लखनऊ :उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की तीन साल पहले की बदरंग तस्वीर विधानसभा में सामने आई है. महालेखा परीक्षा नियंत्रक की साल 2021 की रिपोर्ट में हर तरफ कमियां दिखाई दी हैं. 3 साल बाद प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में सरकार से सिफारिश की गई है कि तत्काल तेज प्रयास कर के प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं की कमियों को दूर किया जाए. चिकित्सकों, पैरामेडिकल स्टाफ और नर्सों की कमी के चलते मरीजों को काफी परेशानी हो रही है.
डॉक्टर, नर्स की कमी:यूपी में स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत खराब है. सरकारी अस्पतालों में 38% डॉक्टर, 46% नर्स की कमी है. इसकी वजह से मरीजों को इलाज नहीं मिल पा रहा है. प्राइमरी स्तर पर स्थिति और भी खराब है. यह खुलासा भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक यानी कैग की रिपोर्ट-2024 में हुआ है. कैग की रिपोर्ट विधानसभा में पेश की गई. सबसे ज्यादा चौंकाने वाला खुलासा एम्बुलेंस सर्विस को लेकर हुआ है. प्राइवेट कंपनी को सौंपी गई यह सर्विस ठीक तरीके से नहीं चल रही है. इसके आंकड़ों पर संदेह जताया गया है. हमीरपुर, जालौन, कानपुर नगर, सहारनपुर और उन्नाव में 148 पुरुष मरीजों को इलाज के लिए महिला अस्पताल पहुंचा दिया गया.
झांसी मेडिकल कॉलेज में 15 नवंबर को आग लगने से 10 बच्चे जिंदा जल गए. CAG रिपोर्ट में बताया गया कि आग से रोकने के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं. 75 जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और राजकीय मेडिकल कॉलेजों में से सिर्फ दो जिला अस्पताल के पास मुख्य अग्निशमन अधिकारी से जारी अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) है.
समय पर नहीं पहुंच रही 108 एम्बुलेंस:चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की CAG रिपोर्ट 2021 की है. तब सुरेश खन्ना चिकित्सा शिक्षा मंत्री थे. वहीं, आशुतोष टंडन चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री थे. सीएजी रिपोर्ट में उजागर हुआ है कि एम्बुलेंस सेवा 108 तय समय अवधि में मरीजों तक नहीं पहुंच रही थी. 108 सेवा संचालित करने वाली फर्म ने कॉन्ट्रैक्ट की शर्त का भी पालन नहीं किया है. शर्त के अनुसार सभी एम्बुलेंस को रोज पांच चक्कर (ट्रिप) लगाने हैं और 120 किलोमीटर की दूरी तय करनी है. यूपी के पूर्व के 45 जिलों में 49,309 ट्रिप, पश्चिमी के 26 जिलों में 15,562 ट्रिप किए. CAG ने माना है कि इसे पूरा नहीं किया गया है. पूर्व के पांच जिलों में 67,018 और पश्चिमी के दो जिलों में 5,219 किलोमीटर की कमी थी. करार हुआ था कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अधिकतम 15 मिनट के अंदर एम्बुलेंस पहुंच जानी चाहिए.
मरीजों को भर्ती करने की सुविधा नहीं:सीएजी ने खुलासा किया है कि 909 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में से 45 फीसदी में मरीज को वार्ड में भर्ती करने की सुविधा नहीं है. 55 फीसदी सीएचसी केवल दिन में ही चिकित्सा सेवाएं दे रहे हैं. सीएजी ने खुलासा किया है कि प्रदेश में सार्वजनिक स्वास्थ सेवा के लिए 38% डॉक्टर, 46% नर्स और 28 प्रतिशत पैरामेडिक्स स्टाफ की कमी थी. आयोगों ने भर्ती में ज्यादा समय लिया, जिस कारण पद खाली हैं.
सीएजी ने उजागर किया है कि 71 फीसदी स्वास्थ्य इकाइयों में जैव अपशिष्ट का निस्तारण (ऑर्गेनिक वेस्ट का डिस्पोजल) प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के लाइसेंस के बिना हो रहा है. कोई भी अस्पताल पंजीकरण एवं विनियमन अधिनियम 2010 के तहत रजिस्टर्ड नहीं था. 16 में से चार जिला अस्पताल और दो राजकीय मेडिकल कॉलेजों के पास एक्सरे मशीनों के संचालन के लिए परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड का लाइसेंस नहीं है. इतना ही नहीं, सीएजी ने यह भी खुलासा किया है कि 16 जिला अस्पतालों में से केवल जालौन, कानपुर नगर और सहारनपुर के जिला अस्पतालों में सभी दवाइयां अलग-अलग अवधि में उपलब्ध थी. बाकी जिला अस्पतालों में दवाइयां पर्याप्त उपलब्ध नहीं थीं. जिला अस्पतालों में ऑपरेशन थिएटर की व्यवस्था पूरी नहीं है.
अधिकांश उपकेंद्र जर्जर:सीएजी ने कुशीनगर, जालौन, उन्नाव, हमीरपुर में अस्पताल बिल्डिंग के नमूने लेकर उनकी जांच की. इसमें बुनियादी ढांचे में रखरखाव की कमी उजागर हुई. 53 प्रतिशत स्वास्थ्य इकाइयों में नमी, सीलन थी. अधिकांश उप केंद्रों के भवन जर्जर मिले. जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में वार्ड और बेड की कमी मिली. 26 फीसदी अस्पतालों में इंजेक्शन, ड्रैसिंग रूम नहीं थे. 29 प्रतिशत पीएचसी में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं थी. 21 फीसदी पीएची में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग शौचालय नहीं थे. 21 फीसदी पीएचसी में बिजली भी नहीं थी.
सबसे ज्यादा देरी से पूर्वी यूपी के जिलों में पहुंच रही एम्बुलेंस:एम्बुलेंस पहुंचने में सबसे ज्यादा देरी यूपी के पूर्वी जिलों में हो रही है. यहां अधिकतम 3.23 घंटे की और पश्चिम यूपी के जिलों में अधिकतम 1.56 घंटे की देरी से भी एम्बुलेंस पहुंची है, जबकि इसे 15 मिनट में पहुंच जाना चाहिए. सीएजी ने ये भी खुलासा किया है कि पहुंचाए गए केस में से सिर्फ 25 से 50 फीसदी केस का ही वैरिफिकेशन अस्पतालों ने किया है, जबकि नियमानुसार सभी केस का होना चाहिए.
27.6 करोड़ रुपए की दवाइयां एक्सपायर हुईं:सीएजी रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि वर्ष 2021 में उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लाई कॉर्पोरेशन लिमिटेड के स्टोर में 27.06 करोड़ रुपए की दवाइयां एक्सपायर हुईं. इतनी बड़ी संख्या में दवाइयां एक्सपायर होने का मुख्य कारण स्टोर रूम की ओर से दवाइयां अस्वीकार करना, दवाइयों की मांग नहीं करना, दवाइयों की कम खपत और कोविड-19 के दौरान सामान्य रोगियों की संख्या में कमी है.
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