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30 साल से आसपास के स्कूलों में नौकरी कर रही थी महिला टीचर, तबादला होने पर छिपाए तथ्य, हाई कोर्ट ने सिखाया करारा सबक - Himachal High Court - HIMACHAL HIGH COURT

Himachal High Court dismissed teacher's petition: हिमाचल हाईकोर्ट ने कांगड़ा जिले की एक महिला शिक्षक की तबादले के खिलाफ दायर याचिका को तथ्य छिपाने को लेकर 20 हजार रुपये की कॉस्ट सहित खारिज कर दिया है. पढ़िए पूरी खबर...

Himachal High Court
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (ETV Bharat FILE)

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jun 25, 2024, 9:16 PM IST

शिमला: जिला कांगड़ा की एक महिला टीचर 30 साल से तीन से पांच किलोमीटर के दायरे वाले आसपास के स्कूलों में ही नौकरी कर रही थी. फिर उसका तबादला 12 किलोमीटर दूर एक स्कूल में किया गया. महिला अध्यापक ने उस तबादला आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी. अदालत ने पाया कि महिला टीचर ने तथ्य छिपाते हुए याचिका दाखिल की. इस पर हाई कोर्ट ने उक्त अध्यापिका की याचिका को 20 हजार रुपये की कॉस्ट सहित खारिज कर दिया.

महिला टीचर जिला कांगड़ा के प्राथमिक स्कूल संसारपुर टेरेस तहसील जसवां में सीएचटी यानी केंद्रीय मुख्य शिक्षक के पद पर है. न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि प्रार्थी ने अपनी व्यथा साफ नीयत से कोर्ट के समक्ष नहीं रखी. अदालत ने कहा कि जब भी किसी प्रार्थी को अपनी व्यथा रखनी हो, तो मामले से जुड़ी हर बात साफ तौर पर कहना चाहिए और इस पर फैसला कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए. अदालत से तथ्य छिपाने का मतलब है कि वादी गलत नीयत से अपने हक में अदालत को गुमराह करते हुए फैसला चाहता है.

कोर्ट ने पाया कि प्रार्थी महिला शिक्षक पिछले 30 वर्षों से आसपास के दायरे के स्कूलों में नौकरी करती रही और जब उसे मौजूदा स्कूल से महज 12 किलोमीटर दूरी पर भेजा गया तो उसने यह बात छुपाते हुए तबादला आदेशों को हाई कोर्ट में चुनौती दे दी. कोर्ट ने कहा कि इस तथ्य को छिपाने की वजह से उसे हाई कोर्ट ने 30 अक्तूबर 2023 को अंतरिम राहत प्रदान करते हुए तबादला आदेशों पर रोक लगा दी थी. प्रार्थी का आरोप था कि उसका तबादला डीओ नोट पर आधारित था और उसे मौजूदा स्थान पर 3 वर्ष के सामान्य कार्यकाल पूरा करने से पहले ही स्थानांतरित कर दिया गया.

सरकार ने प्रार्थी की सेवा से जुड़ा रिकॉर्ड कोर्ट में पेश किया, जिसमें बताया गया कि प्रार्थी ने 30 वर्षों की सेवा महज 5 से 8 किलोमीटर के दायरे में ही की और अब भी उसे केवल 12 किलोमीटर की दूरी पर भेजा जा रहा है. कोर्ट ने कहा कि कोई भी कर्मचारी अपने तबादला आदेशों को भेदभावपूर्ण और मनमाना पाते हुए हाईकोर्ट में चुनौती दे सकता है और हाईकोर्ट का भी यह निहित कर्तव्य है कि वह प्रार्थी की याचिका पर अपना फैसला सुनाए.

यह दूसरा पहलू है कि निर्णय प्रार्थी के पक्ष में आता है या नहीं. एक पहलू है कि कोर्ट सामान्य तौर पर उन तबादला आदेशों में दखल देता है, जिन्हें कर्मचारी को 3 से 5 वर्ष का सामान्य कार्यकाल पूरा किए बगैर स्थानांतरित कर दिया जाता है. लेकिन इसके लिए संबंधित कर्मचारी को अपनी सेवाकाल का पूरा ब्यौरा रखना चाहिए. ताकि कोर्ट को लगे कि स्थानांतरण आदेश न तो प्रशासनिक जरूरत और न ही जनहित में जारी किया है. बल्कि सरकार ने इसे अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर जारी किया है. तभी हाईकोर्ट इस संबंध में दखल दे सकता है. अदालत कम से कम वादियों से यही अपेक्षा करती है कि कोर्ट के समक्ष सभी तथ्य बिना छुपाए रखे जाएं ताकि मामले पर सही निर्णय दिया जा सके.

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