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हिमाचल HC ने सुनाई खरी-खरी: आरोपी को अनिश्चित काल तक नहीं रख सकते हिरासत में, जल्द होनी चाहिए सुनवाई - High Court on criminal custody - HIGH COURT ON CRIMINAL CUSTODY

Himachal High Court on criminal custody: आपराधिक मामलों की त्वरित सुनवाई के लक्ष्य को हासिल करने के मकसद से हिमाचल हाईकोर्ट ने जरूरी दिशा-निर्देश जारी किए थे. अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया था कि जब भी आरोपी के खिलाफ आरोप तय किए जाते हैं, तो अभियोजन पक्ष के आवेदन पर ट्रायल कोर्ट मामले की अगली सुनवाइयों की तारीखें तय कर लें.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (फाइल फोटो)

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Aug 20, 2024, 10:22 PM IST

शिमला:हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा जल्द और निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार भारतीय संविधान में एक मौलिक अधिकार है. हाईकोर्ट ने राज्य के सभी सेशन डिविजन से लंबित आपराधिक मामलों की जानकारी तलब की है.

न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को आदेश जारी किए हैं कि जिन आपराधिक मामलों में इस साल 4 जनवरी को बाद आरोप तय किए गए हैं. उनकी ताजा स्टेट्स रिपोर्ट अदालत के समक्ष पेश की जाए. दरअसल, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में हत्या के आरोपी ने जमानत याचिका दाखिल की थी.

याचिका के अनुसार, हत्या का आरोपी 16 अप्रैल 2023 को गिरफ्तार हुआ था. गिरफ्तारी के बाद से वो न्यायिक हिरासत में है. उसके खिलाफ इस साल 19 जून को आरोप तय किए गए थे फिर केवल एक गवाह के बयान दर्ज करने के लिए मामले को 31 अगस्त 2024 को सूचीबद्ध किया गया है.

इस पर हाईकोर्ट ने प्रार्थी को जमानत प्रदान कर दी. अदालत ने जमानत प्रदान करते हुए कहा कि सूची में दर्ज की गई गवाहों की संख्या को ध्यान में रखते हुए निकट भविष्य में याचिकाकर्ता के खिलाफ मुकदमे के शीघ्र समापन की संभावना नजर नहीं आती.

ऐसे में प्रार्थी को अनिश्चित काल तक न्यायिक हिरासत में रखने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा. हाईकोर्ट ने गृह सचिव से भी अपने आदेश की अनुपालना से जुड़ी स्टेट्स रिपोर्ट भी तलब की है.

हाईकोर्ट ने पास किए हैं जरूरी निर्देश

यहां उल्लेखनीय है कि आपराधिक मामलों की त्वरित सुनवाई के लक्ष्य को हासिल करने के मकसद से हिमाचल हाईकोर्ट ने जरूरी दिशा-निर्देश जारी किए थे. अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया था कि जब भी आरोपी के खिलाफ आरोप तय किए जाते हैं, तो अभियोजन पक्ष के आवेदन पर ट्रायल कोर्ट मामले की अगली सुनवाइयों की तारीखें तय कर लें.

इसमें अभियोजन से जुड़े सभी गवाहों की गवाहियों को कलमबद्ध करने के लिए तारीखों का निर्धारण करने को कहा गया था. हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया था कि ट्रायल कोर्ट को उपरोक्त समय सारणी तय करते समय गवाहों को टुकड़ों में बुलाने से बचना चाहिए.

कोर्ट ने आदेश दिए थे कि उपरोक्त कार्यक्रम संबंधित वकीलों की सलाह से तय किया जाए. गृह सचिव को आदेश दिए गए थे कि वह सभी संबंधित पक्षों को निर्देश जारी कर यह सुनिश्चित करे कि एक बार मुकदमा शुरू होने के बाद जांच अधिकारी पहली तारीख से आखिरी तारीख तक ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपस्थित रहे. यदि आईओ (जांच अधिकारी) की उपस्थिति संभव नहीं हो तो गवाही के लिए सूचीबद्ध मामले के तथ्यों से परिचित किसी अन्य जिम्मेदार अधिकारी को उपस्थित रहना चाहिए.

इन निर्देशों को जारी करते हुए कोर्ट ने कहा था कि सेशन ट्रायल एक गंभीर मामला है, जिस पर पीठासीन अधिकारी को अत्याधिक ध्यान देने की आवश्यकता है. त्वरित सुनवाई के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने मौलिक अधिकार माना है. कोर्ट ने जमानत से जुड़े मामले की सुनवाई के बाद पाया कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के त्वरित ट्रायल से जुड़े आदेशों की अनुपालना ट्रायल अदालतों द्वारा नहीं की जा रही है जिस कारण आरोपियों को हिरासत में अनिश्चित काल तक रहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

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