उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

बेटा-बेटी की गवाही पर पिता को 10 साल कैद, प्रताड़ना से तंग पत्नी ने दे दी थी जान, जज ने की अहम टिप्पणी - BAREILLY NEWS

बरेली कोर्ट के जज ने कहा कि भारतवर्ष में महिला को देवी का दर्जा तो देते हैं किंतु महिला का अधिकार नहीं देते

बरेली कोर्ट.
बरेली कोर्ट. (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 28, 2025, 7:47 PM IST

बरेली: अपर सत्र न्यायाधीश फास्ट ट्रैक प्रथम रवि कुमार दिवाकर ने एक और फैसला देवी-देवताओं का उदाहरण देते हुए सुनाया है. मारपीट कर उत्पीड़न से परेशान होकर आत्महत्या करने के मामले में बेटे और बेटी की गवाही पर पिता को 10 साल की सजा के साथ 50 हजार रुपये का अर्थदण्ड भी लगाया है.

जिला सहायक शासकीय अधिवक्ता दिगंबर सिंह पटेल ने बताया कि बारादरी थाना क्षेत्र के संजय नगर में रहने वाली वंदना ने 29-30 नवंबर 2023 की रात को आत्महत्या कर ली थी. बाद वंदना की मां ने उसके पति और परिजनों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और मारपीट का मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस ने जांच की तो पता चला कि आरोपी पति विकास उपाध्याय शराब पीने का आदी था. आए दिन छोटी-छोटी बातों पर पत्नी वंदना के साथ शराब पीकर मारपीट करता और उसका उत्पीड़न करता था. वंदना और विकास के 11 साल का बेटा आयुष्मान और 9 साल की बेटी रितिका है. पति के उत्पीड़न और तानों से परेशान होकर वंदना ने आत्महत्या कर ली थी. पुलिस ने मुकदमा दर्ज करते हुए आरोपी पति को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया और मामला तब से कोर्ट में विचाराधीन था.

सगे बेटे और बेटी की गवाही पर पिता को सजा
जिला सहायक शासकीय अधिवक्ता दिगंबर सिंह पटेल ने बताया कि मृतक वदना के बेटे आयुष्मान और बेटी रितिका ने अदालत में अपने पिता विकास के खिलाफ गवाई दी. इस गवाही के आधार पर अपर सत्र न्यायाधीश फास्ट्रेक प्रथम की अदालत ने वंदना के आत्महत्या के मामले में उसके पति विकास उपाध्याय को दोषी मानते हुए 10 वर्ष की सजा सुनाते हुए 50000 का अर्थ दंड लगाया है.

महिला के दर्द को बया नहीं किया जा सकता
जज ने अपने फैसले में लिखा है कि भारतवर्ष में महिला को देवी का दर्जा तो देते हैं लेकिन महिला होने का अधिकार नहीं देते हैं. यदि भारतीय पुरुष वास्तव में महिला को देवी का दर्जा देते तो क्या शराब पीकर पत्नी को जानवरों की तरह मारते-पीते और गाली गलौज करते. कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि वंदना एमए इंग्लिश लिटरेचर तक पढ़ी थी. जाहिर है कि वंदना बहुत कष्ट में रही होगी इसलिए एक बेटा और एक बेटी होने के बावजूद उसने आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाया. वंदना एक शिक्षित महिला थी, इसलिए वह भली भांति जानती थी कि दुनिया से विदा होने के बाद उसके दोनों बच्चों का भविष्य क्या होगा. दोनों बच्चे जीवन भर बिना मां के पीड़ा में रहेंगे. न्यायालय के द्वारा शायद मृतक वंदना के बच्चों की पीड़ा को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता.

चाहे कैसी भी परिस्थितियों आए, डटकर मुकाबला करें
अदालत ने अपने फैसले में आगे कहा है कि इस निर्णय के माध्यम से विशेष कर युवाओं और शादीशुदा महिलाओं से आग्रह करूंगा कि वह जीवन में चाहे कैसी भी परिस्थितियों आए, वह उसका डटकर मुकाबला करें. किसी भी हालत में भगवान द्वारा दिए गए अनमोल जीवन को कदापि समाप्त न करें. क्योंकि जीवन भगवान देता है और उसे किसी भी व्यक्ति को स्वयं से लेने का अधिकार नहीं है. जीवन एक तपस्या है छोटी-छोटी परेशानियों से डरने की जरूरत नहीं, क्योंकि रात कितनी भी काली क्यों ना हो उसके बाद सुबह जरूर होती है.

इसे भी पढ़ें-जज ने पहले भगवान शिव-पार्वती के प्रेम का दिया उदाहरण, फिर पत्नी मीना की हत्या करने वाले पति श्रवण को सुनाई उम्रकैद की सजा

ABOUT THE AUTHOR

...view details