वाराणसी :सप्त पुरी काशी को काशीपुराधिपति के साथ मां जगदंबा का शहर भी कहा जाता है. यहां पर 51 शक्तिपीठों में से एक विशालाक्षी शक्तिपीठ मौजूद है. यहां पर मां का कर्ण कुंडल गिरा था. इस शक्तिपीठ का वर्णन देवी पुराण में भी मिलता है. मां के दर्शन-पूजन से अखंड सौभाग्य के साथ धन की वर्षा होती है. नवरात्रि में यहां काफी संख्या में भक्तों की भीड़ जुटती है. लोग पूजा-पाठ के लिए यहां पहुंचते हैं. माता को कुमकुम-हल्दी चढ़ाया जाता है. मान्यता है कि यहां बाबा विश्वनाथ रात्रि विश्राम करने आते हैं.
विशालाक्षी मंदिर काशी विश्वनाथ धाम के बगल में मीरघाट मोहल्ले में विराजमान है. इस मोहल्ले में मां का भव्य मंदिर स्थापित है. यहां हर दिन हजारों की संख्या में देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग दर्शन पूजन करने के लिए आते हैं. मंदिर के महंत राधेश्याम दुबे ने ईटीवी भारत को बताया कि मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में बना है. मंदिर के बाहरी भाग पर रंग-बिरंगे रूप में गणेश, शंकर जी वह अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाएं तैयार की गईं हैं. यहां पर माता के साथ काल भैरव और विशालाक्षी ईश्वर यानी कि बाबा विश्वनाथ की भी प्रतिमा विराजमान है. यूं तो हर दिन भक्तों की भारी भीड़ होती है, लेकिन नवरात्र के पांचवीं तिथि पर मां के दर्शन का अपना एक विशेष महत्व होता है.
51 शक्तिपीठों में से एक है विशालाक्षी मंदिर :मंदिर के महंत कहते हैं कि, देश के 51 शक्तिपीठों में इस शक्तिपीठ का महत्व है. दक्षिण से आने वाले भक्त कहते हैं कि कांची में कामाख्या, मदुरई में मीनाक्षी और काशी में विशालाक्ष. इन तीनों का महत्व एक समान है. यह तीनों देवियां आपस में बहन मानी जाती हैं. उन्होंने बताया कि, काशी के यदि विशालाक्षी देवी की बात कर ली जाए तो पुराणों में ऐसा वर्णित है कि देवी शक्ति का यहां पर कर्ण कुंडल गिरा है. इस वजह से यहां मां स्वयंभू है. भक्त उनके दर्शन करते हैं. उन्होंने कहा कि मां के स्वरूप की बात कर ली जाए तो यहां पर मां की 2 प्रतिमाएं विराजमान है. एक जो मां का स्वयंभू है और दूसरा यहां पर एक चल प्रतिमा शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित की गई है.
हर दिन होती है चार आरती, दो अभिषेक :उन्होंने बताया कि, हर दिन मां की दोनों प्रतिमा का श्रृंगार किया जाता है. चार पहर की आरती होती है. पहली प्रातः काल आरती और अभिषेक होता है. इसके बाद दोपहर में 12:30 बजे मां की आरती और अभिषेक किया जाता है. यह विशेष आरती होती है. इसमें मां को भोग लगता है. इसके बाद शाम 5:00 बजे मां की सायं कालीन आरती होती है, इसके बाद रात्रि में शयन आरती होने के बाद मंदिर का कपाट बंद कर दिया जाता है. उन्होंने बताया कि मां की सबसे महत्वपूर्ण आरती भोग और शयन आरती होती है.