पटना:दीवाली की रौनकमिट्टी के दीयोंके बिना अधूरी है. उजाले के पर्व का मिट्टी के बर्तनों से खासा जुड़ाव रहा है, जो समय के साथ कम होता जा रहा है, लेकिन, पटना के धनरुआ और केवड़ा गांव के कुम्हार समुदाय के लोग मिट्टी के बर्तन बनाने की पुरानी परंपरा को जीवित रखे हुए हैं. तमाम चुनौतियों के बावजूद इस गांव के आज भी मिट्टी के बर्तन बना रहे हैं और आकर्षक कलर देने में जुटे हैं.
बाजार में सजे मिट्टी के खिलौने और दीये:दिवाली में मिट्टी के खिलौने बनाने और खरीदने की पुरानी परंपरा रही है. इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में कुम्हारी कला आज भी जीवंत है. दिवाली और छठ जैसे पर्व पर मिट्टी के खिलौने का डिमांड बाजारों में बढ़ जाती है और बताया जाता है कि दीवाली पर्व पर मिट्टी की खिलौने से घर में सजाने का रिवाज रहा है घर में माता लक्ष्मी सुख शांति समृद्धि आती है. दिवाली का त्योहार आते ही मिट्टी के खिलौने की डिमांड बढ़ जाती है.
दीपावली में मिट्टी के खिलौने:दरअसल, गांव में आज भी कुम्हारी कला जीवंत है और कहा जाता है कि दीपावली में मिट्टी के खिलौने से घर-घरोंदे सजाने की पुरानी परंपरा रही है. इसके पीछे कई कहानियां है. हालांकि इससे कुम्हार का रोजगार भी बढ़ता है और कुम्हारी कला आज भी गांव में जीवंत है. दिवाली में कुम्हार अपने हुनर से मिट्टी के तरह-तरह खिलौने बना रहे हैं और उसे तरह तरह के आकर्षक कलर देने में जुटे हैं.
"मिट्टी का खिलौना हम लोग पुरखों से बनाते आ रहा है. हम पिछले 25-30 साल से बनाते आ रहे हैं. दीपावली के मौके पर खास रूप से आकर्षक रंग-बिरंगे बनाकर बाजारों में बेचते हैं इस बार उम्मीद है की अच्छी कमाई होगी."-सुनीता कुमारी, बरनी धनरूआ
अच्छी खासी आमदनी की उम्मीद:धनरूआ के बरनी गांव के सुनीता देवी ने कहा कि पिछले कई सालों से हमारे पुरखे मिट्टी का खिलौने बनाकर बाजारों में बेच रहे हैं. दिवाली के दिन बाजारों में रंग-बिरंगे तरह-तरह के आकर्षण मिट्टी के खिलौने बेचे और उम्मीद भी लगा रहे हैं कि इस बार बाजार में उनकी अच्छी खासी आमदनी होगी. मिट्टी के खिलौने में घरेलू सामग्री में बर्तन के साथ-साथ गुड़िया खिलौने एवं कई तरह के आकर्षण है. रंग-बिरंगे मिट्टी के खिलौने है मिट्टी के खिलौने बना रहे हैं.