डीग. यहां के जलमहल वास्तु, स्थापत्य कला और इंजीनियरिंग का अद्भुत उदाहरण हैं. महाराजा बदन सिंह ने करीब 250 वर्ष पूर्व जलमहलों का निर्माण शुरू किया, लेकिन महाराजा सूरजमल ने इन महलों को अपनी सोच और सूझबूझ से अनुपम खूबियों से नवाजा. डीग के जलमहलों की सुंदरता, इसका स्थापत्य कला और पानी के इस्तेमाल से गर्मी में भी बरसात का एहसास दिलाने वाली तकनीक की वजह से डीग को भरतपुर की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में पहचाना जाता था. आज से करीब 250 से 300 वर्ष पूर्व जलमहल में महाराजा सूरजमल ने ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया, जिससे बिना बिजली के इस्तेमाल से जल महल परिसर में लगे 2 हजार फव्वारे संचालित होते थे. आज भी ये फव्वारे फाल्गुन माह में अलग अलग रंग की छटा बिखेरते हुए संचालित होते हैं. डीग के जलमहलों में और भी कई तकनीकों का इस्तेमाल किया गया, जिससे यहां गर्मी के असर को कम कर बरसात के मौसम का अहसास होता था.
स्थापत्य और तकनीक का नमूना :भरतपुर के एमएसजे कॉलेज में इतिहास विषय की सहायक आचार्य डॉ. संतोष गुप्ता ने बताया कि 1721-22 में महाराजा बदन सिंह ने डीग के जलमहलों का निर्माण शुरू किया. इसके बाद उनके बेटे महाराजा सूरजमल ने जलमहलों का भव्यता के साथ निर्माण कराया. जलमहलों में वास्तु कला और स्थापत्य कला के साथ ही तकनीक का इस्तेमाल भी किया गया. डीग के जलमहलों को असली सुंदरता महाराजा सूरजमल और महाराजा जवाहर सिंह के समय में मिली.
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ऐसे संचालित होते हैं रंगीन फव्वारे :डॉ. संतोष गुप्ता ने बताया कि रूप सागर और गोपाल सागर दो जलाशयों के मध्य में स्थित डीग के जल महल के भवनों में चारबाग पद्धति का इस्तेमाल किया गया है. जलमहलों में सुव्यवस्थित 2000 फव्वारे और नहरें, बड़े-बड़े उद्यानों का निर्माण कराया गया. बिना बिजली के भी ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया था, जो आश्चर्यचकित कर देती है. उस समय रूप सागर और गोपाल सागर से बैलों से रहट से भवन की छत पर बने बड़े जलाशय को भरा जाता. इसके बाद महल परिसर में बने 2000 फव्वारों में एक साथ पानी छोड़ा जाता. ये फव्वारे बिना बिजली और बिना मोटर के संचालित होते थे. इससे महल परिसर का तापमान भी नियंत्रित होता था. ये फव्वारे इतने साल बाद आज भी दुरुस्त हैं और साल में दो बार चलाए जाते हैं. आज भी इन फव्वारों से अलग अलग रंग की फुहारें निकलती हैं. इसके लिए छत पर बने जलाशयों के छेदों में अलग अलग रंग की पोटली रखी जाती हैं.
बिना बिजली के संचालित होते हैं 2 हजार रंगीन फव्वारे अलग अलग भवनों का निर्माण :उन्होंने बताया कि जलमहल परिसर में अलग-अलग भवनों का भी निर्माण कराया गया, जिनमें गोपाल भवन, सूरज भवन, किसन भवन, नंद भवन, केशव भवन और हरदेव भवन शामिल हैं. इन सभी भवनों की अपनी अपनी अलग-अलग विशेषताएं भी हैं. गर्मी के मौसम की तपिश से बचाने के लिए भवनों के निर्माण के समय विशेष ध्यान रखा गया. गर्मी में भवनों के अंदर ज्यादा तापमान न रहे इसके लिए भवनों की छतों की मोटाई 7 फीट तक रखी गई. इसके लिए मिट्टी के पके हुए बर्तनों को उल्टा रखकर छतों का निर्माण किया गया. छत पर उल्टे रखे गए खाली बर्तनों से तापमान मेंटेन रहता और भवनों के अंदर गर्मी के मौसम में गर्मी का अहसास न के बराबर होता था.
मानसून का अहसास :जलमहल का केशव भवन सबसे खास भवन था. इस भवन में तकनीक का अद्भुत इस्तेमाल किया गया. तकनीक के इस्तेमाल से इस भवन में गर्मी के मौसम में भी मानसून का अहसास होता था. असल में इस भवन की छत में पत्थर की गेंदें थीं, जिनमें पानी के पाइप से पानी छोड़ा जाता तो वो गर्जना के साथ छत पर घूमती थीं. इससे बादल की गर्जना जैसा अहसास होता. साथ ही भवन की छत के चारों तरफ टिंटियों और परनालों से पानी गिरता रहता, जिससे बरसात और मानसून की अनुभूति होती.