वाराणसी :सनातन धर्म के अनुसार सभी तिथियों का किसी न किसी देवी-देवता की पूजा-अर्चना से संबंध है. तिथि विशेष के अनुसार पूजा-अर्चना मनोरथ की पूर्ति करने वाली होती है. इसी क्रम में कार्तिक माह की एकादशी तिथि की भी विशेष महत्ता है. कार्तिक मास का यह प्रमुख पर्व है. कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को देव प्रबोधिनी, हरिप्रबोधिनी, डिठवन या देवउठनी (देवोत्थान) एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस बार यह पर्व आज मनाया जाएगा.
ज्योतिषविद के अनुसार कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि से कार्तिक पूर्णिमा तक शुद्ध देशी घी के दीपक जलाने से जीवन के सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है. भगवान श्री विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन क्षीरसागर में योगनिद्रा के लिए प्रस्थान करते हैं. कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन 12 नंवबर (आज) को भगवान विष्णु के योगनिद्रा से जागृत होने के पश्चात समस्त मांगलिक शुभ कार्य शुभ मुहूर्त में प्रारंभ हो जाएंगे.
16 जुलाई से चल रहे चातुर्मास्य का कल होगा समापन :इस दिन स्मार्त व वैष्णवजन व्रत रखकर भगवान श्री विष्णु की आराधना करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करेंगे. हरिशयनी एकादशी (16 जुलाई, बुधवार) से प्रारंभ चातुर्मास्य का व्रत, यम, नियम, संयम आदि का समापन देव (हरि) प्रबोधिनी एकादशी (12 नवंबर, मंगलवार) को हो जाएगा.
इतने समय तक रहेगी एकादशी तिथि :ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 11 नवंबर, सोमवार को सायं 6 बजकर 47 मिनट पर लगेगी. यह अगले दिन 12 नवंबर मंगलवार को सायं 4 बजकर 06 मिनट तक रहेगी. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र 12 नवंबर मंगलवार को प्रातः 7 बजकर 53 मिनट से उसी दिन अर्द्धरात्रि के पश्चात 5 बजकर 41 मिनट तक रहेगा. हरिप्रबोधिनी एकादशी का व्रत उदयातिथि के अनुसार 12 नवम्बर, मंगलवार को रखा जाएगा.
इस दिन व्रत-उपवास रखकर भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है. व्रतकर्ता को प्रातःकाल समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारणकर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात देव प्रबोधिनी एकादशी के व्रत एवं भगवान श्रीविष्णुजी की पूजा-अर्चना का संकल्प लेना चाहिए. उनकी महिमा में श्रीविष्णु सहस्रनाम, श्रीपुरुषसूक्त तथा श्री विष्णु से संबंधित मंत्र 'ॐ श्री विष्णवे नमः' का जप करना चाहिए.
अब पढ़िए पूजन की विधि :ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि इस के दिन गन्ने का मंडप बनाकर शालिग्राम के साथ तुलसी का विवाह रचाया जाता है. मान्यता के मुताबिक देवप्रबोधिनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक तुलसी जी की रीति- रिवाज व धार्मिक विधि-विधान से पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है. इस दिन भगवान गणपति एवं शालिग्राम की भी पूजा की जाती है. व्रत के दिन फलाहार ग्रहण करना चाहिए, अन्न ग्रहण का निषेध है. एकादशी तिथि की रात्रि में जागरण करके भगवान विष्णु की श्रद्धा, आस्था भक्तिभाव के साथ आराधना करना शुभ फलकारी माना गया है. इस दिन गंगा स्नान या स्वच्छ जल से स्नान करके देव अर्चना के बाद ब्राह्मण को उपयोगी वस्तुओं का दान करना चाहिए.
भीष्म पंचक व्रत :देव प्रबोधिनी एकादशी से भीष्म पंचक व्रत भी रखा जाता है. भीष्म पितामह ने एकादशी से पूर्णिमा तक पांडवों को उपदेश दिया था. उपदेश की समाप्ति पर भगवान कृष्ण ने भीष्म पंचक व्रत की मान्यता स्थापित की, तभी से इस व्रत का विधान चला आ रहा है. देव प्रबोधिनी एकादशी का व्रत महिला व पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फलदायी है. भगवान श्री हरि विष्णु की विशेष कृपा से जीवन के समस्त पापों का शमन हो जाता है. साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली का सुयोग बनता है.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि तुलसी विवाह के साथ ही 4 महीने से बंद पड़ा विवाह और शुभ लग्न का मुहूर्त भी अब शुरू हो जाएगा. 12 तारीख को तुलसी विवाह के साथ ही शाम से ही शहनाई गूंजेगी और शादियां और शुभ कार्य शुरू होंगे.
पढ़िए साल 2024 के बाकी बचे महीनों के विवाह मुहूर्त :नवंबर में 12, 13, 16, 17, 18, 24, 25, 26, 28, 30 को विवाह का मुहूर्त है. इसी कड़ी में दिसंबर महीने में 1, 2, 3, 4, 5, 9, 10, 11 को मुहूर्त है.
साल 2025 में इन तारीखों पर है विवाह मुहूर्त :जनवरी में 16, 18, 19, 20, 21, 24, 26, 27 को मुहूर्त है. फरवरी में 1, 2, 3, 8, 12, 14, 15, 16, 22, 23, 24 को मुहूर्त है. मार्च में 1, 2, 31 को मुहूर्त है. अप्रैल में 15, 16, 20, 25, 26 को मुहूर्त है. मई में 1, 7, 8, 9, 11, 15, 16, 22, 23, 24, 27, 28 मुहूर्त है. जून में 3, 4, 51 मुहूर्त है. नवंबर में 2, 3, 4, 7, 8, 12, 13, 14, 15, 16, 18, 20, 21, 24 को मुहूर्त है जबकि दिसंबर में 1 और 14 को मुहूर्त है.
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