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जातीय समीकरण और आरक्षण के जाल में उलझा बिहार, जानिए चुनाव से पहले किसके पास कौन सी चाल..? - BIHAR POLITICS

CASTE AND RESERVATION IN BIHAR: 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान पूरे देश में संविधान और आरक्षण का मुद्दा जमकर चला और इन मुद्दों के कारण NDA को नुकसान भी उठाना पड़ा. लोकसभा के चुनावी नतीजों से उत्साहित महागठबंधन ने जाति और आरक्षण को अपना सबसे बड़ा हथियार बना लिया है. बिहार में तो पहले से ही जाति की सियासत हावी रही है. ऐसे में 2025 के विधानसभा चुनाव में भी बिहार की सियासत जाति और आरक्षण के इर्द-गिर्द ही चक्कर काटती दिख रही है, जानिए जाति-आरक्षण को लेकर क्यों है बिहार में सियासी बवाल और किसके पास है कौन सी चाल.

जाति और आरक्षण की सियासत
जाति और आरक्षण की सियासत (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Sep 4, 2024, 7:37 PM IST

जाति-आरक्षण के इर्द-गिर्द घूमती बिहार की सियासत (ETV BHARAT)

पटनाः वैसे तो बिहार को हमेशा से ही जाति की सियासत के लिए जाना जाता है लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान जाति, संविधान और आरक्षणका मुद्दा पूरे देश में खूब चला. 2024 के चुनाव में विपक्ष ने जाति और आरक्षण के हथियार के दम पर जो सफलता हासिल की उससे विपक्ष को लग रहा है यही वो मुद्दे हैं जिनसे सत्ता में वापसी हो सकती है. ऐसे में साफ है कि 2025 में होनेवाले विधानसभा चुनाव में भी बिहार की सियासत जाति और आरक्षण के इर्द-गिर्द के ही चक्कर काटती नजर आएगी.

जातीय जनगणना और 65 फीसदी आरक्षणःबिहार की सियासत में इन दिनों विपक्ष के लिए दो मुद्दे हॉट केक की तरह हैं. पहला जातीय जनगणना और दूसरा बिहार में लागू किए 65 फीसदी आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालने की मांग. वैसे देखा जाए तो बिहार सरकार पहले ही जातीय जनगणना करवा चुकी है और आरक्षण के मसले को लेकर केंद्र सरकार के पास अनुशंसा भी भेज चुकी है लेकिन विपक्ष को तो बहाना चाहिए. लिहाजा विपक्ष सरकार पर आरक्षण विरोधी होने का आरोप लगा रहा है.

किसकी चाल होगी कामयाब ? (ETV BHARAT GFX)

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का फैसला रखा बरकरारः दरअसल महागठबंधन की सरकार के दौरान नीतीश कुमार ने बिहार में जातीय जनगणना करवाई और उसके बाद बिहार में एससी-एसटी, ओबीसी और ईबीसी के लिए आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 65 फीसदी भी कर दी. इस फैसले को पीआईएल के जरिये पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी. सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया. हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट भी गयी लेकिन सरकार को सुप्रीम कोर्ट से भी निराशा हाथ लगी. ऐसे में विपक्ष कह रहा है कि सरकार ने अपना पक्ष तरीके से नहीं रखा.

"बिहार में नीतीश कुमार और केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार है लेकिन उसके बावजूद 65 फीसदीवाले आरक्षण के कानून को 9वीं अनुसूची में शामिल नहीं किया जा रहा है.हम लोगों का कमिटमेंट है कि इसे हर हाल में लागू करवाएंगे."-शक्ति सिंह यादव, मुख्य प्रवक्ता, आरजेडी

बिहार में कितनी जातियां ? (ETV BHARAT GFX)

सरकार ने लगाया सियासत का आरोपःवहीं इस मुद्दे पर सरकार का कहना है कि विपक्ष और बिहार की जनता को सारी हकीकत पता है. सबको ये बात पता है कि पूरे देश में जातीय जनगणना की बात नीतीश कुमार ने ही उठाई थी और बिहार में जातीय जनगणना करवाई भी. उसके बाद आरक्षण भी बढ़ाया. इतना ही नहीं इसे संविधान की 9वीं अनुसूची में डालने की अनुशंसा भी केंद्र से की है, लेकिन फिलहाल जिस कानून को कोर्ट रद्द कर चुका है उसे 9वीं अनुसूची में कैसे डाला जा सकता है ?

"बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में जातीय गणना के बाद आरक्षण की सीमा बढ़ाई गई. लोगों को लाभ भी मिलने लगा. लेकिन कोर्ट ने उसे निरस्त कर दिया. सरकार सुप्रीम कोर्ट गई है. जब कानून ही निरस्त हो गया है तो विपक्ष जो मांग कर रहा है कि 9वीं अनुसूची में शामिल किया जाए यह कैसे संभव है ? विपक्ष के रवैये को जनता सब समझ रही है. विपक्ष को कोई लाभ मिलने वाला नहीं है."-विजय कुमार चौधरी, संसदीय कार्य मंत्री

जाति के बिना कौन सी सियासत ? (ETV BHARAT GFX)

"विपक्षी दल आरक्षण के नाम पर रोटी सेंक रहे हैं. आरक्षण के दायरे में आने वाली जातियों को विपक्ष अपने वोट बैंक के रूप में देख रहा है. जब उन्हें सत्ता मिली थी तो उनके लिए कुछ नहीं किया. अब सत्ता से बाहर हैं तो उनके लिए घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं."-प्रेम रंजन पटेल, प्रवक्ता, बीजेपी

कई पिछड़ी जातियों को चाहिए एससी का आरक्षणः जातीय जनगणना और आरक्षण के मुद्दे की अगली कड़ी है एससी में शामिल करने की मांग. दरअसल बिहार में अति पिछड़े वर्ग के आरक्षण का लाभ ले रही दो दर्जन जातियां अब एससी में शामिल करने की मांग कर रही हैं. इस सियासत ने ही मुकेश सहनी को न सिर्फ बिहार में मल्लाहों का सबसे बड़ा नेता बना दिया बल्कि इसको लेकर उन्होंने यूपी और झारखंड में भी आंदोलन चलाकर अपनी पहचान बना ली.

बिहार में किसकी कितनी आबादी ? (ETV BHARAT GFX)

सरकार ने कर रखी है अनुशंसाः सिर्फ मुकेश सहनी ही ऐसी सियासत कर रहे हैं ऐसी बात बिल्कुल नहीं है. बिहार सरकार ने भी एक दर्जन से अधिक जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए केंद्र से अनुशंसा कर रखी है. इसके अलावा चिराग पासवान भी एक दर्जन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग करते रहे हैं. कई दलों और संगठनों की तरफ से भी इस तरह की मांग और आंदोलन समय-समय पर होते रहे हैं. बिहार सरकार ने तो तांती ततवा को एससी कैटेगरी में शामिल भी कर लिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त कर दिया. तब से तांती तवा लगातार आंदोलन कर रहे हैं.

"कई नेता आरक्षण को लेकर ही आज अपने समाज के सबसे बड़े नेता बन चुके हैं. मुकेश सहनी उसमें आगे है. मल्लाह जाति के तो कई नेता हुए लेकिन मुकेश सहनी आज जिस स्थान पर पहुंचे हैं दूसरा कोई नेता नहीं पहुंच पाया."-अरुण पांडेय, राजनीतिक विशेषज्ञ

आखिर क्यों चाहिए एससी वाला आरक्षणः?आखिर अति पिछड़ों और पिछड़ों को एससी वाला आरक्षण क्यों चाहिए ? इसको लेकर राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफेसर चंद्रभूषण राय का कहना है कि दलितों को संवैधानिक आरक्षण मिला हुआ है. ऐसे में पिछड़े और अति पिछड़ों में जिन जातियों को आरक्षण मिला हुआ है वे चाहते हैं कि उन्हें अनुसूचित जाति में आरक्षण मिल जाए.

आरक्षण का मुद्दा हो चुका है बड़ा (ETV BHARAT GFX)

"पिछड़ों-अति पिछड़ों को एससी वर्ग में अधिक संभावना दिखती है. पिछड़ों और अति पिछड़ों में जातियों की संख्या अधिक है. इसलिए उन्हें आरक्षणवाले लाभ का हिस्सा उतना नहीं मिल पाता है. ऐसे में उन्हें अनुसूचित जाति और जनजाति के आरक्षण में ज्यादा संभावना दिख रही है."-चंद्रभूषण राय, प्रोफेसर, राजनीति शास्त्र,पटना विश्वविद्यालय

जनगणना के बाद बिहार की जातियों का गुणा-गणितःबिहार में नीतीश सरकार की ओर से कराई गयी जातीय जनगणना के बाद जो आंकड़े आए हैं उसके अनुसार बिहार की कुल जनसंख्या 13 करोड़ 7 लाख 25310 है.आंकड़ों के अनुसार बिहार सरकार की सूची में 215 जातियां हैं. इनमें अनुसूचित जाति में 22, अनुसूचित जनजाति में 32, पिछड़ा वर्ग में 30, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) में 113 और उच्च जाति में 7 जातियों की गणना की गई है.

किसकी कितनी आबादी ?:जातियों की आबादी की बात की जाए तो सबसे बड़ी संख्या अत्यंत पिछड़ा वर्ग की है जो 36.01 फीसदी है और जिनकी संख्या 4,70,80,514 है. वहीं पिछड़ा वर्ग 27.12 फीसदी है, जिनकी तादाद 3,54,63,936 है. जबकि अनुसूचित जाति का हिस्सा 19.6518% है और इनकी आबादी 2,56,89,820 है. वहीं अनुसूचित जनजाति की आबादी 21,99,361 है जो कि कुल आबादी का 1.6824% है.

किसके आरक्षण में कितनी वृद्धि की गयी ?: जातीय जनगणना के बाद बिहार सरकार ने जो आरक्षण में वृद्धि की थी उसके अनुसार ओबीसी का आरक्षण 12% से बढ़ाकर 15% कर दिया गया जबकि ईबीसी के लिए 18% से बढ़ाकर 25% कर दिया गया. वहीं अनुसूचित जाति के लिए 16% से बढ़ाकर 20% कर दिया गया और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 1% से बढ़ाकर 2% कर दिया गया.

पिछड़ा और अति पिछड़ा की बड़ी आबादी पर नजर: बिहार सरकार ने जातीय गणना के बाद सभी वर्ग के गरीबों के लिए योजना भी शुरू की है. लेकिन सब की नजर आरक्षण जैसे बड़े मुद्दे पर है. अब तो आरएसएस भी जातीय जनगणना के पक्ष में बोल रहा है हालांकि आरएसएस का कहना है कि जातीय जनगणना का आंकड़ा जातियों के विकास के लिए होना चाहिए ना कि राजनीति के लिए.कुल मिलाकर देखें तो जातीय जनगणना से लेकर आरक्षण तक में राजनीतिक दलों और नेताओं को एक बड़ा स्कोप दिख रहा है. अब देखना है ये मुद्दा किसके लिए कितना लाभकारी साबित होता है.

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