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यूपी पुलिस का कारनामा; फर्जी रेप केस में युवक को भेजा जेल, सब इंस्पेक्टर विनय कुमार सिंह सस्पेंड - FAKE RAPE CASE IN AZAMGARH

पीड़िता ने डीआईजी कार्यालय में शिकायत की थी. जांच के बाद पुलिस अधीक्षक हेमराज मीना ने किया सस्पेंड.

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सब इंस्पेक्टर विनय कुमार सिंह सस्पेंड (Photo Credit- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 13, 2024, 7:47 PM IST

आजमगढ़: जिले में फर्जी रेप का मुकदमा दर्ज कर युवक को जेल भेजने के मामले में बुधवार को पुलिस अधीक्षक हेमराज मीना ने बिलरियागंज थानाध्यक्ष विनय कुमार सिंह को निलम्बित कर दिया. जांच रिपोर्ट आने के बाद पुलिस अधीक्षक ने यह कार्रवाई की. फर्जी रेप के मामले की जांच पुलिस उपमहानिरीक्षक वैभव कृष्ण के निर्देश पर मऊ जिले को भेजी गयी थी.

आपको बता दें कि बिलरियागंज थाना निवासी एक महिला ने 21 अक्टूबर को पुलिस उपमहानिरीक्षक (डीआईजी) वैभव कृष्ण के कार्यालय में जाकर बिलरियांगज थानाध्यक्ष विनय कुमार सिंह के खिलाफ शिकायत की थी. महिला का आरोप था कि उसके बड़े बेटे ने अपनी पत्नी को तलाक का नोटिस भेजा था. तलाक का नोटिस भेजने के कुछ ही दिन बाद बड़े बेटे की पत्नी ने अपने देवर पर फर्जी रेप का मुकदमा थाने में दर्ज कराया.

यह मुकदमा पुलिसकर्मियों और थानाध्यक्ष की मिलीभगत से दर्ज किया गया. इसकी शिकायत मिलने पर पुलिस उपमहानिरीक्षक वैभव कृष्ण ने पुलिस अधीक्षक को इस मामले की जांच एसपी ग्रामीण से कराने का निर्देश दिया. जांच में पाया गया कि मामला संदिग्ध है, क्योंकि थानाध्यक्ष ने मुकदमा दर्ज करने के चार दिन बाद आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इस मामले में न ही किसी का बयान लिया गया, न ही फॉरेंसिक साक्ष्य ही जुटाए.

इतना ही नहीं घटना स्थल का निरीक्षण भी नहीं किया गया. मुकदमे में पति-पत्नी के तलाक का कोई भी जिक्र नहीं किया गया था. गिरफ्तारी भी साक्ष्यों के आधार पर नहीं की गई. रिपोर्ट आने के बाद डीआईजी के निर्देश पर एसपी हेमराज मीना ने थानाध्यक्ष विनय कुमार सिंह को निलम्बित कर दिया. वहीं इस मुकदमे की जांच पुलिस उपमहानिरीक्षक ने मऊ जिले की पुलिस से कराने का निर्देश दिया.

अधिकारियों को थानाध्यक्ष ने भ्रम में रखा: जांच में यह पाया गया कि थानाध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने इस मामले को लेकर अधिकारियों को भी भ्रम में रखा. इस मामले में कोई भी सही जानकारी थानाध्यक्ष ने अधिकारियों को न तो समय पर दी और न ही सही रूप से इस मामले को बताया गया. इससे यह प्रतीत होता है कि थानाध्यक्ष दूसरे पक्ष से मिले हुए थे.

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