औरंगाबाद: बिहार के औरंगाबाद में 19 अप्रैल को होने वालेप्रथम चरण के मतदान के लिए चुनाव प्रचार थम गया है.प्रचार की समाप्ति तक भी पार्टियां अपने प्रत्याशियों को जितवाने के लिए मतदाताओं को रिझाने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहतीं. यहां दो ध्रुवों के बीच सीधा मुकाबला हो रहा है. इस बार निश्चित रूप से ये मुकाबला NDA के सुशील कुमार सिंह और महागठबंधन अभय कुशवाहा के बीच ही होगा. हालांकि सात अन्य प्रत्याशी भी मैदान में हैं.
जातीय गणित के यहां मायने हैं?:औरंगाबाद सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो परिसीमन के बाद सबसे ज्यादा वोटर राजपूत वोट लगभग 2 लाख के आसपास है. वहीं यादव मतदाता लगभग 2.5 लाख, कुशवाहा मतदाता 2.5 लाख, वहीं मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 1.5 लाख के करीब है. वहीं भूमिहारों की वोट 1 लाख से ज्यादा है.
अतिपिछड़ा वोट सबसे निर्णायक: जातीय समीकरण में यहां दलित और महादलितों का वोट भी लगभग लगभग 19 फीसदी यानी 2 लाख से ज्यादा है. यहां सबसे निर्णायक वोट अतिपिछड़ा का है. जिनका वोट भी लगभग 3 लाख से ज्यादा है. इसमें भाजपाई राजपूत प्रत्याशी सुशील सिंह अपनी जाति को लेकर पक्के हैं तो अभय कुशवाहा राजद के आधार वोट यादव और कुशवाहा को अपने साथ मानकर चल रहे हैं.
तीनों विधानसभा क्षेत्र पर महागठबंधन का कब्जा: वर्तमान में इस लोकसभा क्षेत्र में औरंगाबाद जिले के तीनों विधानसभा क्षेत्र पर महागठबंधन का कब्जा है. जिसमें कुटुंबा से कांग्रेस के राजेश राम, औरंगाबाद सदर से कांग्रेस के आनंद शंकर सिंह और रफीगंज से राष्ट्रीय जनता दल के मोहम्मद नेहालुद्दीन हैं. वहीं इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गया जिले के तीन विधानसभा क्षेत्र में इमामगंज से हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा सेक्युलर, टिकारी से हिंदुस्तानी एवं मोर्चा सेक्युलर और गुरुआ से राष्ट्रीय जनता दल का विधायक हैं.
"चुनाव मैं नहीं जनता लड़ रही है. जनता बदलाव चाहती है. जनता अपना भाई और बेटा चाहती है. क्षेत्र में वर्तमान सांसद ने कोई भी काम नहीं किया है. वे चुनौती देते हैं कि सुशील सिंह अपने 15 वर्षों के कार्यकाल का कोई एक काम गिनवा दें. जनता ऊब चुकी है. इसलिए लगातार क्षेत्र में उन्हें प्यार मिल रहा है और इस बार चुनाव लोगों के आशीर्वाद से भारी भागवत से जीतेंगे."-अभय कुशवाहा, राजद प्रत्याशी
कांटे की होगी टक्कर:वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिन्हा के अनुसार इस बार कांटे की टक्कर है. पहली बार ऐसा हुआ है जब भारतीय जनता पार्टी को अधिक मेहनत करनी पड़ रही है. हालांकि राजद के प्रत्याशी नए हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी पकड़ ज्यादा है. पिछले चुनाव परिणाम को देखते हुए यह साफ है कि इस बार लड़ाई का परिणाम पता लगाना मुश्किल है. दोनों गठबंधन की लड़ाई चरम पर पहुंच गई है. जहां अंदाजा लगाना मुश्किल है. उन्होंने कहा कि इस बार का परिणाम बमुश्किल 10 हजार से 15 हजार वोटों के बीच होगा.