मध्य प्रदेश

madhya pradesh

ETV Bharat / state

महाभारत कालीन वनखण्डेश्वर महादेव मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब, यहां आज भी आते हैं द्रोण पुत्र अश्वत्थामा

Datia Vankhandeshwar Mahadev : महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर दतिया के वनखण्डेश्वर मंदिर में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा. श्रद्धालुओं ने यहां पहुंचकर महादेव का जलाभिषेक कर पूजा अर्चना की. इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा बताया जाता है.

datia vankhandeshwar mahadev
महाभारत कालीन हैं वनखंडेश्वर महादेव

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 8, 2024, 8:57 PM IST

वनखण्डेश्वर महादेव मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब

दतिया।प्रसिद्ध शक्ति पीठ श्री पीतांबरा पीठ स्थित भगवान वनखण्डेश्वर महादेव अति प्राचीन महाभारत काल के समय के माने जाते हैं महाशिवरात्रि पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और भोलेनाथ की पूजा अर्चना करते हैं. शुक्रवार को महाशिवरात्रि पर यहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा.

महाभारत कालीन हैं वनखंडेश्वर महादेव

दतिया में स्थित प्रसिद्ध शक्ति पीठ श्री पीतांबरा पीठ स्थित भगवान वनखण्डेश्वर महादेव अति प्राचीन महाभारत कालीन समय के माने जाते हैं. पीतांबरा माई के सेवक पंडित शिवम व्यास बताते हैं कि "यह स्थल पीतांबरा पीठ के संस्थापक राष्ट्रगुरु पूज्यपाद स्वामी जी महाराज के साथ कौरव पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा की तपस्थली भी माना जाता है. जनश्रुतियों एवं किवदंतियों के अनुसार मान्यता है कि यहां विराजमान वनखंडेश्वर महादेव महाभारतकालीन हैं. यही वजह है कि पूज्यपाद स्वामी जी महाराज ने इस स्थान को अपनी साधना का केंद्र बनाया था. रियासतकाल के दौरान वन खंड यानी जंगलों के एक हिस्से में यह शिवलिंग होने की वजह से इसे वनखंडेश्वर महादेव कहा जाता है. महादेव यहां सपरिवार विराजमान हैं".

भक्तों की आस्था और श्रद्धा का केंद्र

महाशिवरात्रि के अलावा श्रावण मास एवं अन्य अवसरों पर पीतांबरा पीठ पर विराजमान वनखंडेश्वर महादेव सदैव भक्तों की आस्था और श्रद्धा का केंद्र रहते हैं. पीतांबरा पीठ पर आने वाले आम एवं खास श्रद्धालु वनखंडेश्वर महादेव के दर्शन व पूजन-अर्चना कर उनका जलाभिषेक जरूर करते हैं. पीतांबरा पीठ पर आने वाले श्रद्धालु मां बगुलामुखी और मां धूमावती के साथ वनखंडेश्वर महादेव का अभिषेक कर उनके समक्ष नतमस्तक जरूर होते हैं. कहा जाता है कि रियासत काल में यह मंदिर जंगलों के बीच में होने की वजह से वनखंडेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध था.

अश्वत्थामा की तपस्थली माना जाता है यह क्षेत्र

पीतांबरा पीठ के पीठाधीश्वर स्वामीजी महाराज ने यह स्थान एकांत में होने की वजह से इसे अपनी साधना स्थली के रूप में चुना था. यहां आने से पूर्व स्वामीजी महाराज पंचम कवि की टोरिया एवं मढ़िया के महादेव पर रहे हैं. इस स्थान पर आने के बाद वह फिर कहीं नहीं गए. कहा जाता है यहां स्वामीजी का अश्वत्थामा से भी साक्षात्कार हुआ है. हालांकि वनखंडेश्वर महादेव के महाभारतकालीन होने का कहीं कोई लिखित प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन किवदंतियों में यह अश्वत्थामा की तपस्थली माना जाता है.

ये भी पढ़ें:

रहस्यमयी है 2000 साल पुराना चौसठ योगिनी मंदिर, विराजमान है भगवान शिव की विवाह प्रतिमा

300 साल पहले मराठा रानी के सपने में आया था स्वयंभू शिवलिंग, फिर कराया गया था पटनेश्वर मंदिर का निर्माण

इतिहासकारों की नजर में वनखंडेश्वर महादेव

इतिहासकार एवं वरिष्ठ पत्रकार रवि ठाकुर की माने तो "ऐसी धारणा है कि अश्वत्थामा सर्व व्यापी हैं. किसी ने उन्हें देखा तो नहीं लेकिन माना जाता है कि जहां-जहां प्राचीन शिवलिंग हैं वहां अश्वत्थामा साधु, सन्यासी या आम आदमी के वेश में अवश्य पहुंचते हैं. रवि ठाकुर का कहना है कि ऐसी धारणा है कि अश्वत्थामा की भेंट पृथ्वीराज चौहान से हुई थी. पृथ्वीराज चौहान शिवभक्त थे और जहां उनकी सेना जाती थी वहां पार्थिव शिवलिंग की स्थापना कराने के साथ पूजन करते थे. पृथ्वीराज चौहान के समय जहां-जहां महादेव मंदिरों की स्थापना हुई उन्हें वनखंडेश्वर महादेवों की मान्यता प्राप्त है". इतिहासकार यह भी बताते हैं कि पृथ्वी राज चौहान को शब्दवेद की शिक्षा भी अश्वत्थामा ने ही दी थी.

ABOUT THE AUTHOR

...view details