बुरहानपुर: देशभर में पीओपी की मूर्तियां बनाने का चलन बढ़ गया है. इसमें केमिकल युक्त रंगों का उपयोग किया जाता हैं जो पर्यावरण और नदियों के लिए नुकसानदायक साबित होता है. बुरहानपुर में एक शख्स 35 साल से गंगा, यमुना, ताप्ती सहित अन्य पवित्र नदियों की मिट्टी से गणेशजी की प्रतिमाएं तैयार कर रहा है. इस साल भी मूर्तिकार अशीम शर्मा पर्यावरण का ध्यान रखते हुए पवित्र नदियों की मिट्टी से ईको फ्रेंडली गणेश प्रतिमाएं तैयार कर रहे हैं. इन प्रतिमाओं में प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
पवित्र नदियों की मिट्टी से बना रहे मूर्ति
देश में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए मूर्तिकार अशीम शर्मा ने लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने का बीड़ा उठाया है. इसी उद्देश्य से गंगा, यमुना, ताप्ती सहित अन्य पवित्र नदियों की मिट्टी से प्रतिमाएं निर्मित करने का निर्णय लिया. मिट्टी की प्रतिमाएं पूरी तरह तैयार होने के बाद सुंदर और आकर्षक दिखाई देती हैं. विसर्जन के बाद इससे नदियां दूषित नहीं होती हैं साथ ही जलीय जीवों को नुकसान नही पहुंचता. मूर्तिकार अशीम शर्माने बताया कि "35 सालों से मिट्टी की प्रतिमाएं बना रहा हूं, हर साल ऑर्डर में बढ़ोतरी हो रही है. ईको फ्रेंडली होने के कारण लोग मिट्टी की गणेश प्रतिमाएं पसंद करते हैं. इससे सिर्फ पांडाल की शोभा ही नहीं बल्कि पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी मिलता है."
पैसों की बचत के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश
मिट्टी की मूर्तियां पीओपी की मूर्तियों से बेहतर और सस्ती दरों पर मिलती हैं. इससे पैसों की बचत के साथ ही पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देती हैं. इन मूर्तियों की खासियत को देखते हुए दूर दूर से गणेश उत्सव समिति के पदाधिकारी ऑर्डर देने पहुंचते हैं. मूर्तिकार अशीम शर्मा लोगों को उनके डिमांड के आधार पर मूर्तियां तैयार कर देते हैं. इन मूर्तियों को प्राकृतिक रंगों से श्रृंगार किया जाता है. विर्सजन के बाद ये मूर्तियां नदी में घुल जाती हैं.