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जोधपुर में नेत्रदान की अलख, हर तीसरे दिन एक दान, 190 लोगों मिली रोशनी - Eye Donation - EYE DONATION

Organ Donation in Jodhpur, राजस्थान के सूर्यनगरी में नेत्रदान को लेकर जबरदस्त काम हो रहा है. जनवरी 2024 से अब तक यहां हर दो दिन बाद एक नेत्रदान हो रहा है. खास बात यह है कि इसका फायदा भी ऐसे लोगों को हो रहा है जो कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के शिकार हैं. उनको रोशनी मिल रही है.

Organ Donation in Jodhpur
सूर्यनगरी में नेत्रदान (ETV Bharat Jodhpur)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jul 17, 2024, 5:21 PM IST

जोधपुर में नेत्रदान की अलख (ETV Bharat Jodhpur)

जोधपुर: राजस्थान के जोधपुर में नेत्रदान की अलख जग रही है. हर तीसरे दिन एक दान हो रहा है. आईबैंक सोसाइटी आफ राजस्थान के जोधपुर चैप्टर के संयोजक राजेंद्र जैन की अगुवाई में इस वर्ष जनवरी से 16 जुलाई तक 81 लोगों के नेत्रदान हो चुके हैं. जैन बताते हैं कि नौ साल में अब तक कुल 1281 कॉर्निया हमने दान के रूप में प्राप्त कर आई बैंक को भेजे हैं, जो किसी न किसी के जीवन में रोशनी फैला रहे हैंं. वे बताते हैं कि आज भी हमारी सोसाइटी में इसको लेकर लोगों में भ्रम रहता है, जबकि नेत्रदान में आंख नहीं निकाली जाती है, सिर्फ कार्निया लिया जाता है. चेहरे पर कोई निशान नहीं होता है. इसको लेकर हम लगातार जागरूकता अभियान चला रहे हैं.

जोधपुर में 190 लोगों को मिली रोशनी : संयोजक ने बताया कि कॉर्निया रिप्लसेमेंट के लिए केरोटोप्लास्टी की जाती हैं. जोधपुर एम्स में विगत करीब डेढ़ साल से डॉ. निखिल अग्रवाल यह काम बखूबी कर रहे हैंं. इस अवधि में हमने 190 कॉर्निया मंगवा कर उनको दिए जिनसे लोगों को रोशनी मिली है. उन्होंने बताया कि बाकी कॉर्निया जयपुर से राज्य के अन्य अस्पतालों में मांग के अनुरूप जारी होते हैं. सरप्लस होने पर राज्य के बाहर भी भेेजे जाते हैं. जैन बताते हैं कि देश में जितनी संख्या में लोगों को कार्निया की जरूरत है, उतने उपलब्ध नहीं हैं. इसलिए इसके लिए लगातार जागरूकता की आवश्यकता है.

35 से 40 लाख लोगों को जरूरत : भारत में कॉर्नियल ब्लाइंडनेंस लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है, क्योंकि यहां दुनिया के 15.8 कॉर्नियल रोगों से पीड़ित हैं. इस मामले में सबसे आगे थाईलैंड, जहां यह 20 फीसदी है. ऐसे लोगों की आंखों की रोशनी वापस लाई जा सकती है, जिनकी भारत में संख्या 35 से 40 लाख है. हर साल में इसमें 25 से 30 हजार का इजाफा हो रहा है. इसके लिए केरोटोप्लास्टी के माध्यम से आंखों में नए कॉर्निया लगाए जाते हैं, लेकिन देश में मांग के अनुरूप कार्निया उपलब्ध नहीं होते हैं.

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दो साल के बाद तैयार होता है कॉर्निया : राजेंद्र जैन ने बताया कि नवजात के निधन पर भी हमें कॉर्निया लेने के लिए फोन आते हैं, लेकिन आंखों में कॉर्निया पूरी तरह से दो साल की उम्र के बाद ही तैयार होता है. ऐसी स्थिति में हम इससे कम उम्र के कॉर्निया नहीं ले सकते हैंं. उन्होंने बताया कि वे अभी तक 12 साल की उम्र के बच्चे और अधिकतम 94 साल की उम्र की महिला के कॉर्निया ले चुके हैं. जैन ने बताया कि 16 जुलाई की रात को ही शहर की सोहल वर्ष की बालिका दिव्या शर्मा का अस्पताल में निधन हो गया था. प्रोत्साहित करने पर परिजनों ने दिव्या के नेत्रदान करवाए.

लावारिश शवों के लिए मिले अनुमति : आई बैंक सोसाइटी के लोगों का मानना है कि हर दिन जयपुर जोधपुर जैसे बड़े शहरों में कई लावारिश लोगों का निधन होता है, जिनके शव का क्लेम करने वाला कोई नहीं होता हैं. ऐसे में सरकार ऐसे शवों के कॉर्निया लेने के लिए हमें अनुमत कर दे तो उनके कॉर्निया से भी किसी का जीवन रोशन हो सकेगा. इसके लिए राज्य सरकार को कानून बनाकर अनुमति देनी होगी.

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कम से कम 6 घंटे में दान जरूरी : डॉक्टर्स के अनुसार मौत के 6 घंटे के अंदर निकाला हुआ कॉर्निया ज्यादा कारगर होता है. मौत के तुरंत बाद शरीर को फ्रीज में रख दिया जाता है तो 24 घंटे के अंदर भी निकाला हुआ कॉर्निया काम आ सकता है. हालांकि, सभी कॉर्निया की आई बैंक में जांच के बाद ही दोबारा उपयोग के लिए चिह्नित किया जाता है.

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