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अब लखनऊ के लोहिया अस्पताल में भी होगा बोनमैरो ट्रांस्प्लांट, जानिए कितना खर्च आएगा? - BONE MARROW TRANSPLANT

पीजीआई और केजीएमयू में दबाव होगा कम, अभी तक लोहिया संस्थान से किया जा रहा था रेफर

बोन मैरो ट्रांसप्लांट
बोन मैरो ट्रांसप्लांट (Symbolic)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 24, 2025, 3:01 PM IST

लखनऊ: डॉ. राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में ब्लड कैंसर व खून से जुड़ी दूसरी गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए राहत भरी खबर है. संस्थान में जल्द ही बोन मैरो ट्रांसप्लांट होगा. जिससे गंभीर मरीजों को और बेहतर इलाज मिलने की राह आसान होगी. संस्थान के निदेशक डॉ. सीएम सिंह ने बताया कि हिमेटोलॉजी विभाग में बोनमैरो ट्रांसप्लांट की सुविधा मरीजों को मुहैया कराई जाएगी. मौजूदा समय में विभाग में बांड के तहत दो डॉक्टर तैनात हैं. 10 बेड हैं, जल्द ही विभाग को विस्तार दिया जाएगा.

निजी अस्पतालों की तुलना में कम पैसों में ट्रांसप्लांटःलोहिया अस्पताल के प्रवक्ता डॉ. भुवन चंद्र तिवारी ने बताया कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट में लाखों रुपये खर्चा होता है. लेकिन सरकारी मेडिकल संस्थानों में सरकारी योजनाओं के आधार पर बहुत ही कम पैसों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट होता है. बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए निजी अस्पातल में करीब 25 से 30 लख रुपये या इससे अधिक खर्च आता है. जबकि सरकारी मेडिकल संस्थान में 11 से 12 लाख में बोन मैरो ट्रांसप्लांट होता है.

बोन मैरो ट्रांस्प्लांट की कब जरूरतःडॉ. भुवन चंद्र तिवारी ने बताया कि बोन मैरो (अस्थि मज्जा) हड्डियों के अंदर मौजूद एक नरम और स्पंजी जैसा ऊतक होता है. यह शरीर के लिए बहुत जरूरी है. क्योंकि, इसमें मौजूद स्टेम कोशिकाएं रक्त कोशिकाओं और प्रतिरक्षा प्रणाली बनाने वाली कोशिकाओं का उत्पादन करती हैं. जब यह उत्पादन करना बंद कर देते हैं तो दिक्कतें शुरू होने लगती है. इस स्थिति में मरीज को बोन मैरो ट्रांस्प्लांट की जरूरत होती है.

सबसे पहले पीजीआई में शुरू हुआ था बोन मैरो ट्रांसप्लांटःबता दें कि लखनऊ में तीन बड़े मेडिकल संस्थान पीजीआई, केजीएमयू और लोहिया हैं. पीजीआई में सबसे पहले बोन मैरो ट्रांसप्लांट शुरू हुआ था. इसके बाद केजीएमयू में और अब लोहिया संस्थान में भी बोन मैरो ट्रांसप्लांट शुरू होने जा रहा है. पीजीआई और केजीएमयू में अधिक से अधिक बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने की कवायद शुरू है. लोहिया संस्थान में भी यह सुविधा हो जाने के बाद अधिक से अधिक मरीजों का इलाज हो सकेगा. खास बात यह है कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए मरीज को एक संस्थान से दूसरे संस्थान मरीज को रेफर नहीं किया जाएगा.

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