शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट ने महिलाओं को मुफ्त शौचालय सुविधा सुनिश्चित करने के लिए नगर निगम शिमला और सुलभ इंटरनेशनल सोशल ऑर्गेनाइजेशन को जरूरी निर्देश जारी किए हैं. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने जनहित याचिका की सुनवाई के बाद नगर निगम शिमला को आदेश दिए कि महिलाओं को मुफ्त शौचालय सुविधा संबंधी जानकारी का प्रचार प्रसार सभी उपलब्ध माध्यमों से किया जाए.
दरअसल कोर्ट को बताया गया था कि अदालत के आदेशों के बावजूद शौच के लिए महिलाओं से 5 रुपए का शुल्क अभी भी लिया जा रहा है. कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए सुलभ इंटरनेशनल सोशल ऑर्गेनाइजेशन को निर्देश दिए कि अब यदि महिलाओं से शौच के लिए शुल्क वसूला गया तो इसे गंभीरता से लिया जाएगा. कोर्ट ने सुलभ इंटरनेशनल सोशल ऑर्गेनाइजेशन को भी यह सुनिश्चित करने के आदेश दिए कि शौचालय सुविधाओं के मुफ्त उपयोग को प्रदर्शित करने वाले नोटिस हिंदी भाषा में पर्याप्त संख्या में लगाए जाएं. कोर्ट ने इस बाबत दो सप्ताह का समय दिया है.
कोर्ट ने कहा कि जनहित याचिका शहरी क्षेत्रों में विशेष रूप से महिलाओं के लिए सड़क किनारे उपलब्ध शौचालय और अन्य सुविधाओं के संबंध में एक महत्वपूर्ण मुद्दे से संबंधित है. यह मुद्दा बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह नागरिकों के स्वास्थ्य और विभिन्न स्थानों पर स्वच्छ और सार्वजनिक शौचालयों को साफ सुथरी स्थिति में रखने के अधिकारों के इर्द-गिर्द घूमता है. मानवीय गरिमा के साथ जीवन का अधिकार मानव सभ्यता के कुछ बेहतरीन पहलुओं को समाहित करता है जो जीवन को जीने लायक बनाते हैं. कोई भी इंसान तब तक गरिमा के साथ नहीं रह सकता जब तक बुनियादी स्वच्छता बनाए रखने के लिए सार्थक सुविधाएं न हों.
भारत का संविधान तब तक सार्थक नहीं हो सकता जब तक जनता को, खासकर महिलाओं को, स्वच्छ शौचालयों की सुविधा नहीं दी जाती. ये सुविधाएं कस्बों, बस स्टैंड, बैंकों, सार्वजनिक कार्यालयों, नगरपालिका कार्यालयों, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स आदि में विभिन्न स्थानों पर प्रदान की जानी हैं. कोर्ट ने कहा कि इसे समझने के लिए किसी रॉकेट साइंस की आवश्यकता नहीं है. स्वच्छ और उचित शौचालय सुविधाओं की कमी के कारण गंभीर समस्याएं हो सकती हैं. मामले पर अगली सुनवाई 3 जुलाई को होगी.
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