पटना: राजधानी पटना का नाम आते ही सबसे पहले लोगों के जेहन में गोलघर की तस्वीर घूमने लगती है. यह वही गोलघर है जो की 238 साल पहले अंग्रेजों ने पटना में बनाया था. इस गोलघर को अंग्रेजों ने पटना में अनाज के भंडारण के लिए बनाया था लेकिन यह ऐतिहासिक इमारत धीरे-धीरे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो गया है. जब भी बाहर के लोग पटना आते हैं, तो निश्चित तौर पर इस गोलघर को देखना चाहते हैं.
किसने कराया गोलघर का निर्माण?: गोलघर के गौरवशाली इतिहास की अगर बात करें तो आधुनिक पटना की पहचान बने गोलघर का निर्माण 1786 में कराया गया था. इतिहासकार मानते हैं कि वर्ष 1970 में भयंकर सूखे से लगभग एक करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हो गए थे. वहीं उस समय अंग्रेज भारत पर राज कर रहे थे, तत्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने अनाज भंडारण के लिए इस गोलघर का निर्माण कराया था.
कितने साल पुराना है गोलघर?: वारेन हेस्टिंग्स के आदेश पर ब्रिटिश इंजीनियर कैप्टन जॉन गार्स्टिन ने फौज के अनाज के भंडारण के लिए इस गोल ढांचे का निर्माण 20 जनवरी 1784 को प्रारंभ कराया था. यह निर्माण कार्य 20 जुलाई 1786 को संपन्न हुआ था. गोलघर अब 238 साल का हो गया है.
क्यों कहते हैं गोलघर?:इसे गोलघर इसलिए कहते हैं क्योंकि यह पूरा गोल है. इस इमारत की खासियत यह भी है कि इसमें कहीं भी कोई स्तंभ नहीं है. यह गोल ढांचा बिना स्तंभ का है. इस गोल घर में 10 लाख 40000 टन अनाज रखा जा सकता है. यह गोलघर 125 मीटर चौड़ा और 29 मीटर ऊंचा है. इसकी खासियत है कि इसमें एक भी स्तंभ नहीं है. इनकी दीवारें 3.6 मीटर मोटी है. गोलघर में ऐसे तो ईटों का प्रयोग हुआ है लेकिन इसके शिखर पर लगभग 3 मीटर तक ईंट की जगह पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है.
गोलघर में कितनी सीढ़ियां: कहा यह भी जाता है कि गोलघर के शीर्ष पर दो फीट 7 इंच व्यास के छिद्र था, जहां से मजदूर अनाज डालते थे. मजदूर को चढ़ने के लिए 145 सीढियां बनाई गई थी. 145 सीढ़ी चढ़कर ही मजदूर उस छिद्र से अनाज को इस गोलघर में रखते थे.
क्यों बनाया गया गोलघर?: पटना यूनिवर्सिटी के इतिहास के प्रोफेसर मायानंद बताते हैं कि पटना का गोलघर का बनाने का औचित्य था कि लगातार तीन-चार साल तक अकाल रहा. जिसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी को लगा कि अनाज इकट्ठा कर रखना जरूरी है. यह अनाज भंडारण के लिए बनाया गया था.
यहां होता था अनाज का भंडारण: कुछ लोग इसकी आलोचना भी करते हैं. कहते हैं कि यह अनाज के भंडारण के लिए बनाया गया था लेकिन यह सफल नहीं रहा था. कई लोग यह कहते है की बनाने का तरीका ठीक नही था उसकी ऊंचाई अधिक थी और दरवाजा एक ही था, जो अंदर से खुलता था. अनाज ऊपर से डाला जाता था. अनाज ठीक से निकल नहीं पाता था.
"जब दरवाजा बंद रहता था तो खुल नहीं पाता था, जो खोलने का तरीका था, वो पूरी तरह गलत था. कई इतिहासकार कहते है की जिस तरह यह बना था ठीक नहीं था. वहीं अत्यधिक गर्मी पड़ने पर इसमें अनाज सड़ने लगता था."- मायानंद, इतिहास के प्रोफेसर, पटना यूनिवर्सिटी
गोलघर अंग्रेजों की एक गलती थी:इतिहासकार फिलिप कहते है कि जो पहले भारत के अनाज रखने के लिए मिट्टी की कोठी बनाई जाती थी, उसी आकार का अंग्रेजों ने गोलघर बनाया था. प्रोफेसर मायानंद कहते हैं कुछ इतिहासकार गोलघर को लेकर कहते है कि यह गार्स्टीन की बेवकूफी थी, जो इस तरह का अनाज भंडारण का इमारत बनाया, जो किसी काम का नही था. बाद में यह ऐतिहासिक स्थल के रूप के जाना जाने लगा.
ऐतिहासिक रूप में हुआ संरक्षित: उन्होंने कहा की अलग तरह का आर्किटेक्टर होने के कारण यह आकर्षण का केंद्र बना. गोलघर के सामने जो मकान है, वो अब विद्यालय है. वहीं गोलघर बनाने वाले इंजीनियर गार्स्टिन रहते थे. शंकुनुमा रूप होने के कारण लोग इसको देखकर रोमांचित भी होते है. जब पटना शहर और बढ़ा तो यह इमारत ऐतिहासिक रूप से संरक्षित किया गया और लोग इसको देखने दूर-दूर देखने आने आने लगे.
गोलघर में कितनी सीढ़ियां?: पटना के लोग कहते हैं कि गोलघर पर जब वो चढ़ते थे तो पूरे शहर का नजारा यहां से दिखता था. खासकर गंगा नदी का नजारा काफी रोमांच से भरा होता था. बच्चे तो सीढ़ियां गिनते-गिनते ही ऊपर चले जाते थे. यहां कुल 145 सीढ़ी है, ये उन्हे पता ही नहीं चलता था.