सहारनपुर:कुम्हारों की जिंदगी को रौशन करने के लिए सरकार की तमाम योजनाओं और वोकल फॉर लोकल जैसे नारों के बाद भी इस दिवाली पर भी उनके घरों में अंधियारा छाया हुआ है. चाइनीज झालरों के बढ़ते चलन और मिट्टी सहित दूसरे सामनों की बढ़ी कीमतों के चलते मिट्टी के दियों की डिमांड साल दर साल घटती जा रही है. ऐसे में सदियों से पारंपरिक पेशा से जुड़े कुम्हार समाज के सामने रोजी रोटी का संकट गहराने लगा है. जिसके चलते वे अपने परंपरागत धंधे को छोड़ मेहनत मजदूरी करने लगे हैं. दिपावली पर मिट्टी का सामान तैयार करना उनके लिए महज एक सीजनल धंधा बनकर रह गया है.
मिट्टी के बर्तनों के कारोबार से जुड़े कुम्हार समाज के लोगों का कहना है कि, दिपावली ओर गर्मी के सीजन में मिट्टी से निर्मित बर्तनों की मांग थोड़ी बढ़ जाती हैं, लेकिन बाद के दिनों में वे मजदूरी कर किसी तरह अपना ओर अपने परिवार का भरण-पोषण कर पाते हैं. सरकार की ओर से भी किसी तरह की सहायता भी नहीं मिल रही है. वहीं बाजारों में इलेक्ट्रोनिक्स झालरों की चमक-दमक के बीच मिट्टी के दीपक की रोशनी धीमी पड़ती जा रही हैं, इसके चलते लोग दीपों का उपयोग सिर्फ पूजा के लिए ही करते हैं. यही कारण हैं कि इस पेशा को लोग धीरे-धीरे छोड़ते जा रहे हैं.
सहारनपुर जिले से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तहसील के घाड़ इलाके के गांव भाकरोड निवासी संजय कुमार का कहना हैं कि, बर्तन बनाने के चिकनी मिट्टी मिलने में काफी परेशानी होने लगी हैं. पहले मिट्टी बहुत सस्ती और आसानी से मिल जाती थी लेकिन अब मिट्टी बहुत महंगी हो गई हैं. मिट्टी की एक ट्रैक्टर ट्राली साढ़े तीन हजार से चार हजार रुपए में खरीदनी पड़ रही है. सिर्फ अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज को जिंदा रखने का प्रयास कर रहा हैं.