बाराबंकी : छह साल पहले जारी किए गए आदेश का अनुपालन न करने पर बाराबंकी की कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. कोर्ट ने न्यायालय के अमीन को आदेश दिया है कि बिजली विभाग के एसडीओ की कुर्सी, मेज, गाड़ी समेत दूसरी वस्तुएं कुर्क कराकर कोर्ट को आठ अप्रैल तक सूचित किया जाए. यह आदेश सिविल जज सीनियर डिवीजन अभिषेक त्रिपाठी ने करंट से एक युवक की मौत के मामले में उसकी पत्नी द्वारा मुआवजे के लिए लगाई जा रही गुहार के मामले में दिया है.
बता दें, 12 वर्ष पहले शांति देवी के पति मनोहर की बिजली का करंट लगने से मौत हो गई थी. इसको लेकर पीड़िता पत्नी शांति देवी द्वारा कोर्ट की शरण ली गई थी. शांति देवी ने अपर जनपद न्यायाधीश की कोर्ट में 29 फरवरी 2012 के अनुपालन में दाखिल किया था. उस वक्त कोर्ट ने कहा था कि मृतक मनोहर अपने परिवार का इकलौता भरण पोषण करने वाला था. मृतक पर पत्नी शांति देवी और उसकी पुत्री सुषमा आश्रित हैं. पिछले 12 वर्षों से डिक्रीदारान महिलाएं न्याय की आस में बराबर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हो रही हैं. इसके बावजूद निर्णीत ऋणी द्वारा न्याय को विलंबित किया जा रहा है.
कोर्ट ने कहा कि पूर्व में बिजली विभाग के पक्ष से 15 जनवरी 2018 को उपस्थित होकर आदेश देकर एक सप्ताह के अंदर भुगतान की बात कही गई थी, लेकिन उस आदेश के छह साल बीत जाने के बावजूद भुगतान नहीं किया गया. इस पर सिविल जज सीनियर डिवीजन अभिषेक त्रिपाठी ने नाराजगी जताते हुए सख्त आदेश जारी किया है. कोर्ट ने अमीन को निर्देशित किया है कि बिजली विभाग के एसडीओ के कार्यालय में रखी हुई कुर्सी, मेज निष्पादन कार्रवाई के मूल्य के बराबर यदि हो तो अन्यथा की दशा में एसडीओ द्वारा कार्यालय में उपयोग में लाए जा रहे वाहन को कुर्क करके आठ अप्रैल को न्यायालय को सूचित करें.
बता दें, देवां थाना क्षेत्र के माती गांव निवासी मनोहर (40) के घर के सामने हाईटेंशन बिजली की लाइन गुजरी है. बिजली विभाग द्वारा ठीक ढंग से रखरखाव न करने के चलते तार टूट गया था. 18 अगस्त 1998 को जब मनोहर लाल रात साढ़े 8 बजे खेत से घर आ रहा था कि टूट कर गिरे हुए एचटी लाइन तार की चपेट में आ गया और उसकी मौत हो गई. परिवार में उसकी पत्नी शांति देवी और उसकी बेटी सुषमा कुमारी थी. जिनकी जिम्मेदारी मनोहर पर थी. मामले में मृतक की पत्नी ने एफआईआर दर्ज कराई थी. मृतक की पत्नी ने क्षतिपूर्ति के लिए वाद दायर किया था. अपीलीय आदेश अपर जनपद न्यायाधीश द्वारा 29 फरवरी 2012 को पारित किया गया था. आदेश दिया गया था कि क्षतिपूर्ति के रूप में एक लाख रुपये की धनराशि आदेश के दो माह के अंदर वादीगण को भुगतान करे, लेकिन आज तक भुगतान नहीं किया गया था.
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