सहरसाःसाल 1987 की एक फिल्म है आयी थी 'महानंदा', इसमें एक गाना था ये दर्द पुरानी है. वर्तमान में बिहार के हालात देखकर ऐसा ही लगता है. यह पहली बार नहीं है जब कोसी अपना रौद्र रूप दिखा रही है. हर साल इस नदी में ना जाने कितने लोगों का आशियाना समा जाता है. लोग घर से बेघर हो जाते हैं. इसबार भी बिहार के सैंकड़ों घरों को कोसी ने अपने आगोश में समेट लिया.
सैंकड़ों लोगों का घर कोसी में समायाः सहरसा में भी यही नजारा देखने को मिल रहा है. कोसी नदी में बढते जलस्तर के कारण जिले के नवहट्टा प्रखंड अंतर्गत रसलपुर, बिरजेन, कुंदह, झारवा, बकुनियां, सहित तटबंध के अंदर बसे दर्जनों गांव में पानी घुसा गया है. सैंकड़ों का घर कोसी नदी में समा रहा है. ग्रामीण डरे सहमे हैं. अपना सामान समेट कर ऊंचे स्थान पर जा रहे हैं. लोग अपने घर का चौखट, छप्पर, बिछवान, बक्सा आदि लेकर या तो बांध या फिर ऊंचे स्थान पर आशियाना बना रहे हैं.
बाढ़ पीड़ित तक नहीं पहुंच रही मददः हर साल बाढ़ आने से पहले बिहार सरकार आपदा से निपटने के लिए बैठकें करती हैं. बाढ़ पीड़ित को राहत पहुंचाने के लिए तैयारी करती है. अधिकारियों को निर्देश देती है लेकिन स्थानीय स्तर पर यह सफल नहीं हो पाता है. हर साल कुछ ऐसे क्षेत्र देखने को मिलते हैं जहां तक लोगों को राहत नहीं पहुंच पाती है. ऐसा ही नजारा नवहट्टा प्रखंड में देखने को मिला.
सिर ढ़कने के लिए प्लास्टिक भी नहीं मिलाः कोसी नदी में घर समा जाने के बाद विद्यानंद यादव बांध पर आकर बसने की तैयारी करते दिखे. उन्होंने बताया कि उनके गांव के कई घर कोसी नदी में समा गया. नदी में काफी तेज कटाव हो रही है. उनका घर बर्बाद हो गया. जल्दी में जो सामान जुटा पाए वह लेकर आ गए और बाकी सब नदी में बह गया. उन्होंने कहा कि अब तक सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली है. सिर ढ़कने के लिए प्लास्टिक तक नहीं मिला है.
"कोशी नदी में हमलोगों का घर कट गया है. मेरे साथ-साथ बहुत लोगों का घर कट गया है. काफी परेशानी हो रही है. हमलोग गांव से भागकर ऊंचे स्थान पर आए हैं और छोटा घर बना रहे हैं. किसी तरह अपना गुजर बसर करेंगे. सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही है."-विद्यानंद यादव, बाढ़ पीड़ित