सरगुजा: पर्व और त्योहार को लेकर देश के कोने कोने में अलग अलग मान्यताएं और परंपराएं प्रचलित हैं. सरगुजा में भी भाई दूज को लेकर अनोखी परंपरा प्रचलित है. भाई दूज के दिन यहां पर बहनें अपने भाइयों को पहले श्राप देती हैं. श्राप देने के बाद उसकी माफी के लिए अपनी जीभ पर कांटा चुभोती हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से उनके दिए श्राप का प्रायश्चित होता है. प्रायश्चित के साथ साथ उनके भाई को भगवान लंबी उम्र देते हैं. रोग, बला और दुश्मनों से भाई को भगवान बचाते हैं.
भाई दूज पर बहनें देती हैं भाई को श्राप: मान्यता है कि भाई दूज के दिन बहनें जो श्राप देती हैं उससे उनकी रक्षा होती है. श्राप उनके शरीर की रक्षा के लिए होता है. बाद में बहन उस श्राप का प्रायश्चित खुद को तकलीफ देकर करती हैं. दीपावली के दो दिन बाद कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष द्वितीया तारीख को मनाया जाता है. तिथियों के अंतर के चलते इस बार भाई दूज का त्योहार तीन नवंबर यानि आज मनाया जा रहा है. भाई की सलामती के लिए मनाया जाने वाला ये त्योहार बहनों के लिए सबसे खास होता है.
सदियों से निभाई जा रही है अनोखी परंपरा (ETV Bharat)
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन बहनें व्रत रखती हैं. जमीन में गोबर से जौरा-भौरा की आकृति बनाती हैं. इसके बाद बहनें भाइयों को श्राप देती हैं. फिर जौरा-भौरा की विधि विधान से पूजा करती हैं. इसके बाद इनको ईंट, मूसल और 7 लकड़ियों से कूटा जाता है. इस विधि के बाद बहनें अपनी जीभ में कांटा चुभोकर प्रायश्चित करती हैं. मान्यता है कि श्राप देने के बाद बहनों को प्रायश्चित करना होता है. मान्यता है कि इस दिन भाइयों के शरीर में श्राप रहने से उनकी रक्षा होती है. :उर्मिला मोदनवाल, स्थानीय महिला
भाइयों को पहले श्राप देते हैं फिर जीभ में कांटा चुभाते हैं. इस दिन भाई को श्राप देने से उसकी रक्षा होती है कोई नुकसान नहीं होता है. भाई को नुकसान पहुंचाने वाले जितने भी प्रतीक होते हैं जैसे सांप, बिच्छू और दुश्मन इन सबकों बहनें खल और लकड़ी से कूटती हैं. प्रतीक के तौर पर ये किया जाता है. जिसका अर्थ होता है कि भाई के ये दुश्मन नष्ट हों. पूजा के बाद बहनें भाई की आरती उतारती हैं, उनको मिठाई खिलाती हैं. भाई भी बहनों को आशीर्वाद देकर उनकी लंबी उम्र की प्रार्थना करते हैं.:मंजू सोनी, स्थानीय महिला
पूजा की थाली ऐसे करें तैयार
पूजा की थोली को गंगा जल से पवित्र करें.
पीतल, कांसा या चांदी की थाली का इस्तेमाल करें.
थाली में रोली, चंदन, घी का दीपक और ताजे फूल होने चाहिए.
पूजा की थाली में सूखे मेवे मिठाई के साथ नारियल हो तो और शुभ होता है.
पूजा के अवसर पर नायरिल भेंट करना अति शुभ माना जाता है.
हमेशा बहनें तिलक लगाने के बाद ही आरती करें.
तिलक और आरती के बाद बहनें भाई को मिठाई खिलाएं.
भाई को मिठाई खिलाने के बाद ही बहनें पानी या भोजन ग्रहण करें.
शुभ लग्न में पूजा और आरती करना अच्छा माना जाता है.
क्या है भाई दूज की पौराणिक कहानी: पौराणिक कहानी के मुताबिक कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि के दिन यमराज अपनी बहन से मिलने यमुना के घर आए. अपने भाई यमराज को देखकर बहन यमुना काफी प्रसन्न हुई. भाई की आवभगत में उसने खूब अच्छे अच्छे भोजन और पकवान पकाए. भाई यमराज को बड़े प्यार से भोजन कराया उनकी सेवा की. इस पर यमराज ने बहन यमुना को वरदान दिया कि आज के दिन जो भी बहनें अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगाकर उनकी पूजा करेंगी उनके भाई की उम्र दीर्घायु होगी. तभी से भाई दूज मनाने की परंपरा चली आ रही है.