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धार भोजशाला को लेकर जमीयत उलेमा का दावा, यहां मौजूद थी कमाल मौला मस्जिद, सबूत मौजूद - jamiat ulema claim on bhojshala - JAMIAT ULEMA CLAIM ON BHOJSHALA

एमपी के धार जिले में स्थित भोजशाला का पिछले 12-13 दिनों से एएसआई सर्वे चल रहा है. अब भोजशाला को लेकर चल रह विवाद पर जमीयत उलेमा ने दावा किया है. जमीयत उलेमा का दावा है कि यहां हमेशा से ही मस्जिद थी, जिसका सबूत उनके पास है.

JAMIAT ULEMA CLAIM ON BHOJSHALA
धार भोजशाला को लेकर जमीयत उलेमा का दावा, यहां मौजूद थी कमाल मौला मस्जिद, सबूत मौजूद

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 2, 2024, 7:12 PM IST

भोपाल।धार के भोजशाला को लेकर अब जमीयत उलेमा का दावा आया है. जिसमें कहा गया है कि यहां शुरु से ही कमाल मौला मस्जिद ही थी. इसे किसी मंदिर या शाला को तोड़कर नहीं बनाया गया. दावा ये भी है कि इतिहास की कई किताबों में इसके पुख्ता प्रमाण भी मौजूद हैं. जमीयत उलेमा मध्यप्रदेश के अध्यक्ष हाजी हारुन ने ये बयान दिया है और कहा है कि 'कुछ सालों से मस्जिद कमाल मौला को भोजशाला और वागदेवी माता का मंदिर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं. उनका कहना है कि इस तरह के मुद्दे उठाकर प्रदेश के सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश हो रही है. हारुन क कहना है कि धार के राजपत्र में भी मंदिर के दावे का खंडन है.'

धार के राजपत्र में मंदिर के दावे का खंडन

कमाल मौला मस्जिद शुरू से ही एक मस्जिद थी, यह कभी किसी मंदिर या शाला को तोड़ कर या उसमें संशोधित कर के नहीं बनाई गई है. उनका कहना है कि 1935 के धार सरकार के राजपत्र में भी एक व्याख्यात्मक पत्र भी इस बात की तस्दीक करता है. उन्होंने बताया कि अपर ब्रिटिश हाई कमीशन दिल्ली का वजाहती पत्र भी मंदिर के दावे का खंडन करते हुए कहता है कि जिस मूर्ति को सरस्वती या वाग देवी की मूर्ति कहा जा रहा है. असल में वह जैन धर्म की अम्बिका देवी की मूर्ति है. इस बात के भी पुख्ता सुबूत हैं कि मूर्ति अंग्रेज शासन को मस्जिद से नहीं, बल्कि वहां से कई किलोमीटर दूर एक खेत से मिली थी. जो इस वक्त इंग्लैंड के ब्रिटिश म्यूजियम में मौजूद है.'

धार भोजशाल पर जमीयत उलेमा का दावा

हारुन का कहना है कि मस्जिद को जिस भोज शाला से जोड़ा जा रहा है. उसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है. उनका कहना है कि 22 जून 1998 में हिन्दू पक्ष की एक रिट पिटीशन के सिलसिले में केंद्र और राज्य सरकार ने इंदौर हाई कोर्ट में जो जवाब और दस्तावेज जमा किये थे. उनमें भी यह साफ कर दिया था कि भोजशाला और सरस्वती देवी का घर राजा भोज ने कायम किया था, यह साबित नहीं है, दूसरा मस्जिद की नींव 14वीं शताब्दी में मुस्लिम शासन के दौरान इलाके के बिखरे हुए मलबे से रखी गई थी. उनका कहना है कि इस जगह हमेशा से नमाज होती रही है.

मौलाना कमालउद्दीन चिश्नी ने की मस्जिद की स्थापना

हाजी हारुन का कहना है कि 'ऐतिहासिक दस्तावेजों और साक्ष्यों के अनुसार, मस्जिद की स्थापना 1305-1307 में खिलजी शासन के दौरान मौलाना कमालुद्दीन चिश्ती ने की थी. स्थापना के बाद 1307 ई से ही इसमें पांच वक्त की नमाज 1952 तक लगातार जारी रही. 1952 में तत्कालीन शिक्षा सचिव ने कलेक्टर को पत्र लिखकर मनमाने ढंग से और अवैध रूप से वहां मुसलमानों को केवल शुक्रवार की नमाज तक ही सीमित करने को लिखा. हालांकि यह सचिव के अधिकार से परे का मामला था और कुछ महीने पहले निदेशक एएसआई ने अक्टूबर 1951 में यह स्पष्ट कर दिया था कि यहां मुसलमान पांच दैनिक प्रार्थनाओं के अतिरिक्त भी किसी भी समय और किसी भी दिन प्रार्थना कर सकते हैं.

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हारुन का कहना है कि पुरातत्व विभाग के रिकॉर्ड में भी ये स्थान हमेशा से मस्जिद ही रहा है. 1935 के धार सरकार के गजट में आगे बताया गया है कि उस समय PWD विभाग ने मस्जिद के बाहर एक बोर्ड लगाया था. जिस पर मस्जिद के आगे भोज शाला शब्द जोड़ा गया था, जिस पर मुसलमानों ने कड़ा विरोध किया था.

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