लखनऊ : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज ही के दिन (24 जनवरी 2018) ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ (ओडीओपी) योजना की शुरू की थी. योजना के तहत चयनित उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान मिल रही है. योजना में 165 उत्पादों को शामिल किया गया है. कई जिलों में एक से अधिक उत्पाद भी चयनित हुए हैं. योजना के जरिए अब तक करीब 50 लाख से अधिक लोगों को रोजगार भी मिला है. बावजूद इसके योजना के क्रियान्वयन में अभी काफी सुधार की जरूरत है. देखें ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...
आयुक्त एवं निदेशक, उद्योग निदेशालय के. विजयेंद्र पांडियन के मुताबिक वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट योजना को तीन प्रमुख हिस्सों में बांटा गया है. पहला, उत्पादों की ब्रांडिंग और मार्केटिंग; इसके लिए सरकार ने राज्य के अलग-अलग जिलों में प्रदर्शनियां लगाई गईं, इनमें बड़े पैमाने पर लोग शामिल हुए. दूसरे राज्य में भी उत्तर प्रदेश के उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई गई. साथ ही विदेश में भी ओडीओपी योजना के अंतर्गत प्रदर्शनी लगाई गई. जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान मिली है. प्रदर्शनी लगाने के लिए कारोबारी को फ्री में काउंटर और 10 रुपये दिए जाते हैं. विदेश में प्रदर्शनी लगाने पर 75% खर्च सरकार उठाती है.
योजना के दूसरे चरण में कौशल विकास और प्रशिक्षण इसके माध्यम से हम बेहतरीन और आकर्षक उत्पादन के लिए हर जिले में प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए हैं. इन केंद्रों पर संबंधित कार्य के एक्सपर्ट को बुलाया जाता है. ये एक्सपर्ट कारोबारियों को नई टेक्नोलॉजी, आकर्षक उत्पाद और नई विधाओं का प्रशिक्षण देते हैं. सरकार ने छोटे उद्यमियों को सहायता देने के लिए मार्जिन मनी योजना शुरू की है. इसके तहत कारोबारी अपने उद्योग को बढ़ाने के लिए वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकते हैं.
योजना के तीसरे चरण में आर्थिक सहायता प्रावधान किया गया है. इसके तहत कारोबारी को कम ब्याज दर पर लोन की व्यवस्था कराई जाती है. योजना के अंतर्गत जिस तरीके से उत्तर प्रदेश सरकार ने इसकी ब्रांडिंग की है. इसका असर भी देखने को मिल रहा है. जिन उत्पादों की पहले राष्ट्रीय बाजार में कीमत ₹500 थी, वे अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में ₹1,000 से लेकर ₹70 हजार तक में बिक रहे हैं. राज्य के 75 उत्पादों को जीआई टैग दिया गया है, जिस से उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान मिली है.
योजना के बेहतर क्रियान्वयन की जरूरत : पद्मश्री दिलशाद हुसैन का कहना है कि ओडीओपी योजना ने उत्तर प्रदेश के उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है. हालांकि, छोटे कारोबारियों के आरोपों और क्रियान्वयन में खामियों के चलते यह योजना अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रही है. सरकार को चाहिए कि छोटे उद्यमियों तक योजना का लाभ पहुंचाने के लिए विशेष कदम उठाए और प्रशिक्षण व टूल किट वितरण को अधिक प्रभावी बनाए. योजना की सफलता बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन और उत्तर प्रदेश के उत्पादों की ब्रांडिंग पर निर्भर है. अगर क्रियान्वयन में सुधार हुआ तो यह योजना न केवल राज्य बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में भी बड़ा योगदान दे सकती है.
योजना का उद्देश्य : यह महत्वाकांक्षी योजना राज्य के छोटे कस्बों और शहरों में पनप रही दुर्लभ शिल्पकला और उत्पादों को वैश्विक मंच प्रदान कर रही है. योजना के तहत कालानमक चावल, चिकनकारी, जरी-जरदोजी, सींग और हड्डियों की कलाकारी जैसे जीआई. टैग वाले उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है. कई ऐसे उत्पाद, जो विलुप्त होने के कगार पर थे, आधुनिक तकनीक और प्रशिक्षण के माध्यम से फिर से जीवंत किए जा रहे हैं.
योजना के प्रमुख लाभ : योजना के तहत कारीगरों को 10 दिवसीय प्रशिक्षण दिया जाता है. दक्ष कारीगरों को ‘रिकग्निशन ऑफ प्रायर लर्निंग’ (RPL) प्रमाणन दिया जाता है. इसके अलावा प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण अवधि के दौरान ₹200 प्रतिदिन का मानदेय के साथ प्रशिक्षित कारीगरों को आधुनिक टूल किट निशुल्क प्रदान की जाती है.
आवेदन के लिए शैक्षिक योग्यता अनिवार्य नहीं : आवेदक ने पिछले दो वर्षों में केंद्र या राज्य सरकार से टूल किट संबंधी कोई लाभ न लिया हो. एक परिवार से केवल एक सदस्य योजना के लिए आवेदन कर सकता है. आवेदन के साथ पात्रता को लेकर शपथ पत्र प्रस्तुत करना होगा.
बजट और समर्थन : योजना को क्रियान्वित करने के लिए 2018-19 के बजट में ₹250 करोड़ का प्रावधान किया गया. यह पहल न केवल पारंपरिक उत्पादों को बढ़ावा दे रही है, बल्कि प्रदेश के लघु और मध्यम उद्योगों को नई दिशा देने का कार्य भी कर रही है. योजना की विस्तृत जानकारी और आवेदन प्रक्रिया के लिए ODOP की आधिकारिक वेबसाइट http://odopup.in पर है. इसके अलावा निकटतम जिला उद्योग केंद्र (DIC) से भी सहायता ली जा सकती है.