शिमला: कर्ज के दलदल में फंसे हिमाचल के लिए वित्तीय प्रबंधन निरंतर कठिन होता जा रहा है. पहाड़ी राज्य हिमाचल की आर्थिक स्थिति संभलती हुई नहीं दिख रही है. प्रदेश का राजकोषीय घाटा यानी फिस्कल डेफिसिट 10,784 करोड़ रुपए अनुमानित है. ये स्टेट जीडीपी का 4.75 फीसदी है. हालांकि हिमाचल प्रदेश के बजट अकसर टैक्स फ्री रहते हैं, लेकिन कर्ज के मर्ज का तोड़ किसी सरकार के पास नजर नहीं आता.
सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने शनिवार को अपने कार्यकाल का दूसरा बजट पेश किया. बजट का आकार 58,444 करोड़ रुपए है. ये पिछले बजट से 5031 करोड़ अधिक है. आंकड़ों के आईने में देखें तो बजट में आगामी वित्तीय वर्ष यानी 2024-25 में प्रदेश की रेवेन्यू रिसिप्ट्स यानी राजस्व प्राप्तियां 42,153 करोड़ रुपए रहने का अनुमान है. इसी प्रकार कुल राजस्व खर्च 46,667 करोड़ रुपए होगा. ऐसे में वर्ष के अंत में राजस्व घाटा 4,514 करोड़ रुपए रहने का अनुमान है. हिमाचल सरकार के लिए चिंता का विषय राजकोषीय घाटा है. ये पहली बार दस हजार करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर गया है.
विकास कार्यों के लिए हमेशा की तरह सरकार के पास धन की कमी रहेगी. बजट भाषण में सीएम ने बताया कि एक सौ रुपए में से 52 रुपए तो सीधे-सीधे वेतन, पेंशन, ब्याज आदि की अदायगी पर खर्च हो जाएंगे. फिर लिए गए लोन के भुगतान पर 9 रुपए, स्वायत्त संस्थानों की ग्रांट पर 10 रुपए खर्च होंगे. इस तरह विकास के लिए बचे मात्र 28 रुपए.