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खटीमा झनकईया में सिंघाड़ा मेले में उमड़ी लोगों की भीड़, जमकर की खरीदारी, देखने को मिलती है विनिमय परंपरा

लोग बेसब्री से खटीमा झनकईया शारदा नदी के तट पर लगने वाले सिंघाड़ा मेले का इंतजार करते हैं. जिसमें नेपाल से भी लोग पहुंचते हैं

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खटीमा झनकईया सिंघाड़ा मेला (Photo-ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 22, 2024, 9:51 AM IST

खटीमा: भारत-नेपाल सीमा के झनकईया शारदा नदी के तट पर लगने वाले गंगा स्नान मेले को सिंघाड़ा मेला के रूप में भी जाना जाता है. हर वर्ष आठ से दस दिनों तक चलने वाले इस मेले में भारी संख्या में नेपाल उत्तराखंड व यूपी के मेलार्थी पहुंचते हैं. घने जंगलों के मध्य लगने वाले इस मेले में स्वादिष्ट सिंघाड़े को खरीदने भारत ही नहीं पड़ोसी देश नेपाल से भी हजारों लोग आते हैं.थारू जनजाति क्षेत्र के रूप में पहचान रखने वाले खटीमा क्षेत्र के थारू व अन्य किसान आज भी प्राचीन वस्तु विनिमय पद्धति को अपना धान व अन्य अनाज के बदले सिंघाड़े को खरीदते हैं. प्राचीन वस्तु विनिमय का शानदार उदाहरण आज भी इस मेले में देखने को मिलता है.

मेला का लोग करते हैं बेसब्री से इंतजार:आज ही कई मेले ऐसे हैं जिनका जनता को वर्ष भर इंतजार रहता है. उधम सिंह नगर जनपद के खटीमा तहसील में भारत नेपाल सीमा पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर शारदा नदी के तट पर सिंघाड़ा मेला लगता है. आठ से दस दिनों तक घने जंगलों के मध्य लगने वाला यह मेला सिघाड़ा मेले के रूप में जाना जाता है. इस मेले में उत्तराखंड के अलावा यूपी के पीलीभीत,बरेली, शाहजहांपुर सहित विभिन्न जनपदों से सिंघाड़ा व्यापारी इस मेले में पहुंचते हैं.

सिंघाड़ा मेले में लोगों ने जमकर की खरीदारी (Photo-ETV Bharat Video-ETV Bharat)

नेपाल से भी बड़ी तादाद में पहुंचते हैं लोग:मेले में सिंघाड़े खरीदने के लिए पड़ोसी देश नेपाल से भी हजारों लोग आते हैं. इस मेले में वस्तु विनिमय परंपरा भी देखने को मिलती है. जिसमें नेपाली व थारू जनजाति काश्तकार अनाज के बदले इस सिंघाड़ा खरीद अपने घरों को ले जाते हैं. आठ से दस दिनों तक चलने वाले इस मेले में जहां हर वर्ष लाखों मेलार्थी पहुंचते हैं, वही कुंतलों के हिसाब से सिंघाड़ा इस मेले बिकता है.

मेले में देखने को मिलती है विनिमय परंपरा:उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से इस मेले में पहुंचे व्यापारी अच्छी सिंघाड़ा बिक्री होने की बात कह रहे हैं. वहीं नेपाल से पहुंचे मेलार्थी भी वर्ष भर इस मेले के इंतजार करते हैं. भारत की नेपाल सीमा पर लगने वाले इस मेले से बेहद स्वादिष्ट व सस्ते सिंघाड़े खरीदने की बात कह रहे हैं. गौर हो कि यह मेला आज भी भारत की सांस्कृतिक विरासत, संस्कृति की जीवंत रखे हुए है. प्राचीन वस्तु विनिमय यानी वस्तु के बदले अन्य वस्तु लेने की परंपरा इस मेले में आज भी देखी जा सकती है.
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