हमीरपुर: पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश की 4 लोकसभा सीटों में से हमीरपुर लोकसभा सीट ऐसी है. जिसका अधिकतर हिस्सा मैदानी है और पंजाब से लगता है. ऐसे में इस इलाके के मौसम से लेकर भाषा, बोली और संस्कृति तक ऊपरी या प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों से कुछ अलग है. वैसे तो देशभर में ज्यादातर सीटों पर सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का ही बोलबाला रहा है लेकिन बीजेपी के अस्तित्व में आने के बाद हमीरपुर सीट पर कमल खिलता रहा है.
लगातार 8 बार खिल चुका है कमल
हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र में पिछले 8 बार से जब भी चुनाव हुए हैं तो जीत बीजेपी को मिली है. 1998 से ये सिलसिला बरकरार है. हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र में 1998, 1999, 2004, 2009, 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव के अलावा 2007 और 2008 में हुए उपचुनाव में भी बीजेपी को जीत मिली थी. ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि ये लोकसभा क्षेत्र बीजेपी का गढ़ रहा है. 1998 से पहले 1996 में जरूर कांग्रेस को जीत मिली थी लेकिन उससे पहले 1989 और 1991 लोकसभा चुनाव में भी यहां की जनता ने बीजेपी उम्मीदवार को ही चुना था.
जीत का चौका लगा चुके हैं अनुराग ठाकुर
हमीरपुर लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर लगातार 4 बार चुनाव जीत चुके हैं. पार्टी ने इस बार भी उन्हें ही मैदान में उतारा है. अनुराग ठाकर ने 2008 उपचुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे इसके बाद से वो लगातार 2009, 2014 और 2019 में चुनाव जीत चुके हैं. इससे पहले बीजेपी के ही सुरेश चंदेल, प्रेम कुमार धूमल और कांग्रेस के नारायण चंद हमीरपुर सीट से तीन-तीन बार लोकसभा चुनाव जीते थे. नारायण चंद 1971, 1980 और 1984 लोकसभा चुनाव में जीते जबकि सुरेश चंदेल ने 1998, 1999 और 2004 में लगातार तीन बार संसद पहुंचे थे. अनुराग ठाकुर के पिता प्रेम कुमार धूमल भी 3 बार हमीरपुर सीट से चुनाव जीते थे. उन्होंने 1989 और 1991 लोकसभा चुनाव के अलावा 2007 उपचुनाव में जीत हासिल की थी.
1967 में अस्तित्व में आई सीट
1967 में हमीरपुर लोकसभा सीट पहली बार अस्तित्व में आई थी. उस लोकसभा चुनाव के दौरान पहली और आखिरी बार हिमाचल में 6 सीटें थीं. जिसमें हमीरपुर के अलावा महासू, शिमला, कांगड़ा, चंबा और मंडी शामिल थीं. उसके बाद से हिमाचल में 4 लोकसभा सीटें हैं. 1977 में चली जनता दल की आंधी के दौरान यहां भी जनता दल के रणजीत सिंह ने चुनाव जीता था. इसके अलावा 1967 से 1984 तक कांग्रेस का ही एकछत्र राज रहा. जिसे 1989 में पहली बार बीजेपी उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल ने चुनाव जीतकर खत्म किया. इसके बाद सिर्फ 1996 के चुनावों में ही कांग्रेस उम्मीदवार यहां से जीत पाया. तब से अब तक ये सीट बीजेपी की झोली में ही जाती रही है.