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हिमाचल में पहली बार रोड बनाने में FDR तकनीक का इस्तेमाल, कम लागत में गुणवत्तापूर्ण बनेगी सड़क - MANDI FDR TECHNIQUE FOR ROAD

हिमाचल प्रदेश के मंडी में पहली बार फुल डेप्थ रिक्लेमेशन तकनीक से सड़क का निर्माण किया जा रहा है.

मंडी में FDR तकनीक से रोड निर्माण
मंडी में FDR तकनीक से रोड निर्माण (Etv Bharat)

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Dec 25, 2024, 1:48 PM IST

Updated : Dec 25, 2024, 7:48 PM IST

मंडी:हिमाचल प्रदेश में पहली बार प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत फुल डेप्थ रिक्लेमेशन (एफडीआर) तकनीक से सड़क का निर्माण कार्य शुरू हो गया है. सबसे पहले मंडी जिला में इस तकनीक का ट्रायल बेस पर इस्तेमाल किया जा रहा है. मंडी शहर के साथ लगते गणपति मंदिर से लेकर कून का तर तक बनी 20 किमी लंबी सड़क पर इस तकनीक का उपयोग किया जा रहा है.

FDR तकनीक से बन रहा रोड (ETV Bharat)

क्या है एफडीआर तकनीक?

एफडीआर तकनीक के तहत सड़क पर तारकोल के साथ बिछाई गई कंकरीट को मशीनों की मदद से पहले उखाड़ा जाता है. फिर उसी मटेरियल को रिसाइकिल करके उसमें सीमेंट और केमिकल मिलाकर उसका दोबारा से इस्तेमाल किया जाता है. इसे एफडीआर तकनीक कहते हैं. यह तकनीक विदेशों के बाद देश के कई राज्यों में तो इस्तेमाल हो रही है, लेकिन हिमाचल प्रदेश में इसे प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत पहली बार इस्तेमाल किया जा रहा है.

मंडी में पहली बार FDR तकनीक से हो रहा सड़क का निर्माण (ETV Bharat)

ट्रायल बेस पर FDR तकनीक का इस्तेमाल

लोक निर्माण विभाग मंडी जोन के चीफ इंजीयिनर एनपीएस चौहान ने कहा, "इस तकनीक को अभी ट्रायल बेस पर शुरू किया गया है. एक सप्ताह बाद इसकी गुणवत्ता की जांच की जाएगी. उसके बाद ही इस तकनीक को लेकर आगे निर्णय लिया जाएगा. लेकिन देश के बाकी राज्यों से जो फीडबैक मिली है, उसके अनुसार यह तकनीक काफी पर्यावरण फ्रेंडली है. क्योंकि इसमें पुराने मेटिरियल का अधिक से अधिक इस्तेमाल हो जाता है. भविष्य में मंडी और कुल्लू जिला में इस तकनीक से 20 सड़कें बनाने का लक्ष्य रखा गया है".

हिमाचल में पहली बार रोड बनाने में FDR तकनीक का इस्तेमाल (ETV Bharat)

कम लागत में बनेगी गुणवत्तापूर्ण सड़क

इस तकनीक का पहली बार इस्तेमाल करने वाली डीकेएस कंस्ट्रक्शन कंपनी के एमडी नीतीश शर्मा ने कहा, "एफडीआर तकनीक से जहां काम जल्दी हो रहा है. वहीं, इसमें सरकार का खर्च भी कम हो रहा है. उदाहरण स्वरूप जहां पर सरकार 100 रूपए खर्च करती थी, वहां अब सिर्फ 60 या 64 रुपए में काम हो रहा है. इससे जहां सरकार के पैसों की बचत हो रही है. वहीं समय पर काम भी हो पा रहा है. इस तकनीक के लिए वे कुछ मशीनों को किराए पर लेकर आए हैं. जबकि भविष्य में इसके सकारात्मक परिणाम आने पर इसका और अधिक इस्तेमाल किया जाएगा".

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Last Updated : Dec 25, 2024, 7:48 PM IST

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