पटना: एक्सप्रेसवे किसी भी शहर और राज्य के विकास की धुरी होते हैं. क्योंकि, यह न केवल यातायात को सुगम बनाता है, बल्कि व्यापार, उद्योग और पर्यटन को भी गति देता है. बेहतर कनेक्टिविटी से न सिर्फ आर्थिक गतिविधियों में तेजी आती है, बल्कि निवेशकों का भी विश्वास बढ़ता है, जो समग्र विकास में अहम भूमिका निभाता है. एनएचएआई के अनुसार बिहार में कुल 2,025 किलोमीटर लंबे 7 एक्सप्रेसवे का निर्माण किया जाना है. इनमें तीन एक्सप्रेसवे की स्वीकृति अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने आम बजट में दी है. लेकिन, कई वजहों से निर्माण कार्य की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ रही है.
एकमात्र एक्सप्रेसवे पर चल रहा है कामः देशभर में करीब 44 एक्सप्रेसवे ऑपरेशनल हैं. 10 से ज्यादा का निर्माण चल रहा है. 44 एक्सप्रेसवे में बिहार में एक भी एक्सप्रेसवे नहीं है. बिहार का पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश एक्सप्रेस वे के मामले में सबसे धनी है. उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, गंगा एक्सप्रेसवे, बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस वे पूरे देश में चर्चा में रहा है. वहीं बिहार में सात एक्सप्रेसवे से केवल आमस दरभंगा पर ही काम चल रहा है. अधिकारियों से जो जानकारी मिल रही है यदि तेजी से कम हुआ तो 2 साल और लगेंगे. वाराणसी कोलकाता एक्सप्रेसवे भी बिहार में आकर फंस गया है. वन विभाग की आपत्तियों के कारण कब काम शुरू होगा, इस पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं.
"हम लोग रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं. एलिवेटेड के माध्यम से भी सॉल्यूशन निकला जा सकता है. केंद्र सरकार को हमने पत्र भी लिखा है और हम खुद जाकर मिलेंगे भी. जल्दी ही कोई ना कोई रास्ता निकल आएगा."- प्रेम कुमार, मंत्री, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग
बिहार में 7 एक्सप्रेसवे बनना हैः बिहार में केंद्र सरकार से 7 एक्सप्रेसवे को स्वीकृति मिल चुकी है. तीन एक्सप्रेसवे की स्वीकृति अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने आम बजट में दी है. पहले से जो एक्सप्रेसवे स्वीकृति केंद्र सरकार ने दी है उसमें से फिलहाल एक को छोड़कर किसी पर काम नहीं चल रहा है. कहीं जमीन का अधिग्रहण नहीं हुआ है तो कहीं वन विभाग की आपत्ति के कारण मामला फंसा हुआ है. कहीं अभी सर्वे का काम ही पूरा नहीं हुआ है. बिहार में बनने वाले एक्सप्रेसवे के नाम पर निर्माण की क्या स्थिति है, नीचे विस्तार से पढ़िये.
आमस-दरभंगा एक्सप्रेस वे: आमस-दरभंगा एक्सप्रेसवे पर काम चल रहा है. उसके पूरा होने में 2 साल से अधिक समय लग सकता है. कई जगह पर अभी भी जमीन अधिग्रहण की समस्या आ रही है. अधिकारियों से जो जानकारी मिल रही है, 2022 से ही इस पर काम चल रहा है. पांच पैकेज में इसका निर्माण होना है. चार पैकेज की एजेंसी ने काम शुरू भी कर दिया है. लेकिन एजेंसी को जमीन को लेकर कई जगह परेशानी झेलनी पड़ रही है. 189 किलोमीटर की लंबाई में बनने वाले इस एक्सप्रेसवे पर 7000 करोड़ की राशि खर्च होनी है.
वाराणसी कोलकाता एक्सप्रेसवेः 610 किलोमीटर की लंबाई में इसका निर्माण होना है. जिसमें 161.60 किलोमीटर की सड़क बिहार में है. सात पैकेज में इसका निर्माण किया जाना है. 6 का टेंडर जारी हो चुका है. 6 में से 5 को काम भी दिया जा चुका है, लेकिन वन विभाग की आपत्ति के कारण बिहार में इसका निर्माण अटका पड़ा हुआ है. वाराणसी- कोलकाता एक्सप्रेसवे के निर्माण में 70,000 पेड़ काटे जा सकते हैं. वन विभाग इसी को लेकर आपत्ति दर्ज कर रहा है. इस एक्सप्रेस वे को 35 हजार करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा है. बिहार में कैमूर, औरंगाबाद, रोहतास और गया जिला इससे जुड़ेगा.
गोरखपुर सिलीगुड़ी एक्सप्रेसवेः उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल को जोड़ने वाले एक्सप्रेसवे में बड़ा हिस्सा बिहार में बनना है. जमीन अधिग्रहण का पेच इसमें फंसा हुआ है. ऐसे सर्वे का काम पूरा हो चुका है. बिहार के 10 से ज्यादा जिलों से यह एक्सप्रेसवे गुजर रहा है. जिसमें गोपालगंज, पश्चिम चंपारण, मोतिहारी, पूर्वी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, दरभंगा, मधुबनी, सुपौल, फारबिसगंज, अररिया और किशनगंज शामिल हैं. कुल 607 किलोमीटर लंबे इस एक्सप्रेस वे का 416 किलोमीटर लंबा हिस्सा बिहार से गुजरेगा. करीब 32 हजार करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा है.