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वन विभाग की कार्यप्रणाली पर हाईकोर्ट ने उठाए सवाल, TGT टीचर्स ट्रांसफर मामले पर HC का फैसला

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Mar 2, 2024, 11:43 AM IST

Himachal High Court Decision: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दो अलग-अलग मामलों में फैसला सुनाया. वन विभाग की कार्यप्रणाली पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने विभाग पर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को बेवजह मुकद्दमे बाजी के लिए मजबूर करने पर 1 लाख रुपए जुर्माना लगाया. वहीं, दूसरे मामले में सरकार से ट्राइबल या दुर्गम क्षेत्रों में कभी काम न करने वाले टीजीटी नॉन मेडिकल टीचर्स का डाटा मांगा.

Himachal High Court
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने वन विभाग पर अपने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को बेवजह मुकद्दमे बाजी के लिए मजबूर करने पर एक लाख रुपए की कॉस्ट लगाई. कोर्ट ने प्रधान मुख्य अरण्यपाल और करसोग वन मंडल के वन मंडल अधिकारी को कॉस्ट की राशि निजी तौर पर प्रार्थी नरसिंह दत्त को देने के आदेश दिए.

वन विभाग की कार्यप्रणाली पर HC की कड़ी टिप्पणी

न्यायाधीश बीसी नेगी ने याचिका का निपटारा करते हुए वन विभाग की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि अदालतों द्वारा व्यवस्थित कानून को वन विभाग ने अव्यवस्थित करने की कोशिश करते हुए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को उसके सेवा लाभों से 14 वर्षों तक वंचित रखा. इतना ही नहीं वन विभाग के आला अधिकारियों ने कानूनी जानकारी स्पष्ट होते हुए भी जानबूझ कर प्रार्थी से भेदभाव किया.

14 साल लगातार ली दिहाड़ीदार सेवाएं

मामले के अनुसार प्रार्थी ने 240 दिन प्रतिवर्ष की दिहाड़ीदार सेवाओं के साथ 8 साल 1 जनवरी 2002 को पूरे कर लिए थे. इस कारण प्रार्थी 1 जनवरी 2002 से वर्क चार्ज स्टेट्स के लिए पात्र हो गया. वन विभाग ने उसे यह लाभ न देते हुए उससे 14 साल लगातार दिहाड़ीदार सेवाएं लेते हुए वर्ष 1 अप्रैल 2008 को नियमित किया. विभाग ने उसे 8 वर्ष का दिहाड़ीदार कार्यकाल पूरा करने के बाद वर्क चार्ज स्टेट्स देने से इंकार करते हुए कहा कि वन विभाग वर्क चार्ज संस्थान नहीं है. प्रार्थी का कहना था कि विभाग ने उसके जैसे अनेकों सहकर्मियों को 8 साल के कार्यकाल के बाद वर्क चार्ज स्टेट्स दिया है.

30 अप्रैल तक भरना होगा जुर्माना

हाईकोर्ट ने अपने अनेकों फैसलों में व्यवस्था दी है कि वर्क चार्ज स्टेट्स देने के लिए यह कतई जरूरी नहीं है कि संबंधित विभाग एक वर्क चार्ज संस्थान हो. इस व्यवस्थित कानून को दरकिनार करते हुए वन विभाग के आला अधिकारियों ने उसके प्रतिवेदन को खारिज कर दिया. जिस कारण वह पेंशन भी प्राप्त नहीं कर सका. कोर्ट ने प्रार्थी को दलीलों से सहमति व्यक्त करते हुए वन विभाग पर एक लाख रुपए हर्जाने लगाते हुए यह राशि 30 अप्रैल तक प्रार्थी को देने के आदेश दिए. कोर्ट ने वन विभाग को आदेश दिए कि वह प्रार्थी को 1 जनवरी 2002 से वर्कचार्ज अथवा नियमित करते हुए इससे उपजे सेवा लाभ और पेंशन साढ़े 7 फीसदी ब्याज सहित अदा करें.

दूसरा मामला- ट्राइबल से सॉफ्ट एरिया में ट्रांसफर

वहीं, एक दूसरे मामले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि कितने ऐसे टीजीटी नॉन मेडिकल शिक्षक हैं, जिन्होंने कभी भी ट्राइबल या दुर्गम क्षेत्रों अपनी सेवाएं नहीं दी हैं. न्यायाधीश रंजन शर्मा ने अपने आदेशों में कहा कि किसी कर्मचारी की ट्राइबल या दुर्गम क्षेत्रों में तैनाती को लंबा नहीं खींचा जा सकता. कोर्ट ने कहा कि सरकार को निर्धारित समय के लिए ऐसे कर्मचारियों की उक्त क्षेत्रों में तैनाती करनी चाहिए, जिन्होंने दुर्गम या ट्राइबल क्षेत्रों में अपनी सेवाएं नहीं दी है. ऐसा करने से हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में न्यायिक फैसलों के तहत बनाए कानून की अनुपालना सुनिश्चित होगी.

जुब्बल के TGT नॉन मेडिकल टीचर ने दी थी याचिका

मामले के अनुसार शिमला जिले के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला रथल तहसील जुब्बल में तैनात टीजीटी नॉन मेडिकल शिक्षक पंकज नाग ने उक्त क्षेत्र से किसी सॉफ्ट क्षेत्र में अपने ट्रांसफर की मांग अपने विभाग से की थी. मगर उसका मामला यह कहकर रद्द कर दिया था कि जो मनपसंद स्टेशन प्रार्थी ने अपने प्रतिवेदन में दर्शाए हैं, वे रिक्त नहीं चल रहे हैं. प्रार्थी के अनुसार वह 11 नवंबर 2019 से उक्त स्कूल में अपने सेवाएं दे रहा है. प्रार्थी का कहना है कि उक्त क्षेत्र हार्ड एरिया में आता है और ट्रांसफर नीति के तहत उसे सॉफ्ट क्षेत्र में स्थानांतरित किया जाना चाहिए. कोर्ट ने सरकार को 7 मार्च तक अपना स्पष्टीकरण देने के आदेश दिए हैं.

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