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केदारनाथ धाम को लेकर नये रास्तों की खोज तेज, तलाशे जा रहे वैकल्पिक विकल्प, भविष्य में आसान होगी यात्रा - Kedarnath Dham Rudraprayag - KEDARNATH DHAM RUDRAPRAYAG

Kedarnath Dham Rudraprayag श्रद्धालुओं के लिए खुशखबरी है, क्योंकि भविष्य में केदारनाथ यात्रा आसान होने वाली है. दरअसल चार सदस्यीय दल ने त्रियुगीनारायण-गुमसुड़ा-गरूड़चट्टी-केदारनाथ (लगभग 14 किमी) नये वैकल्पिक पैदल ट्रैक की खोज कर ली है. अधिकांश भूभाग मखमली घास से आच्छादित है.

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केदारनाथ धाम को लेकर नये रास्तों की खोज तेज (Etv Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 1, 2024, 10:26 PM IST

रुद्रप्रयाग: त्रियुगीनारायण से केदारनाथ के लिए निकला चार सदस्यीय दल सुरक्षित त्रियुगीनारायण पहुंच गया है. चार सदस्यीय दल ने त्रियुगीनारायण-गुमसुड़ा-गरूड़चट्टी-केदारनाथ (लगभग 14 किमी) नये वैकल्पिक पैदल ट्रैक की खोज की है, जो कि सबसे कम दूरी का है. इस पैदल ट्रैक को दल ने मात्र छः घंटे में तय किया है, जबकि भविष्य में यह पैदल ट्रैक सबसे आसान व सरल होगा.

पैदल ट्रैक के विकसित होने से तोषी गांव में बढ़ेंगी पर्यटन गतिविधियां:16-17 जून 2013 की आपदा के बाद वन विभाग ने त्रियुगीनारायण-वासुकीताल-केदारनाथ पैदल ट्रैक को विकसित करने की कवायद शुरू की थी, लेकिन यह पैदल ट्रैक लगभग 20 किलोमीटर दूर व जोखिम भरा है. दल के अनुसार गुमसुड़ा-गरूड़चट्टी के मध्य पैदल ट्रैक पर चट्टान कटिंग की सख्त जरूरत है. अगर प्रदेश सरकार की पहल पर वन विभाग गुमसुड़ा-गरुड़चट्टी के मध्य चट्टान काटकर नये वैकल्पिक पैदल ट्रैक को विकसित करने के प्रयास करता है, तो त्रियुगीनारायण से केदारनाथ पहुंचने के लिए यह पैदल ट्रैक सबसे कम दूरी का होगा और इस पैदल ट्रैक के विकसित होने से सीमांत तोषी गांव में तीर्थाटन एवं पर्यटन गतिविधियों, होम स्टे योजना और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा मिलेगा.

सोन नदी पर पुल का निर्माण जरूरी:दल के अनुसार इस पैदल ट्रैक पर जगह-जगह छोटे नाले हैं और अधिकांश भू-भाग सुरम्य मखमली बुग्यालों से आच्छादित है. पैदल ट्रैक को विकसित करने के साथ सोन नदी पर पुल का निर्माण अति आवश्यक है, क्योंकि 2013 की आपदा के बाद वन विभाग व आपदा प्रबंधन द्वारा सोन नदी पर ट्राली का निर्माण किया गया था, लेकिन रख-रखाव के अभाव में वर्तमान समय में ट्राली जर्जर हो चुकी है.

अधिकांश भूभाग मखमली घास से आच्छादित:दल में शामिल गीता राम सेमवाल ने बताया कि त्रियुगीनारायण गुमसुड़ा-गरूड़चट्टी-केदारनाथ वैकल्पिक पैदल ट्रैक सबसे सरल व आनंद दायक है. इस पैदल ट्रैक का अधिकांश भूभाग मखमली घास से आच्छादित है और प्रकृति ने गुमसुड़ा-गरूड़चट्टी के भूभाग के पग-पग को अपने वैभवों का भरपूर दुलार दिया है. दल में शामिल पूर्णानंद भट्ट ने बताया कि तोषी गांव के निकट सोन नदी को पार करना जोखिम भरा है. इस पैदल ट्रैक का सात किमी भूभाग वनाच्छादित है और पांच किमी के भूभाग में सुरम्य मखमली बुग्याल फैला हुआ है, इसलिए इस भूभाग में पर्दापण करने से मन में असीम शांति की अनुभूति होती है.

दल ने कहा पैदल ट्रैक के जरिए पास से दिखता है हिमालय:दल में शामिल मुकेश भट्ट ने बताया कि यह पैदल मार्ग बहुत खूबसूरत है और गुमसुड़ा से आगे पर्दापण करने पर हिमालय को अति निकट से देखा जा सकता है. उन्होंने बताया कि गुमसुड़ा से डेढ़ किमी आगे ऊंचे शिखर से खाम-मनणा व हिमालय के आंचल में फैले बुग्यालों का नयनाभिराम मन को प्रसन्न करता है. दल में शामिल कामाक्षी प्रसाद कुर्माचली ने बताया कि त्रियुगीनारायण-गुमसुड़ा-गरूड़चट्टी-केदारनाथ पैदल ट्रैक को विकसित करने की प्रदेश सरकार व वन विभाग प्रयास करता है, तो प्रकृति प्रेमी व सैलानी इस भूभाग में फैली प्रकृति के खुबसूरती रूप से रूबरू होंगे.

मार्ग में अनेक प्रजाति के फूल: त्रियुगीनारायण-गुमसुड़ा-गरूड़ाचट्टी-केदारनाथ पैदल ट्रैक पर लगभग पांच किमी के भूभाग में जया, विजया, कुखणी, माखुणी, रातों की रानी, गरूणपंजा, वारूण हल्दी सहित अनेक प्रकार के पुष्पों व बेस कीमती जड़ी-बूटियों के पेड़ हैं. तोषी गांव के प्रधान जगत सिंह रावत ने बताया कि त्रियुगीनारायण-गुमसुड़ा-गरूड़चट्टी-केदारनाथ पैदल ट्रैक पर सोन नदी से गुमसुड़ा तक मात्र सात किमी का सफर चढ़ाई वाला है, शेष पैदल ट्रैक समतल व सीधा है.
आपदा के बाद पैदल ट्रैक बना जीवनदायक:वर्ष 2013 की आपदा के बाद लगभग 12 हजार तीर्थ यात्री व व्यापारी केदारनाथ, गरू़चट्टी, घिनुरपाणी व रामबाड़ा यात्रा पड़ावों से जंगलों के रास्ते त्रियुगीनारायण व तोषी पहुंचे थे. 2013 की आपदा के बाद वन विभाग ने त्रियुगीनारायण-गुमसुड़ा-वासुकीताल-केदारनाथ पैदल ट्रैक को करोड़ों रुपये की लागत से विकसित किया गया था, लेकिन पैदल ट्रैक अधिक लंबा व जोखिम भरा है. 31 जुलाई 2024 को केदारनाथ यात्रा के विभिन्न पड़ावों पर दैवीय आपदा के बाद लगभग 150 तीर्थ यात्री व व्यापारी भी त्रियुगीनारायण व तोषी गांव पहुंचे थे. दोनों आपदाओं में त्रियुगीनारायण व तोषी के ग्रामीणों द्वारा जंगलों से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचने वालों की यथासंभव मदद की गई थी.

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