श्रीनगर: पर्वतीय इलाकों में बढ़ता तापमान बादल फटने की घटनाओं को भी बढ़ा रहा है. ये घटनाएं इतनी तेजी के साथ हो रही हैं कि यहां स्थापित डॉप्लर रडार से भी मौसम में त्वरित हो रहे बदलाव का अनुमान नहीं लग पा रहा है. ऐसे में रेन गेज सिस्टम व ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन से मॉनिटरिंग कारगर साबित हो सकती है. इससे तहसील स्तर और जिला स्तर पर स्थापित करके आसमानी आफत का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है. इनकी स्थापना का खर्च भी लागत में नाम मात्र का ही होता है.
उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं:उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. उत्तराखंड में 2013 में केदारनाथ, 2016 में पिथौरागढ़ व चमोली, 2018 में रुद्रप्रयाग और टिहरी, 2022 में रायवाला देहरादून के आस-पास अतिवृष्टि से भारी नुकसान की घटनाएं सामने आई. इसके बाद 2024 में टिहरी व केदारनाथ में फ्लैश फ्लड से भारी नुकसान हुआ.
रेन गेज सिस्टम/ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन कारगर:गढ़वाल विवि के भौतिक विज्ञानी डॉ आलोक सागर गौतम ने कहा मध्य हिमालय से उच्च हिमालयी क्षेत्रों की ओर तेजी से बढ़ रहा तापमान, वायु में प्रदूषण अतिवृष्टि का कारण हो सकता है. उन्होंने कहा विश्व मौसम संगठन ने भी स्वीकारा है कि 2025 तक अतिवृष्टि की घटनाएं तेजी से बढ़ेंगी. डॉप्लर रडार से अत्यधिक बारिश का अनुमान तो लगाया जा सकता है, लेकिन पर्वतीय इलाकों में तेजी से मौसम बदलने में रडार से अनुमान लगाना मुश्किल होता है. ऐसे में उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों से लेकर दूरस्थ इलाकों में रेन गेज सिस्टम स्थापित किया जाना चाहिए. साथ ही प्रत्येक जिले में अगर ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन स्थापित किया जाये. इससे बादल फटने या अतिवृष्टि जैसी घटनाओं की जानकार मिल सकती है.