बीकानेर. व्यापारिक दृष्टि से रसगुल्ला और नमकीन के लिए पूरी दुनिया में मशहूर बीकानेर ऊन उद्योग के लिए भी जाना जाता है. बीकानेर में तैयार होने वाली ऊन से बनने वाले कारपेट दुनिया के कई देशों में निर्यात होते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में भारतीय ऊन उद्योग का सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी देश चीन और तुर्की बन गया है, जिसके चलते यहां के उद्योग के सामने कई चुनौतियां आई हैं. हालांकि पिछले डेढ़ दशक में बीकानेर की वूलन इंडस्ट्री ने मंदी का बुरा दौर देखा है, लेकिन कोरोना के बाद दुनिया भर के देशों ने चीन से आयात और निर्यात एक तरह से बंद कर दिया, जिसके चलते चीन की बजाय दुनिया भर की वूलन इंडस्ट्रीज से जुड़े लोग भारत की तरफ देखने लगे और बीकानेर में ऊन उद्योग में बड़ा बूम आया. लेकिन अब फिर धीरे-धीरे चीन ने अपनी जगह वापस बना ली जिसके चलते भारतीय ऊन उद्योग खासकर बीकानेर की वूलन इंडस्ट्री के लिए हालात फिर चुनौती पूर्ण हो गए हैं.
सरकारी प्रोत्साहन की अनदेखी :वूलन इंडस्ट्रीज से जुड़े कारोबारी सुनील कहते हैं कि इस उद्योग को बचाने के लिए सरकार को आगे आना होगा, क्योंकि बिना सरकारी प्रोत्साहन वूलन इंडस्ट्री आगे नहीं बढ़ सकती. एमएसएमई के नियमों में शिथिलता देने की मांग करते हुए वह कहते हैं कि एमएसएमई में रजिस्टर्ड व्यापारी को 45 दिन में भुगतान अनिवार्य है, जबकि कई बार स्थिति ऐसी नहीं होती है. इसलिए इस दायरे को सरकार को बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए. वहीं उद्योग को लेकर किसी खास तरह का पैकेज होने से यहां की इंडस्ट्री को संजीवनी मिल सकती है.
तनावपूर्ण हालात से भी घटी डिमांड : वूलन कारोबारी सुनील कहते हैं कि यूरोपीय देशों में रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते भी कारपेट की डिमांड कम हुई है, क्योंकि दुनिया के कई देशों में होने वाले निर्यात पर इसका असर पड़ा है. क्योंकि भारतीय कारपेट की डिमांड यूरोपीयन देशों में भी ज्यादा है, लेकिन युद्ध के हालात से एक बारगी डिमांड में कमी आई है.