त्योहारी सीजन में बढ़ा स्लीपर-एसी बसों का किराया, जानें अब कितना करना होगा भुगतान - Bus Fares Increased - BUS FARES INCREASED
Bus Fares Increased, वर्तमान में संचालित ट्रेनों की वेटिंग लिस्ट काफी लंबी है. ऐसे में कंफर्म टिकट मिलना मुश्किल हो रहा है. दूसरी तरफ अब इसका फायदा बस ऑपरेटर उठा रहे हैं. कोटा आने वाली सभी रूट की बसों का किराया 40 से 50 फीसदी तक बढ़ गया है. कुछ रूट पर तो ये किराया 70 से 80 फीसदी तक भी बढ़ा है.
त्योहारी सीजन में बढ़ा बसों का किराया (ETV BHARAT KOTA)
कोटा : रक्षाबंधन का त्योहार सिर पर है और ट्रेनों में टिकट का मिलना मुश्किल हो गया है. विशेष ट्रेनों में भी सीट मिलने की कोई गारंटी नहीं है, क्योंकि वेटिंग लिस्ट लंबी है. इसी फायदा अब बस ऑपरेटर उठा रहे हैं. वहीं, कोटा आने वाली लगभग सभी रूट की बसों का किराया 40 से 50 फीसदी बढ़ गया है. कुछ रूट पर तो ये किराया 70 से 80 फीसदी तक बढ़ा है. दरअसल, बीते दो दिनों से बस ऑपरेटर बढ़ा किराया ले रहे हैं, जो ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों बुकिंग में लागू है.
जितने भी ऑनलाइन बस बुकिंग प्लेटफार्म हैं, उनके स्लीपर और एसी कोच बुक के दौरान बढ़ा किराया वसूला जा रहा है. दूसरी तरफ कोटा से जाने वाली बसों में किराया रक्षाबंधन 19 अगस्त से बढ़ रहा है. पूरे मामले पर अतिरिक्त प्रादेशिक परिवहन अधिकारी राजीव त्यागी का कहना है कि कॉन्ट्रैक्ट कैरिज की बसों में किराया सरकार तय नहीं करती है. इनमें किराया तय करने का कोई प्रावधान नहीं है. इसके बावजूद मामले को दिखते हैं.
बस ऑपरेटरों ने बताई ये मजबूरी :बस ऑपरेटर अशोक चांदना ने कहा कि ये बसें कॉन्ट्रैक्ट कैरिज की हैं. त्योहार के दिनों में विशेष रूप से ड्राइवर को भेजा जाता है. दूसरी तरफ एक तरफ से यात्री भार कम रहता है, जबकि एक तरफ से फूल यात्री भार मिल जाता है. इसलिए यात्रियों से ज्यादा पैसा लिया जाता है. बस में परिवहन टैक्स, डीजल, टोल टैक्स, पार्किंग और ड्राइवर का भत्ता सहित कई खर्च हो रहे हैं. यह एक तरफ के किराए में नहीं निकल पाता है. दूसरी तरफ रेलवे भी विशेष ट्रेन चलता है. उनमें ज्यादा किराया रखता है. यहां तक कि डायनेमिक फेयर के जरिए भी पैसा ज्यादा वसूला जाता है. ऐसे में हम त्योहार के दिनों में यात्री भार बढ़ने पर कुछ बसों को भी बढ़ा देते हैं, लेकिन वो दूसरी तरफ से खाली आती हैं.
स्टेट और कॉन्ट्रैक्ट कैरिज की शर्तों में है ये अंतर :जिला परिवहन अधिकारी सुरेंद्र सिंह राजपुरोहित का कहना है कि कॉन्ट्रैक्ट कैरिज की बस में सफर कर रहे यात्री और ऑपरेटर के बीच का एक अनुबंध होता है. इसमें कुछ भी निश्चित नहीं होता है, जबकि स्टेट कैरिज की बसों में यह सब कुछ तय होता है. स्टेट कैरिज की बसों में आमतौर पर टैक्स भी काम होता है. जबकि इसे करीब 6 से 8 गुना ज्यादा टैक्स कॉन्ट्रैक्ट कैरिज की बसों में लिया जाता है. ऐसे में अधिकांश स्लीपर और एसी कोच या नाइट सर्विस में चलने वाली बसें कॉन्ट्रैक्ट कैरिज के आधार पर ही संचालित हो रही हैं.