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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से शहीद की पत्नी को 10 साल बाद मिला न्याय, फीस रिकवरी पर लगाई रोक, बीमा कंपनी को 1 साल का ब्याज देने का आदेश - Chhattisgarh High Court - CHHATTISGARH HIGH COURT

Bilaspur Martyr Wife Got Justice बस्तर में नक्सलियों से मोर्चा लेते हुए शहीद जवान के परिवार को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से न्याय मिली. कोर्ट ने ना सिर्फ बच्चे की फीस रिकवरी का आदेश निरस्त किया बल्कि बीमा कंपनी को परिवार को एक साल का ब्याज देने के लिए कहा है.

bilaspur martyr wife got justice
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Mar 30, 2024, 1:07 PM IST

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट से शहीद की पत्नी को 10 साल बाद न्याय मिला है. शहीद की पत्नी ने साल 2014 में न्याय के लिए हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी. जिस पर दस साल के बाद साल 2024 में कोर्ट ने फैसला सुनाया.

क्या है मामला:बिलासपुर वेयर हाउस रोड में रहने वाले पुलिसकर्मी विजय कुमार बस्तर में नक्सलियों से संघर्ष के दौरान शहीद हो गए थे. 2 नवंबर 2007 को नक्सलियों के एंबुश में विजय कुमार समेत 10 पुलिसकर्मियों की जान चली गई थी. विजय की मौत के तीन माह बाद उनकी पत्नी अर्चना शुक्ला ने बच्चे को जन्म दिया. स्कूल दाखिला की उम्र होने के बाद बच्चे का एडमिशन विद्यालय में कराया गया. छत्तीसगढ़ पुलिस कर्मचारी वर्ग-असाधारण परिवार निवृत्ति नियम 1965 के नियम 5 के अनुसार शहीद जवानों के बच्चों की फीस पुलिस विभाग देता है. ऐसे बच्चों की 21 वर्ष की उम्र पूरी होने तक उनकी शिक्षा पर होने वाली रकम दी जाती है. शहीद जवानों के बच्चों की फीस की रसीद जमा करने के बाद रकम का भुगतान विभाग की तरफ से किया जाता है.

शहीद जवान विजय कुमार की पत्नी ने भी बच्चे की स्कूल में एडमिशन के बाद भुगतान के लिए पुलिस विभाग ने रसीद जमा की. रसीद के आधार पर जवान की पत्नी को 18900 और 22800 रुपये का भुगतान पुलिस विभाग की तरफ से किया गया. लेकिन इस बीच पुलिस विभाग को ये पता चला कि बच्चे का जन्म जवान के शहीद होने के तीन महीने बाद हुआ जिसके बाद विभाग ने 26 अगस्त 2013 को भुगतान की हुई रकम की रिकवरी का आदेश जारी कर दिया. जिसके खिलाफ शहीद की पत्नी ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर की.

बीमा कंपनी ने की गलती:इसी मामले में शहीद की पत्नी ने कोर्ट में ये भी बताया कि पुलिस विभाग ने ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी, कोलकाता से जवानों का ग्रुप इंश्योरेंस करवाया था. जवानों की शहादत के बाद विभाग ने बीमा राशि के भुगतान के लिए कंपनी को पत्र लिखा. तब बताया गया कि जवान का नाम गलती से विजय कुमार की जगह विनोद कुमार शुक्ला हो गया था, इसे बाद में दुरुस्त कर लिया गया. जवान के शहीद होने के एक साल बाद 12 नवंबर 2008 को रकम विभाग को मिली, जिसे जवान की पत्नी को 27 जनवरी 2009 को मिली. लेकिन साल भर की देरी के बाद भी बीमा कंपनी ने एक साल की अवधि का ब्यान देने से इनकार कर दिया.

बीमा कंपनी ने हाई कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि "ग्रुप इंश्योरेंस के लिए हुए एग्रीमेंट के अनुसार किसी तरह की विवाद की स्थिति में ऑर्बिटेशन के जरिए हल किया जाना है, इसी के तहत कंपनी की नीति के अनुसार देरी पर ब्याज देने का नियम नहीं है."

कोर्ट ने कहा संवेदनशील होने की जरूरत: शहीद जवान की पत्नी की तरफ से साल 2014 में लगाई याचिका मंजूर करते हुए जस्टिस गौतम भादुड़ी की बेंच ने सुनवाई की. कोर्ट ने पुलिस विभाग की तरफ से फीस की रिकवरी का आदेश निरस्त कर दिया, साथ ही बीमा कंपनी को एक साल का ब्याज देने के लिए कहा. याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये भी कहा "जवान ने नक्सलियों से लड़ते हुए शहादत दी है. उनकी शहादत के कारण आम लोग सुरक्षित हैं. ऐसे मामलों में बीमा कंपनियों को संवेदनशील होने की जरूरत है." हाई कोर्ट ने बीमा कंपनी की दलील को ना मानते हुए ब्याज की राशि देने का आदेश जारी किया साथ ही पुलिस विभाग के फीस की रिकवरी पर भी रोक लगा दी.

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