बलरामपुर (उज्जवल तिवारी): ग्राम पंचायत खड़िया दामर में पहाड़ी की ऊंची चोटी पर मौजूद है आश्रित ग्राम बचवार. आठ किलोमीटर की खड़ी पहाड़ी और पगडंडियों के रास्ते से चलकर ही यहां तक पहुंचा जा सकता है. बचवार पहाड़ी पर करीब 35 घर हैं, जहां आदिवासी जनजाति समाज के लगभग 120 लोग रहते हैं.
बुनियादी सुविधाओं से महरुम: यहां दूरस्थ बचवार पहाड़ी पर रहने वाले ग्रामीण अपने दैनिक जीवन की उपयोगी जरूरतों के लिए पहाड़ी से नीचे नजदीकी गांव और जिला मुख्यालय के बाजार में जाते हैं. यहां के स्थानीय ग्रामीण पैदल ही पहाड़ी के कठिन रास्तों को पार कर शासकीय राशन दुकान पर राशन लेकर वापस पहाड़ी पर आते हैं.
बिजली पानी की किल्लत: यहां की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां तक सड़क बिजली और पेयजल की सुविधा उपलब्ध कराना काफी जटिल है. पंचायत चुनाव से पहले ईटीवी भारत संवाददाता ने बचवार पहाड़ी पर पहुंचकर ग्रामीणों की समस्याओं और मांगों को लेकर उनसे खास बातचीत की.
ग्राम पंचायत खड़िया दामर: बचवार पहाड़ी पर रहने वाले ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने नल-जल योजना के तहत नल के कनेक्शन भी लगाए गए लेकिन अब तक पानी नहीं पहुंच सका है. बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं यहां नहीं पहुंच सकी है.
दुर्गम पहाड़ियों के बीच मौजूद है बचवार:बलरामपुर विकासखंड के ग्राम पंचायत खड़िया दामर अंतर्गत आश्रित ग्राम बचवार पहाड़ी की ऊंची चोटी पर स्थित है. यह पहुंच विहीन क्षेत्र है, क्योंकि बचवार पहाड़ी तक पहुंचने का एकमात्र पगडंडी रास्ता है, जो दुर्गम पहाड़ियों के बीच से होकर गुजरता है.
पहाड़ पर रोज चढ़ना उतरना पड़ता है: यहां पहाड़ी की चोटी पर रहने वाले आदिवासी जनजाति के लोग अपनी छोटी बड़ी सभी तरह की जरुरतों के लिए पहाड़ी से नीचे पैदल चलकर आते हैं और फिर वापस पहाड़ी पर चले जाते हैं. शासन प्रशासन के द्वारा इन्हें पहाड़ी से नीचे वापस लाकर बसाने की तमाम कोशिशें भी अब तक असफल रहीं. यही कारण है कि यहां के ग्रामीण आधुनिक युग में भी प्राचीन काल में जीने को मजबूर हैं.