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बिहार में सुरक्षित सीटों पर कब्जा बनाये रखना NDA के लिए चुनौती, आंकड़ों से जानिए पूरा गणित - जीतन राम मांझी

Lok Sabha Election 2024 बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. इनमें से गया, सासाराम, गोपालगंज, हाजीपुर, जमुई और समस्तीपुर छह सीटें सुरक्षित हैं. इन छह सीटों के दावेदारों ने एनडीए में बेचैनी बढ़ा दी है. भारतीय जनता पार्टी के लिए इन सीटों पर सामंजस्य बैठाने की चुनौती होगी. नीतीश के एनडीए में आने के बाद मामला और पेचीदा हो गया है. पढ़ें, विस्तार से.

छह सीटों के दावेदारों ने एनडीए में बेचैनी बढ़ा
बिहार में आरक्षित छह सीटों के दावेदारों ने एनडीए में बेचैनी बढ़ाई.

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Feb 26, 2024, 8:29 PM IST

लोकसभा के लिए सुरक्षित सीटों का राजनीतिक जोड़-घटाव.

पटना: लोकसभा चुनाव 2024 की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. बिहार में लोकसभा की 40 सीटों में से 6 सीट एससी-एसटी के लिए सुरक्षित है. लगातार दो लोकसभा चुनाव से सभी 6 सीट एनडीए के कब्जे में है. इनमें से आधे पर रामविलास पासवान के परिवार का कब्जा है. जीतना मांझी की तरफ से गया सीट पर दावेदारी की जा रही है. रामविलास पासवान के परिवार में भी हंगामा मचा है. जमुई सीट पर जदयू की भी नजर है. नीतीश कुमार, अशोक चौधरी को वहां से लड़ाना चाहते हैं. लोकसभा की सुरक्षित सीटों पर बीजेपी की भी नजर है.

सीट पर दावेदारी: बिहार में लोकसभा की सुरक्षित 6 सीटों में हाजीपुर, समस्तीपुर, सासाराम, गोपालगंज, गया और जमुई है. इसमें से हाजीपुर, समस्तीपुर और जमुई रामविलास पासवान के परिवार के पास है. हाजीपुर से पशुपति पारस सांसद हैं. वहीं उनके भतीजे प्रिंस राज समस्तीपुर से सांसद हैं. चिराग पासवान जमुई से सांसद हैं. समस्तीपुर और जमुई सीट पर जदयू की भी नजर है. समस्तीपुर से जदयू के महेश्वर हजारी सांसद रह चुके हैं. गोपालगंज और गया सीट अभी जदयू के पास है. बीजेपी के पास केवल सासाराम की सीट है, जहां से छेदी पासवान सांसद हैं.

आबादी के हिसाब से हिस्सेदारीः बिहार में हुई जातीय गणना सर्वे में एससी-एसटी की कुल आबादी 21% के करीब होने की बात बतायी गयी. रिपोर्ट के अनुसार बिहार में अनुसूचित जाति की आबादी 2,56,89,820 है. यह संख्या करीब 19.65% है. अनुसूचित जनजाति की आबादी 21,99,361 है जो कुल आबादी का 1.68% है. 2014 में बीजेपी ने 22 सीट पर जीत दर्ज की थी. लेकिन नीतीश कुमार के एनडीए में आने के बाद 2019 में बीजेपी को पांच सीटिंग सीट छोड़ना पड़ा था. इसमें गया और गोपालगंज का सीटिंग सीट भी थी. 2014 में जनक राम गोपालगंज से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते थे. गया सीट पर जदयू के सांसद हैं. लेकिन इस सीट पर बीजेपी इस बार अपना उम्मीदवार देना चाहती है. जीतन राम मांझी की नजर भी इस सीट पर है.

चाचा-भतीजा ने बढ़ायी टेंशनः 2019 में रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा को 6 सीट दिया गया था. रामविलास पासवान के निधन के बाद पशुपति पारस और चिराग पासवान दो गुट में बंट गये. एक तरफ जहां चिराग पासवान लोजपा की सभी सीट चाहते हैं तो वहीं पशुपति पारस अपने को असली लोजपा बताते हुए सभी सीट पर दावेदारी कर रहे हैं. और सबसे अधिक विवाद हाजीपुर सीट को लेकर है. पशुपति पारस अभी वहां से सांसद हैं और फिर से चुनाव लड़ने की बात पर कर रहे हैं. चिराग पासवान जमुई से शिफ्ट होकर अब हाजीपुर से इस बार चुनाव लड़ना चाहते हैं.

"एनडीए में ऐसे तो भी सीट शेयरिंग पर बिहार में कोई बातचीत नहीं हुई है. नीतीश कुमार के आने से पहले ही मुश्किलें बढ़ी हुई थी. सीटिंग सीट कोई छोड़ना चाहता नहीं है. इसलिए सुरक्षित सीट का बंटवारा भी आसान नहीं है. जीतन राम मांझी को गया सीट मिलेगी इसकी संभावना कम ही दिखती है. जहां तक हाजीपुर सीट की बात है तो बीजेपी इसे चिराग पासवान को दे दे कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी."- प्रो. अजय झा, राजनीतिक विश्लेषक

एनडीए के लिए है महत्वपूर्णः राजनीतिक विश्लेषक प्रेम रंजन भारती कहते हैं कि सुरक्षित सभी 6 सीट एनडीए के लिए महत्वपूर्ण है. एनडीए के लिए भी यह सीट सुरक्षित है, जिस पर जीत मिलना तय है. बिहार में दलित की राजनीति जीतन राम मांझी भी करते हैं. अभी सुरक्षित 6 सीट में तीन पर चिराग पासवान और पशुपति पारस का कब्जा है. जीतन राम मांझी इस बार अपना खाता खोलना चाहते हैं. सुरक्षित सीट उनके लिए सबसे आसान होगा. वहीं बीजेपी 400 पार का नारा दे रही है इसलिए अधिक सीटों पर लड़ना चाहेगी.

दलित वोट बैंक पर सभी की नजर: ऐसे तो प्रत्येक लोकसभा सीटों में दलित वोट बैंक बड़ा असर डालता है. बिहार की 6 सुरक्षित सीट पर दलितों की आबादी तो अधिक है इसके अलावा एक दर्जन से अधिक लोकसभा सीटों पर दलित हार जीत का फैसला करते हैं. ऐसे राज्य के हर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में 50 हजार से अधिक दलित मतदाता हैं, जो जीत हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. लेकिन इन 6 सीट पर दावेदारी इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि बिहार में दलितों का वोट बैंक 21% के आसपास है. इस वोट बैंक पर राज करना है तो इन 6 सीट में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होगी.

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