बीकानेर:गुरु और शिष्य की परंपरा का महत्व बताने वाला गुरु पूर्णिमा पर्व इस बार रविवार 21 जुलाई को आएगा. धर्म शास्त्रों में उल्लेख है कि गुरु का स्थान देवताओं से भी ऊपर है. जीवन में पथ प्रदर्शक की भूमिका में गुरु को माना गया है, इसलिए कहा गया हैं कि गुरु गोविंद दोनों खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाय. गुरु मानव जीवन में शिक्षा और उपदेश के माध्यम से अध्यात्मिक उन्नति के मार्ग को प्रशस्त करता है. यह दिवस महर्षि वेदव्यास के जन्म की स्मृति में व्यास पूर्णिमा भी कहलाता है. महर्षि वेदव्यास को आदि गुरु माना जाता है. उन्हें श्रीमद्भागवतगीता, महाभारत, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा और पुराणों का रचियता माना जाता है. गुरु पूर्णिमा का बौद्ध धर्म में भी विशेष महत्व है, क्योंकि इसी दिन भगवान गौतम बुद्ध ने सारनाथ, उत्तर प्रदेश में पहला धम्म या धार्मिक उपदेश दिया था.
भगवान शिव ने दिया था ज्ञान: पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू बताते हैं कि हमारे धर्म शास्त्रों में गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म संस्कृति को बताती है. आदिगुरु परमेश्वर शिव ने समस्त ऋषि मुनियों को शिष्य के रूप में ज्ञान प्रदान किया था. गुरु पूर्णिमा के दिन घरों मन्दिरों और मठों में गुरुओं की पूजा अर्चना और गुरु पादुका पूजन के साथ संन्यासी महात्मा लोग व्यास पीठ की पूजा करते हैं और मंदिरों मठों में रुद्राभिषेक कार्यक्रम होते हैं. संत संन्यासी महात्मा इस दिन से चातुर्मास व्रत की शुरुआत करते हैं और आध्यात्मिक धार्मिक अनुष्ठान करते हैं.
त्रिदेव के समान दर्जा: पञ्चांगकर्ता पंडित किराडू बताते हैं कि हमारे धर्म शास्त्रों सनातन धर्म में गुरु पूर्णिमा का अत्यधिक महत्त्व है. धर्मशास्त्रों में गुरु का सर्वोच्च पद बतलाते हुए गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश और साक्षात परम ब्रह्म माना गया है. सही अर्थ में गुरु ही अपने शिष्यों का मार्गदर्शन करके उचित और सही दिशा में बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है. गुरु शब्द से तात्पर्य जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है और गुरु का तात्पर्य आध्यात्मिक शिक्षक से है. मनुष्य का प्रथम गुरु उसके माता पिता होते हैं.