें सामूहिक पूजा, देवयात्रा, लोकनाट्य, नृत्य, गायन, मेला आदि का आयोजन होता. इस मेले में हर जाति के लोगों की अपनी एक भूमिका है. रम्माण नृत्य में कुरूजोगी, बण्यां और माल के विशेष चित्रण होता है, ये पात्र लोगों को खूब हंसाते हैं, साथ ही रम्माण के पात्र पर्यावरण से जुड़े संदेश भी देते हैं. रम्माण के आखिर में भूम्याल देवता प्रकट होते हैं, जो सभी को सुख समृद्दि का वरदान देते हैं.रम्माण नृत्य में 18 मुखौटे, 18 ताल, 12 ढोल, 12 दमाऊं, 8 भंकोरे का प्रयोग होता है. ये मुखौटे भोजपत्र से बने होते हैं.

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रम्माण मेले की खास बात यह है कि इसमें सम्पूर्ण रामायण को संक्षिप्त रुप को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है. राम-लक्ष्मण-सीता-हनुमान पारम्परिक श्रृगांर एवं वेशभूषा में पूरे दिन 18 अलग अलग धुन और तालों पर नृत्य करते हैं. रम्माण नृत्य के जरिए से रामायण की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं जैसे राम-लक्ष्मण जन्म, राम-लक्ष्मण का जनकपुरी में भ्रमण, सीता स्वयंवर, राम-लक्ष्मण-सीता का वन गमन, स्वर्ण बध, सीता हरण, हनुमान मिलन, लंका दहन तथा राजतिलक के जैसी घटनाओं को प्रस्तुत किया जाता है.

Last Updated : Jan 23, 2024, 2:47 PM IST

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