वाराणसी :बनारस को हस्तशिल्प कलाओं का शहर कहा जाता है. यहां पर अलग-अलग तरीके की कलाएं हैं, जो इस शहर को और भी ज्यादा खास बनाती हैं. इन्हीं कलाओं में से एक जरी-जरदोजी की कला है, जिसमें किसी समय हजारों की संख्या में कारीगर काम करते थे, लेकिन वर्तमान में कारीगरों की गिनती 100 के अंदर सिमट कर रह गई है. काशी में जरदोजी के काम में विदेश के ज्यादा ऑर्डर रहते हैं. यहां पर विदेश में बनने वाले सेना के बैज व अन्य चीजें तैयार की जाती हैं. लेकिन बीते दो दशक से यह कारीगर अब दूसरे काम में पलायन कर रहे हैं और जरदोजी से अपना मोह भंग कर रहे हैं.
समय के साथ हर कला ने अपने आप को नए स्वरूप के साथ प्रस्तुत किया, लेकिन जरदोजी की कला समय के साथ-साथ विलुप्त के कगार पर है. यह हम नहीं कह रहे, बल्कि जरदोजी से जुड़े कारीगर कहते हैं. उनका कहना है कि वह दिन दूर नहीं कि अगर जरदोजी पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह निश्चित रूप से सिर्फ कहने और सुनने को होगा कि बनारस में कभी जरी-जरदोजी का काम हुआ करता था. जी हां, जरदोजी के काम में होने वाले मुनाफे की कमी का असर अब इस कला पर नजर आ रहा है.
'परिवार चलाना हो रहा है मुश्किल' :जरदोजी के काम और उससे जुड़े लोगों से इसकी स्थिति को जानने के लिए हम बनारस के पठानीटोला इलाके में पहुंचे. यहां की तंग गलियों में जरदोजी का काम करने वाले रहते हैं. यहां रहने वाले जरदोज कहते हैं कि हमारे परिवार में लोगों की संख्या काफी है. हमें घर को संभालना मुश्किल होता है क्योंकि अब मुनाफा उतना नहीं होता है. हर कला पर ध्यान दिया गया, लेकिन सरकार शायद जरदोज को भूल गई. आज जरदोज के पास जब कोई रास्ता नहीं बचता तो वो कोई दूसरा काम करना शुरू कर देता है.
- बनारस की सैकड़ों साल पुरानी कला जरदोजी आज विलुप्त के कगार पर खड़ी है. |
- जरदोजी के काम से आज की पीढ़ी खुद को दूर कर रही है और दूसरे काम कर रही है. |
- जरदोजी की कारीगरी में आज मुनाफा कम हो गया है, जोकि मोहभंग का बड़ा कारण है. |
- करीब 20 साल पहले इस काम में बनारस में 2000 लोग जुड़े हुए थे. |
- आज जरदोजी से जुड़े कारीगरों की संख्या मुश्किल से 80 तक पहुंच रही है. |
'नई पीढ़ी को इस काम में नहीं है रुचि' :जरदोज बताते हैं कि, आज महंगाई के हिसाब से उतनी मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है, इसलिए घर चलाने में दिक्कत होती है. पहले इसमें 2000 कारीगर थे आज मुश्किल से 100 से कम कारीगर बचे हैं. इस काम में नई पीढ़ी की रुचि नहीं है. वे कहते हैं कि, नई पीढ़ी इस काम में इसलिए नहीं आना चाहती है कि इसमें कोई फायदा नहीं है, जो इसमें फंसे हुए हैं वे अब क्या करेंगे? नई पीढ़ी के लोग इससे बेहतर कोई और रोजी-रोजगार का काम देख रहे हैं. हमें बस यही कहना है कि सरकार हम लोगों के लिए इस बारे में कुछ सोचे.