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हेड कांस्टेबल आशीष दहिया 138 बार कर चुके हैं रक्तदान, कभी भी खून की जरूरत हो, फौरन करते हैं मदद - DELHI POLICE HEAD CONSTABLE Ashish - DELHI POLICE HEAD CONSTABLE ASHISH

दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल आशीष कुमार दहिया अब तक 138 बार रक्तदान कर चुके हैं. उनका मानना है कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण काम है किसी की जिंदगी बचाना. आशीष लोगों को रक्तदान के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक भी करते हैं..

दिल्ली पुलिस  हेड कांस्टेबल आशीष कुमार दहिया
दिल्ली पुलिस हेड कांस्टेबल आशीष कुमार दहिया (Etv Bharat)

By ETV Bharat Delhi Team

Published : Jul 16, 2024, 5:11 PM IST

Updated : Jul 17, 2024, 2:54 PM IST

नई दिल्लीः दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल आशीष कुमार दहिया 138 बार रक्तदान कर चुके हैं. पहले रक्तदान किया तो उन्हें घरवालों और करीबियों के विरोध का सामना करना पड़ा. लेकिन बाद उनके इस नेक कार्य से प्रभावित होकर उनकी मां ने 9 बार और पत्नी ने 16 बार रक्तदान किया. आशीष का कहना है कि अपने व करीबियों के लिए लोग रक्तदान करने के लिए तैयार हो जाते हैं, लेकिन मेरा उद्देश्य ऐसे लोगों के लिए रक्तदान करना है, जिन्हें मैं जानता तक नहीं.

रक्तदान के जरिए लोगों के जीवन का संरक्षण करने वाले आशीष पर्यावरण संरक्षण का भी कर रहे हैं. आशीष लोगों को पौधे देकर उन्हें पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक करते हैं. वह अपने इस सराहनीय कार्य से न सिर्फ दिल्ली पुलिस का मान बढ़ा रहे हैं बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी हैं. प्रस्तुत है ईटीवी भारत के साथ हेड कांस्टेबल आशीष दहिया से बातचीत का प्रमुख अंश...

सवालः आप मूलरूप से कहां के हैं और कहां से रक्तदान की प्रेरणा मिली?

जवाबःमैं मूलरूप से हरियाणा के सोनीपत जिले में स्थित सिसाना गांव का रहने वाला हूं. सिसाना वो गांव है जिस गांव के कर्नल होसियार सिंह दहिया को जीवित रहते देश में पहली बार सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र मिला. इस गांव के कई महान हस्तियों ने देश दुनिया में नाम कमाया. परिवार में मेरे पिता विजेंद्र सिंह दहिया, माता सरोज देवी और छोटा भाई विरेंद्र सिंह, पत्नी पारूल व अन्य लोग हैं. छोटा भाई भी दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल है. वर्ष 2003 में मैं अपने ताऊ के बेटे बड़े भाई सतेंद्र सिंह दहिया के पास पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ गया था. वहां पर एक व्यक्ति अपने बच्चे के खून के लिए सिफारिश कर रहा था. बच्चा तड़प रहा था. मुझे पता नहीं था कि रक्तदान कैसे करते हैं, रक्त कहां से आता है. मैंने डाक्टरों से पूछा और रक्तदान कर दिया. यहीं से रक्तदान का सफर शुरू हुआ. 2012 से दिल्ली पुलिस का हिस्सा हूं.

सवालः आपके घरवाले रक्तदान के विरोध में थे तो मां और पत्नी को कैसे रक्तदान के लिए कैसे तैयार किया?

जवाबः पहली बार रक्तदान किया तो एक तरफ भाई विरोध कर रहा था, दूसरी तरफ मां और घरवाले विरोध कर रहे थे. मुझे यहां तक कह दिया कि जिसको खून देकर आ रहे हो जाओ उसी के यहां खाना भी खाओ, लेकिन घरवालों को मैंने समझाया. 2006 तक तीन बार रक्तदान किया. इसके बाद मैं रेड क्रास सोसाइटी के संपर्क में आया. यहां पर धर्मवीर दहिया से मुलाकात हुई. उनसे मैंने सीखा की किस तरह लोगों को भी जागरूक करना है, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग रक्तदान करें और दूसरों की जिंदगी बच सके. मैंने अपनी मां और पत्नी को भी जागरूक किया. मेरी मां ने 9 बार रक्तदान किया है. पत्नी पारुल ने 16 बार रक्तदान कर चुकी हैं. पत्नी पारुल कैंसर पीड़ितों के लिए अपने बाल तक दान कर चुकी हैं.

सवालः अब तक कितनी बार रक्तदान कर चुके हैं. क्या रक्तदान का अपके स्वास्थ्य पर कोई असर पड़ा?

जवाब: अब तक मैं कुल 138 बार रक्तदान कर चुका हूं. लोगों को रक्तदान करे के लिए जागरूक भी करता हूं कि वह सरकारी अस्पताल में या रेड क्रास ब्लड बैंक में रक्तदान करें. हर तीन माह में रक्तदान किया जा सकता है. मेरे स्वास्थ्य पर कोई बुरा असर नहीं है. मैं पूरी तरह स्वस्थ हूं. रक्तदान करने के बाद 12-12 घंटे तक की ड्यूटी भी किया हूं. खानपान, रक्तदान या अन्य किसी काम करने का एक नियम होता है. यदि नियम के तहत कोई भी काम किया जाए तो उसका कोई बुरा असर नहीं पड़ता है. मेरा ब्लड ग्रुप ओ पोजिटिव है. विभिन्न अस्पताल व ब्लड बैंक वालों के पास मेरा नंबर है. इमरजेंसी में मुझे फोन करते हैं. यदि रक्तदान किए हुए तीन माह पूरे हो गए होते हैं तो मैं रक्तदान करने चला जाता हूं.

सवालः रक्तदान के साथ आप पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को पौधे देकर जागरूक करने का भी काम करते हैं. कहां से प्रेरणा मिली?

जवाबःबचपन में गांव के पास नहर की खाई टूटने से लोगों के घरों में पानी भर गया. मैंने अपने ताऊ से पूछा पानी क्यों आ गया. उन्होंने बताया कि नहर की खाई पर पेड़ थे जो काट दिए गए, जिसकी वजह से खाई टूट गई पानी आ गया. पेड़, खाई और नहर का संबंध तक समझ में नहीं आया तो मैंने कई सवाल ताऊ से पूछे. तब मुझे पेड़ के महत्व के बारे में समझ आया. बचपन से अब तक पौधे लगाकर पेड़ होने तक उनके संरक्षण का काम करता आ रहा हूं. मेरी ड्यूटी इंडिया गेट पर लगी तो देखा कि जो लोग घूमने के लिए आ रहे हैं. वो पानी या कोल्ड ड्रिंक पीकर प्लास्टिक की बोतलें इधर उधर फेंक दे रहे हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है. मैं उन बोतलों में पौधे लगाकर लोगों के देना शुरु कर दिया. इसके बाद लोगों को शादियों में पौधे देकर पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक करने का काम शुरू कर दिया. अभी भी लोगों को पौधे देकर जागरूक करने के साथ पौधे लगाकर उनकी देखरेख करने का काम कर रहे हैं.

सवालः आपके इस सराहनीय कार्य से स्टाफ और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की क्या प्रतिक्रिया रहती है?

जवाबः दिल्ली पुलिस के हमारे सहयोगी और वरिष्ठ अधिकारी हमारे इस नेक और सराहनीय कार्य में पूरा सहयोग देते हैं. जब हमारे इस कार्य के लिए कोई वरिष्ठ अधिकारी हमसे हाथ मिलाकर बधाई देते हैं या कंधे पर हाथ रखते हैं तो मनोबल और बढ़ जाता है. रक्तदान कर लोगों का जीवन बचाना हो या पर्यावरण संरक्षण करने का काम हो इसके लिए तन और मन से काम करने की प्रेरणा मिलती है. मेरे इस सराहनीय कार्य से दिल्ली पुलिस के अन्य कई जवान भी प्रेरित हुए. जिन्होंने रक्तदान किया दिल्ली पुलिस के शांति सेवा और न्याय के स्लोगन को साकार करने का काम किया. दिल्ली पुलिस की वर्दी के नेमप्लेट पर ब्लड ग्रुप नहीं होता है. लेकिन मैंने एक अलग से प्लेट बनवाया है, जिसपर मेरा ब्लड ग्रुप लिखा हुआ है. मेरा ब्लड ग्रुप ओ है, जो यूनिवर्सल डोनर कहा जाता है.

Last Updated : Jul 17, 2024, 2:54 PM IST

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