देहरादून:केदारनाथ विधानसभा सीट पर उपचुनाव का बिगुल बज चुका है. बीजेपी-कांग्रेस के अलावा अन्य दलों के प्रत्याशियों ने अपना नामांकन भी करा दिया है. अब सभी प्रत्याशी जनता से अपने पक्ष में वोट देने की अपील कर रहे हैं, लेकिन इस बार बीजेपी ने केदारनाथ में टिकट का फार्मूला पूरी तरह से बदला है. इस बदले हुए फार्मूले को कांग्रेस अब महिला और दिवंगत विधायक का अपमान बता रही है.
उपचुनाव में खेला जाता है सिंपैथी कार्ड: उत्तराखंड में ज्यादातर उपचुनाव सिटिंग विधायकों के निधन से सीट खाली होने जाने की वजह से हुए. खास बात ये है कि अब तक का रिकॉर्ड रहा है कि दिवंगत विधायक के परिजनों को ही टिकट मिला है यानी सिंपैथी कार्ड का बखूबी इस्तेमाल किया जाता रहा है.
बीजेपी हो या कांग्रेस, दिवंगत विधायक के परिवार के सदस्य को ही टिकट देने में जीत पक्की समझती है. इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि जनता सहानुभूति वोट आसानी से दे देती है. अब तक हुए चुनाव में ऐसा ही कुछ देखने को मिला है. पार्टी ने परिवार के जिस सदस्य को चुनावी मैदान में उतारा है, वहां की जनता ने दिवंगत विधायक के परिवार को ही दोबारा विधानसभा में भेजा है.
ये रहा है इतिहास: बीजेपी ने उत्तराखंड की सल्ट विधानसभा में उपचुनाव में स्व. सुरेंद्र सिंह जीना के भाई महेश जीना को टिकट दिया. जिसमें महेश जीना भारी मतों से विजयी हुए. इसी तरह से पिथौरागढ़ की सीट पर प्रकाश पंत के निधन होने के बाद उनकी पत्नी चंद्रा पंत को टिकट दिया. वो भी बीजेपी के टिकट पर जीत गईं. ऐसा ही कुछ चमोली की थराली विधानसभा पर भी देखने को मिला. जहां विधायक मगनलाल शाह के निधन के बाद उनकी पत्नी मुन्नी देवी को बीजेपी ने मैदान में उतारा और उन्हें भी जीत हासिल हुई.
वहीं, बागेश्वर विधानसभा में भी बीजेपी ने दिवंगत विधायक चंदन रामदास के निधन के बाद उनकी पत्नी पार्वती दास को ही चुनावी मैदान में उतारा और वो भी भारी मतों से जीत गईं. इसी तरह से देहरादून की कैंट विधानसभा क्षेत्र से भी हरबंस कपूर के निधन के बाद उनकी पत्नी सविता कपूरको टिकट दिया और वो भी भारी मतों से जीतीं. इस तरह से देखा जाए तो उपचुनाव में बीजेपी का हाथ कभी खाली नहीं रहा.