उत्तराखंड लोकसभा चुनाव में मुद्दा बन सकती है जातीय जनगणना देहरादून: लोकसभा चुनाव से पहले जातीय जनगणना की चर्चाओं से सियासी माहौल गर्म है. जातीय जनगणना को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी झंडा बुलंद किये हुए हैं. बिहार में आरजेडी इसे लेकर खुलकर फ्रंटफुट पर खेल रही है. इंडिया गठबंधन भी इस मुद्दे को लेकर लगातार केंद्र सरकार पर हमलावर है. वहीं, बात अगर बीजेपी की करें को वो अभी इस मामले पर कुछ भी कहने से बच रही है. बीजेपी लोकसभा चुनाव में जातीय समीकरण के इतर राम मंदिर, धारा 370, परिवारवाद पर बैटिंग करने की तैयारी में है.
उत्तराखंड में भी कांग्रेस जातीय जनगणना का मुद्दा उठाने जा रही है. तीन सीटों पर लोकसभा कैंडिडेट की लिस्ट जारी होने के बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने इसे लेकर पार्टी की स्थिति स्पष्ट की. करन माहरा ने कहा कांग्रेस जातीय जनगणना और आर्थिक सर्वे के मामले को लेकर जनता के बीच जाएगी.
उत्तराखंड जैसे पहाड़ी प्रदेश की पॉलिटिक्स ब्राह्मण और ठाकुर के इर्द-गिर्द घूमती है. ऐसे में उत्तराखंड में जातीय जनगणना जैसा मुद्दा लोकसभा चुनाव में असरदार हो सकता है. जातीय जनगणना का मुद्दा विपक्ष को उत्तराखंड में संजीवनी दे सकता है? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि उत्तराखंड में हमेशा ही जातीय समीकरण को ध्यान में ही रखकर पक्ष और विपक्ष की सेटिंग की जाती है.
उत्तराखंड के जातीय समीकरण पर अगर गौर करें तो यहां 26 प्रतिशत ब्राह्मण, 35 प्रतिशत ठाकुर हैं. साल 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड में अल्पसंख्यक लगभग 16 फीसदी हैं. जिनमें मुस्लिम 14 प्रतिशत व शेष अन्य हैं. उत्तराखंड में अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के लोग को मिलाकर 18.92 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के 2.81 प्रतिशत हैं. उत्तराखंड में 2 प्रतिशत ओबीसी हैं.
उत्तराखंड की पॉलिटिक्स आज तक ठाकुर और ब्राह्मण के इर्द गिर्द घूमती रही है. सत्ता पक्ष और विपक्ष ने हमेशा ही सीएम, प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष बनाते हुए ठाकुर और ब्राह्मण के समीकरण को साधा है. यशपाल आर्य को छोड़ दिया जाये तो आज तक उत्तराखंड में किसी ओबीसी, अल्पसंख्यक, मुस्लिम, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई. यशपाल आर्य कांग्रेस से एक बार प्रदेश अध्यक्ष और साल 2022 में नेता प्रतिपक्ष बनाये गए. इससे पहले ठाकुर और ब्राह्मण समाज को छोड़कर किसी भी नेता को बड़े पद से दूर रखा गया.
ऐसे में लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन जातीय जनगणना के मुद्दे को उठा सकता है. उत्तराखंड में अगर जातीय जनगणना मुद्दा बनता है तो इसका असर सीधे सीधे 50 फीसदी आबादी पर होगा. उत्तराखंड में पचास फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले ठाकुर और ब्राह्मण को पद और प्रतिष्ठा मिलती है, मगर बाकी बची शेष आबादी इससे अछूती है.
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