नई दिल्ली:दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा मेडिकल कोर्सेज एमएस, एमडी, एमडीएस, डीएम और एमसीएच कोर्सेज में थीसिस के लेट सबमिशन पर एक हजार रुपये प्रतिदिन का विलंब शुल्क लगाया गया है. इसको लेकर कई डॉक्टर एसोसिएशन ने कड़ी आपत्ति जताई है. रेजिडेंट डॉक्टर्स की संस्था आरडीए एवं फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन (फोर्डा) ने डीयू प्रशासन से इस बढ़े हुए विलंब शुल्क को तुरंत वापस लेने की मांग की है. साथ ही सोशल मीडिया पर भी रेजिडेंट डॉक्टर्स द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है.
दरअसल दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा 19 फरवरी को एक सर्कुलर जारी कर परीक्षा फीस, एग्जामिनर का पारिश्रमिक, प्रश्न पत्र बनाने का प्रति पेपर पारिश्रमिक, प्रश्न पत्र के मॉडरेटर व कोऑर्डिनेटर का प्रति पेपर पारिश्रमिक, छोटे पेपर के मूल्यांकन का प्रति पेपर पारिश्रमिक, प्रैक्टिकल एग्जाम और वाइवा एग्जाम कराने के लिए एग्जामिनर का पारिश्रमिक सहित ट्रैवलिंग एलाउंस व अन्य चीजों का शुल्क निर्धारित किया था. डीयू के डीन एग्जामिनेशन प्रोफेसर अजय कुमार अरोड़ा द्वारा जारी सर्कुलर में सभी तरह के शुल्क के तुरंत प्रभाव से लागू करने की बात कही गई थी. हालांकि, सर्कुलर जारी होने के तुरंत बाद, कुछ डॉक्टर संगठनों ने आपत्ति जताई थी. अब यह मामला तूल पकड़ने लगा है. सर्कुलर में एमडी, एमडीएस, डीएम और एमसीएच की थीसिस जमा करने की फीस 15 हजार रुपये निर्धारित की गई थी.
जुर्माना लगाना ठीक नहीं: मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज की रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. अविरल माथुर ने बताया कि गाइड छात्रों को दो हफ्ते बाद तक की तारीख दे देते हैं. ऐसे मामलों में छात्रों को मोटी रकम लेट फीस के रूप में देनी पड़ेगी. कई छात्र डीआरपी में काम के लिए गए थे, उनकी थीसिस पूरी नहीं हुई है. अगर उन पर नियम लागू हुआ, तो उन्हें 30 हजार रुपये तक का शुल्क देना होगा. थीसिस की फीस बढ़ाना ठीक है, लेकिन जमा न करने पर जुर्माना लगाना ठीक नहीं है. पहले एक हफ्ते देरी पर एक हजार जुर्माना लगता था. यह ठीक था, लेकिन नया नियम फंड एकत्र करने के लिए लाई गई योजना लगता है. इससे डाक्टरों पर वित्तीय संकट बढ़ेगा. डॉक्टर पहले से ही कई चुनौतियों से जूझ रहे हैं. फेडरेशन आफ रेसिडेंस डॉक्टर एसोसिएशन भी इसके विरोध में है और अगर इसे वापस नहीं लिया गया तो कुलपति से मुलाकात कर इसका विरोध जताया जाएगा.