देहरादून टपकेश्वर मंदिर (ETV BHARAT) देहरादून: आजकल भगवान शिव की भक्ति और आराधना का सावन का महीना चल रहा है. इस महीने में भगवान शिव की भक्ति की जाती है. प्रदेश के शिव मंदिरों में भक्तों का जमावड़ा देखने को मिल रहा है. देहरादून के टपकेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव का जलाभिषेक किया जा रहा है. भगवान शिव के इस पवन सावन महीने में देहरादून के प्रसिद्ध टपकेश्वर महादेव में इस विशेष दिनों में भगवान शिव के चार अलग अलग स्वरूपों के दर्शन कर सकते हैं. जिसकी अपनी अपनी अलग मान्यताएं हैं.
इन दिनों पूरी देवभूमि भगवान शिव के जयकारों से गुंजायमान है. देवभूमि का कण कण इस वक्त शिवमय है. तमाम शिवालयों में शिव भक्तों का सैलाब देखने को मिल रहा है. आज सावन महीने का दूसरा सोमवार है. इस मौके पर ईटीवी भारत आपको उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में मौजूद भगवान शिव के प्रसिद्ध पौराणिक टपकेश्वर महादेव मंदिर के बारे में बताने जा रहा है. इस मंदिर में भगवान शिव के चार अलग-अलग स्वरूपों के दर्शन होते हैं.
टपकेश्वर में विराजमान भगवान शिव के चार रूप:देहरादून के गाड़ी के क्षेत्र में मौजूद प्रसिद्ध भगवान शिव के पौराणिक टपकेश्वर महादेव के मुख्य पुजारी भारत गिरी जी महाराज बताते हैं कि टपकेश्वर महादेव में भगवान शिव के चार पौराणिक स्वरूप मौजूद हैं.
- देवेश्वर - महीने दो बार, (त्रियोदशी)
- तपेश्वर - गुरुवार, रविवार
- दुधेश्वर - महीने में एक बार (पूर्णिमा)
- टपकेश्वर - सोमवार
देवेश्वर महीने दो बार, (त्रियोदशी): देहरादून के टपकेश्वर महादेव शिवालय के मुख्य पुजारी भरत गिरी जी महाराज बताते हैं द्वापर युग में देहरादून के टपकेश्वर महादेव में देवताओं ने शिव की आराधना की उनकी पूजा अर्चना की. भगवान शिव ने देवेश्वर स्वरूप में देवताओं को दर्शन दिए. इसके बाद देवेश्वर के रूप में यहां भगवान शिव को पौराणिक समय में पूजा जाने लगे. यहां भगवान शिव देवेश्वर के रूप में विराजमान हुए. भारत गिरी जी महाराज बताते हैं देवेश्वर स्वरूप में भगवान शिव महीने में दो बार आने वाली त्रयोदशी पर प्रकट होते हैं. उसे दिन देवेश्वर स्वरूप में उनकी पूजा अर्चना की जाती है. उनको भोग लगाया जाता है.
तपेश्वर - गुरुवार, रविवार:द्वापर युग के बाद त्रेता युग में द्रोणनगरी के इस टपकेश्वर शिवालय में भरत गिरी जी महाराज बताते हैं ऋषियों ने भगवान शिव की आराधना की उनकी तपस्या की और जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने तमाम ऋषियों को यहां तपेश्वर महादेव के रूप में दर्शन दिए. इसी दौरान द्रोणाचार्य इस पावन धरती पर आए. उन्होंने भगवान शिव की पूजा अर्चना की. उन्हें यहां पर अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान प्राप्त हुआ. द्रोणाचार्य को भी इसी जगह पर भगवान शिव ने तपेश्वर के रूप में दर्शन दिए. इस तरह से तपेश्वर भगवान के रूप में किसी भी विद्यार्थी, परीक्षार्थी को मनोकामना मंगनी होती है. वह टपकेश्वर महादेव में गुरुवार, रविवार को होने वाले भगवान शिव के श्रृंगार के दौरान होने वाली विशेष पूजा में शामिल होता है. भगवान शिव उसकी मनोकामना पूरी करते हैं.
दुधेश्वर - महीने में एक बार (पूर्णिमा):तपेश्वर महादेव के बाद का प्रसंग आता है. दूधेश्वर महादेव से जुड़ा हुआ. भरत गिरी महाराज बताते हैं तपेश्वर महादेव के बाद जब लंबे समय तक यहां पर द्रोणाचार्य ने तपस्या की और अपनी कर्मभूमि से बनाया. उसके लंबे समय बाद जब उन्हें पुत्र के रूप में अश्वत्थामा की प्राप्ति हुई. बताया जाता है द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का जब जन्म हुआ तो उनके आहार की पूर्ति उनकी माता के द्वारा नहीं की गई. इस दौरान एक बार फिर द्रोणाचार्य ने भगवान शिव की तपस्या की. कड़ी तपस्या की. लगभग 6 माह तक एक टांग पर खड़े होकर तपस्या करने के बाद बाद भगवान शिव ने पूर्णमासी के दिन एक बार फिर से इसी जगह पर दूधेश्वर महादेव के रूप में प्रकट होकर द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा के आहार की पूर्ति की. यहां शिवलिंग के ऊपर तब से दूध गिरता रहा. तब से महीने की हर पूर्णिमा के दिन यहां पर भगवान शिव को दूधेश्वर के रूप में पूजा जाता है.
टपकेश्वर -सोमवार: जब तक यहां दूध गिरता रहा तब तक इस दूधेश्वर महादेव के रूप से ही जाना जाता था, लेकिन, कालांतर के बाद कलयुग आया. कलयुग में लगातार पाप बढ़ाने के बाद यहां दूध आना बंद हो गया. दूध की जगह पानी ने ले ली. टपकेश्वर महादेव के मुख्य पुजारी भरत गिरी महाराज बताते हैं आज कलयुग में भी भगवान शिव के शिवाले में चमत्कार देखने को मिलता है. लगातार शिवलिंग के ऊपर प्राकृतिक रूप से जलाभिषेक होता आ रहा है. उन्होंने बताया टपकेश्वर महादेव का अपना एक पौराणिक महत्व है. यहां पर सावन के महीने में दूर-दूर से शिव भक्त भगवान शिव का आशीर्वाद लेने आते हैं.
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