नई दिल्ली: दिल्ली में यमुना के कालिंदीकुज घाट पर सोमवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही महापर्व छठ का समापन हो गया. 14 अप्रैल यानी रविवार को छठ व्रतियों ने अस्ताचलगामी भगवान भाष्कर को अर्घ्य अर्पित किया था. चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की छठी तिथि को चैती छठ के नाम से जाना जाता है और उस दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.
लोक आस्था के महापर्व चैती छठ के चौथे दिन सोमवार 15 अप्रैल को व्रतियों ने उगते सूर्य को अर्घ्य दिया. इसके साथ ही 36 घंटे का निर्जला उपवास समाप्त हो गया. सुबह से ही घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिली. देशभर में साल में छठ पूजा 2 बार की जाती है. चैत्र माह में मनाए जाने वाली छठ को चैती छठ और कार्तिक माह में मनाई जाने वाली छठ को कार्तिकी छठ के नाम से जाना जाता है. चैती छठ का व्रत महिलाएं संतान के अच्छे स्वास्थ्य और उन्नति के लिए रखतीं हैं. यह त्योहार 4 दिन तक मनाया जाता है. तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है. इसी के साथ चैती छठ का पर्व समापन होता है.
इस दिन विशेष रूप से छठ माता और भगवान सूर्य देव की पूजाकी जाती है. इससे सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य को छठव्रती भगवान सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित किया. इस दिन मिट्टी के चूल्हे पर या ईंट के चूल्हे पर छठी मैया का प्रसाद तैयार किया जाता है. छठी मइया के प्रसाद में विशेषकर ठेकुआ तैयार किया जाता है. इसके साथ ही मौसमी फल का दउरा तैयार किया जाता है. शाम होने पर छठ व्रती पूरे परिवार के साथ छठ घाट पर पहुंचते हैं और छठी मइया की विधि-विधान से पूजा अर्चना कर सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करते है. ठीक उसी तरह सुबह वाले अर्घ्य में भी इसी नियम के साथ पूजा का विधान है.