कोटा. प्रदेश के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने कहा कि नई शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) से 400 कुलपति, 1000 शिक्षाविद और 1400 एक्सपर्ट ने चिंतन मनन किया है, तब जाकर यह शिक्षा नीति बनी है. इसमें हर पक्ष पर काम किया गया है. इससे हमारे देश मे बदलाव करीब 15 साल बाद नजर आएगा. वे कोटा में वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के 17वां दीक्षांत समारोह में शुक्रवार को सम्बोधित कर रहे थे. यह समारोह यूनिवर्सिटी में संत सुधागर सभागार में आयोजित था. राज्यपाल बागड़े ने यह भी कहा कि एक अच्छा इंजीनियर बनने के लिए पढ़ाई के साथ-साथ प्रैक्टिकल करना जरूरी है इसीलिए पढ़ाई में प्रैक्टिकल का काफी अहम योगदान रहता है.
राज्यपाल बागड़े ने कहा कि यूनिवर्सिटियों को नैक की ग्रेड लेने पर प्रयास करना चाहिए. शिक्षा से अंधकार भी खत्म होता है. उन्होंने कहा कि विनोबा भावे ने कहा कि स्वतंत्र भारत में जब झंडा बदल गया, तभी शिक्षा नीति भी बदलना चाहिए. हमारा देश 800 से 900 साल गुलाम रहा और हमारी संस्कृति को मिटाने के प्रयास किए गए. देश मे कई जगह देव धर्म को मिटाने की कोशिश भी की गई, इसीलिए देवालय तोड़े गए. यह प्रहार भी शिक्षा नीति के जरिए किया गया है. अंग्रेजों ने भारतीयों की बौद्धिक क्षमताएं नहीं बढ़े, ऐसे प्रयास किए. उन्होंने पहले यूनिवर्सिटी भी अरबी भाषा में ही खोली थी. मराठवाड़ा में मराठी स्कूल नहीं थे, उर्दू सिखाई गई. क्योंकि हैदराबाद के निजाम का राज था. समारोह में मुख्य वक्ता गुरुनानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर के कुलपति प्रो. करमजीत सिंह और अध्यक्षता कुलपति प्रो. कैलाश सोडाणी ने की.
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असफलताओं से घबराएं नहीं है, कारण खोजे : दीक्षांत समारोह में भाषण देते हुए गुरुनानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर के कुलपति प्रो. करमजीत सिंह ने कहा कि इंसान मेहनत व परिश्रम करना भूल रहा है. जीवन में कुछ ऐसा करें, जिससे समाज मे पहचान हो. हमें ईश्वर ने ज्ञान इंद्रियां दी है. मेहनत और साहस के जरिए कुछ भी हासिल करना आसान है. चुनौती को पार पाने में सक्षम है. आलस के चलते हम पीछे रह जाते हैं, पछताने के अलावा कुछ नहीं रहता है, यह सफलता को नष्ट करता है. प्रो. करमजीत सिंह ने कहा कि असफलताओं से घबराना नहीं चाहिए, हमें सफलता के लिए लगातार प्रयास करने चाहिए. असफलता के कारण खोजने चाहिए. उन्होंने यह भी कहा की जन्म मरण भगवान के हाथ है, लेकिन जीना कैसे है, यह मनुष्य खुद तय कर सकता है.
वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के 17वां दीक्षांत समारोह (फोटो ईटीवी भारत कोटा) तीनों चांसलर पदक पर छात्राओं का कब्जा: दीक्षांत समारोह में कुलपति पदक मनीषा चौधरी, रीना शर्मा और सरोज यादव को दिया गया. पांच रिसर्चर प्रज्ञा भार्गव, राजेंद्र सिंह शेखावत, राजेश कंवर राठौड़, योगिता व्यास और आशाराम खटीक को पीएचडी की डिग्री भी दी गई. बैचलर ऑफ जर्नलिज्म में करुणा शंकर त्रिपाठी मेमोरियल स्वर्ण पदक विश्राम लाल, महिपाल सिंह और जयदीप शर्मा को दिया गया. समारोह में जून व दिसंबर 2022 और जून 2023 की परीक्षाओं में सफल रहे 60506 स्टूडेंट्स को उपाधियां भी दी गई. जिसमें टॉपर रहने वाले 89 स्टूडेंट्स को गोल्ड मेडल दिए गए. विश्वविद्यालय की सभी डिग्रियों को डिजिलॉकर पर अपलोड किया गया है. समारोह में कुलसचिव सरिता, परीक्षा नियंत्रक प्रो. बी अरूण कुमार, सतत शिक्षा निदेशक प्रो. सुबोध कुमार अग्निहोत्री सहित कई अतिथि मौजूद रहे.
दीक्षांत समारोह (फोटो ईटीवी भारत कोटा) पुरुषों को भी मिले फ्री शिक्षा :कुलपति प्रो. कैलाश सोडाणी ने कहा कि देश के 18 खुला विश्वविद्यालय में दूसरे नंबर पर कोटा खुला विश्वविद्यालय है, जिसमें इतनी बड़ी संख्या में विद्यार्थी पंजीकृत है. विश्वविद्यालय को केवल 10 करोड़ रुपए की ग्रांट राज्य सरकार से मिलती है. इसकी एवज में एक लाख विद्यार्थी, यहां पर पढ़ते हैं. जबकि दूसरे विश्वविद्यालय को इतने बच्चों को पढ़ाने के लिए 50 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ते हैं, जबकि वीएमओयू में महिलाओं के लिए फ्री शिक्षा है. बीते साल 38 हजार छात्राओं को फ्री एजुकेशन मिली है. इसका फायदा कितने परिवारों को मिला है, इस तरह से पुरुषों की भी डिस्टेंस एजुकेशन फ्री कर दी जाए, 1 लाख से ज्यादा परिवारों को फायदा होगा.
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प्रो. सोडाणी ने कहा कि कोरोना में भी विश्वविद्यालय ने घर बैठे हुए कैंडिडेट को शिक्षा दी है. इसके अलावा बीते साल पीटीईटी और डीएलएड की परीक्षा निर्बाध करवाई है, जिसमें 10 लाख कैंडिडेट बैठे थे. एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज ने ओपन यूनिवर्सिटी को खेल प्रतियोगिता से बाहर रखा हुआ था. अथक प्रयास के बाद 40 साल के इतिहास में पहली बार खेल प्रतियोगिता खुला विश्वविद्यालय में आयोजित हुई.
मल्टीनेशनल कंपनियां हमारे उद्यमियों को बेईमान बताने पर तुली : प्रो. कैलाश सोडाणी ने कहा कि मल्टीनेशनल कंपनियां हमारे उद्यमियों को बेईमान पर तुली हुई है. जबकि सरकार के विचार 4 करोड़ रोजगार देती है, कृषि के बाद उद्योग के क्षेत्र में ही सबसे ज्यादा रोजगार है. यह नीति चल रही है कि भारत का व्यक्ति धनी या फिर देश के बाहर भी रोजगार कैसे दे सकता है. ये विदेशी फूड चेन के मालिक को नहीं जानते हैं, उनके मालिक को नहीं जानते हैं. जबकि हम कोटा की किसी कचोरी बेचने वाले की 10 रुपए की कचौरी खाकर उसे बदनाम करते हैं. उसमें कमियां निकालते हैं.