बस्ती :पुलिस से न्याय नहीं मिलने पर अपने चार साल के छोटे बच्चे और पिता को लेकर हाथ में फांसी का फंदा लिए युवक सोमवार को पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंचा तो अफरातफरी मच गई. आननफानन पुलिसकर्मियों ने अधिकारियों को सूचना देने के साथ ही युवक को पकड़ने के इंतजाम शुरू किए. इस दौरान कई घंटे तक हड़कंप की स्थिति रही. हालांकि पुलिस ने युवक को हिरासत में लेने के बाद पुलिस अधिकारियों ने दोषियों के खिलाफ एक्शन का आश्वासन दिया. इसके बाद युवक घर लौट गया.
मामला बस्ती जनपद के पुरानी बस्ती थाना क्षेत्र के रहने वाले फोटोग्राफर शुभम कन्नौजिया का है. शुभम पुलिस विभाग में भी शुभम अपनी फोटो की कलाकारी का कई बार जलवा बिखेर चुका है. शुभम के पिता ने वर्ष 1997 में एक जमीन दयाराम से बैनामा कराई थी. दयाराम की मृत्यु के बाद बेटे रमेश ने विरोध किया और वर्ष 2022 में शुभम के पिता दशरथ के खिलाफ धोखाधड़ी की FIR दर्ज करवा दी. जिसमें उन्हें जेल जाना पड़ा. जेल से बाहर आने पर शुभम का परिवार पूरी तरह से बिखर चुका था. शुभम की बड़ी मां की अचानक मौत हो गई. शुभम के बच्चे ने जन्म होते ही दम तोड़ दिया, मगर उसने हार नहीं मानी और जमीन का मुकदमा लड़ने का फैसला लिया.
शुभम ने जमीन को लिखने वाले शख्स दयाराम की मृत्यु तिथि में किए गए खेल की जानकारी निकाली तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. जिसमें पता चला कि जमीन का बैनामा करने वाले दयाराम की मौत की तारीख का उसके ही बेटे रमेश ने दो बार अलग अलग दावा (1975 व 1984) किया है. दोनों मृत्यु प्रमाण पत्र उसने कोर्ट में दावे के तौर पर प्रस्तुत भी किए हैं. शुभम के मुताबिक नगर पालिका ने मृत्यु प्रमाण पत्र में खेल किया और एक ही व्यक्ति की मृत्यु का दो अलग अलग सर्टिफिकेट जारी कर दिया. मगर असल में दोनों ही सर्टिफिकेट फर्जी हैं. बिना ट्रेज़री चालान जमा किए कोई भी प्रमाण पत्र नगर पालिका से नहीं बनाया जा सकता. ऐसे में रमेश ने कूट रचित तरीके से जमीन हड़पने के लिए अपने पिता का फेक डेथ सर्टिफिकेट जारी करवाया है.
मृत्यु प्रमाण पत्र को लेने के लिए रमेश ने पहले वर्ष 2016 में आवेदन किया. इसके बाद वर्ष 2018 में करके प्रमाण पत्र को हासिल किया, मगर दोनों ही सर्टिफिकेट के डिटेल अलग अलग हैं और मूल प्रति न तो नगर पालिका के दफ्तर में ही है और न बैनामा करने वाले रमेश के पास ही है. जबकि शुभम के पिता दशरथ का दावा है कि जमीन का बैनामा 1997 में कराया और उसके कई साल बाद लगभग 2002 से 2004 के बीच में उनकी मृत्यु हो गई. इस जमीन को पिछले 25 साल से शुभम और परिवार हासिल करने की लड़ाई लड़ रहा, मगर उसे आज तक न्याय नहीं मिला.