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चुनावी सीजन में उत्तराखंड में प्रेशर पॉलिटिक्स हो रही हावी, राजनीतिक दलों का ध्यान खींच रहे कर्मचारी-पेंशनर्स - lok sabha election 2024

Pressure politics in Lok Sabha Elections 2024 लोकसभा चुनाव 2024 के लिए उत्तराखंड में पहले दौर में 19 अप्रैल को मतदान होना है. इसके साथ ही प्रेशर पॉलिटिक्स भी जारी है. राजनीतिक दल जनता को लुभाने के लिए तमाम वादे कर रहे हैं तो असंतुष्ट कर्मचारी और रिटायर्ड कर्मचारी अपनी मांगों को मनाने के लिए दबाव बनाने में पीछे नहीं हैं.

Pressure politics
उत्तराखंड पॉलिटिक्स

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 4, 2024, 10:59 AM IST

Updated : Apr 4, 2024, 6:32 PM IST

चुनाव में प्रेशर पॉलिटिक्स का खेल.

देहरादून: चुनावी सीजन में राजनीतिक दलों की बातें और मतदाताओं को लुभाने के लिए किये गए वादे बेहद अहम होते हैं. इसके जरिए एक तरफ राजनीतिक दल सत्ता की सीढ़ी चढ़ते हैं तो मतदाता भी इसी चुनावी सीजन में अपनी मांगों को पूरा करवाने की जोर आजमाइश करते हुए दिखाई देते हैं. उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव के दौरान कर्मचारी और पेंशनर्स की मांगें भी कुछ इसी तरह का दबाव राजनीतिक दलों पर बना रही हैं. जिसको भांपते हुए राजनीतिक दल भी खुद को कर्मचारियों का सबसे बड़ा हितैषी बताने की कोशिश कर रहे हैं.

चुनावी सीजन में प्रेशर पॉलिटिक्स: चुनावी सीजन में कर्मचारियों का अपनी मांग पूरी करवाने के लिए जोर आजमाइश करना कोई नई बात नहीं है. लोकसभा चुनाव नजदीक है, लिहाजा एक बार फिर इसी तरह के प्रयास कर्मचारियों की तरफ से दिखाई देने लगे हैं. उधर राजनीतिक दल भी कर्मचारियों को उनका सबसे बड़ा हितैषी जताने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि राजनीतिक दल जानते हैं कि चुनाव के दौरान कर्मचारी और पेंशनर्स चुनाव के समीकरण को बना या बिगाड़ सकते हैं. ऐसे में विभिन्न कर्मचारी संगठन अपनी मांगों को राजनीतिक दलों से पूरी करने के लिए उन्हें घोषणा पत्र में शामिल करने की मांग कर रहे हैं.

प्रदेश में कर्मचारियों और पेंशनर्स की कई मांगे हैं, लेकिन इसमें खास तौर पर पेंशन से जुड़े विषयों पर बड़े आंदोलन किये जा चुके हैं. कर्मचारी भी लोकसभा चुनाव को देखते हुए इन मुद्दों पर राजनीतिक दलों का ध्यान केंद्रित करना चाहती है, ताकि चुनाव के बाद जिस दल की भी सरकार आए, वह इन मांगों और गंभीरता से विचार करे. कर्मचारियों की मांगों और चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी.

कर्मचारियों की मांगें-

  1. राजनीतिक दलों से घोषणा पत्र में मांगों को शामिल करवाना चाहते हैं कर्मचारी
  2. पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर लंबे समय से लामबंद रहे हैं कर्मचारी
  3. प्रदेश में करीब 86,810 शिक्षक और कर्मचारी पुरानी पेंशन स्कीम से हैं वंचित
  4. ईपीएफओ के दायरे में आने वाले कर्मचारियों का भी पेंशन को लेकर रहा है लंबा आंदोलन
  5. कर्मचारी पेंशन योजना के तहत न्यूनतम पेंशन बढ़ाने का भी उठाया गया है मुद्दा
  6. पूर्व सैनिकों की वन रैंक वन पेंशन की विसंगतियों को दूर करने की रही है मांग
  7. राज्य में सरकारी नौकरियों में पूर्व सैनिकों के आरक्षण को 15 फ़ीसदी करने की भी रही है मांग
  8. कर्मचारियों के लिए टैक्स स्लैब को बढ़ाने पर भी कर्मचारी संगठन का रहा है जोर

पुरानी पेंशन पर गर्म है मुद्दा: देशभर में ही पुरानी पेंशन बहाली को लेकर कर्मचारियों का आंदोलन सालों साल पुराना है. उत्तराखंड में तो कर्मचारियों ने अब पुरानी पेंशन बहाली को राजनीतिक दलों से घोषणा पत्र में शामिल करने तक की बात कह दी है. पुरानी पेंशन स्कीम केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2004 को बंद कर दी थी. उत्तराखंड में भी 1 अक्टूबर 2005 को पुरानी पेंशन को बंद कर दिया गया. करीब 6 साल से इसके लिए कर्मचारी आंदोलन भी कर रहे हैं. इस तरह उत्तराखंड में हजारों कर्मचारी जो पुरानी पेंशन से वंचित रह गए हैं, वह अब चुनावी सीजन में राजनीतिक दलों पर दबाव बनाकर अपनी इस मांग को पूरा करने की कोशिश में जुट गए हैं.

न्यूनतम पेंशन 7 हजार करने की मांग: इसके अलावा कर्मचारी पेंशन योजना का विषय भी पेंशनर्स के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. ईपीएफओ के दायरे में आने वाले कर्मचारी-पेंशनधारक न्यूनतम पेंशन में बढ़ोत्तरी की मांग कर रहे हैं. फिलहाल न्यूनतम पेंशन ₹1,000 प्रति माह है, जबकि इसे बढ़ाकर ₹7,000 प्रति माह करने की मांग की जा रही है. इस मुद्दे पर भी कर्मचारी राजनीतिक दलों से मांग को पूरा करने का वादा चाहते हैं और मांग पूरी करने वाले राजनीतिक दल को ही समर्थन देने का भी विचार कर रहे हैं.

क्या कहती है बीजेपी: इसी तरह पूर्व सैनिकों के मुद्दे भी इस लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण विषय बने हुए हैं. इन पर भी राजनीतिक दल पूर्व सैनिकों को लुभाने की कोशिश में लग गए हैं. इन मामलों को लेकर भारतीय जनता पार्टी जहां खुद को कर्मचारियों का हितैषी बताकर पूर्व में तमाम कर्मचारियों के हितों में लिए गए निर्णय का उदाहरण दे रही है, तो वहीं पार्टी के नेता तमाम कर्मचारियों और पेंशनर्स से भी इस मामले में बात किए जाने का भरोसा दे रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता देवेंद्र भसीन कहते हैं कि कर्मचारियों के तमाम मुद्दों को लेकर भारतीय जनता पार्टी हमेशा गंभीर रही है. जिन मामलों पर कांग्रेस ने सालों साल तक कोई निर्णय नहीं लिया, उन पर भाजपा ने ही मुहर लगाते हुए कर्मचारियों की मांगों को पूरा किया है.

उत्तराखंड में इतने हैं पूर्व सैनिक और राजकीय कर्मचारी: उत्तराखंड में पूर्व सैनिकों की संख्या करीब 1 लाख 60 हज़ार है. इसी तरह प्रदेश में करीब 1 लाख 20 हज़ार राजकीय कर्मचारी हैं. पेंशनर्स की भी संख्या 1 लाख से अधिक है. कर्मचारियों की इतनी बड़ी संख्या को देखते हुए ही राजनीतिक दल भी कर्मचारी संगठनों को लेकर गंभीर दिखाई दे रहे हैं. कर्मचारियों को लेकर कांग्रेस कितनी संजीदा है, इस बात को इसी से समझा सकता है कि जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी, उन राज्यों में उन्होंने पुरानी पेंशन को बहाल करने का फैसला लिया. इसमें हिमाचल और राजस्थान राज्यों के नाम शामिल हैं, जहां कांग्रेस सरकारों में इस तरह का फैसला लिया.

क्या कहती है कांग्रेस: इस मामले में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा कहते हैं कि कांग्रेस कर्मचारियों को लेकर बेहद गंभीर है. यह बात कर्मचारी संगठन भी जानते हैं. ऐसे में कांग्रेस को अपने घोषणा पत्र में इन मुद्दों को रखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है, वहां उसने पुरानी पेंशन बहाली पर निर्णय लेने का काम किया है.
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Last Updated : Apr 4, 2024, 6:32 PM IST

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